साहिबजादों ने धर्म की रक्षा के लिए लिखी, शहादत की अनूठी इबारत

-माता गुजरी जी, जोरावर सिंह, फतेह सिंह की अनमोल शहादत

-309 साल से अनवरत शहीदी जोड़ मेल पर अर्पित किए जा रहे हैं श्रद्धासुमन

सिखों के दसवें गुरु, सरबंस दानी, महान योद्धा, आध्यात्मिक सोच के धनी गुरु गोविंद सिंह के नाम संग लगे यह अलंकार पिता गुरु तेग बहादुर साहिब व माता गुजरी जी की ओर से मिले संस्कारों की देन है। दशम पिता की अद्भुत प्रतिभा के कारण ही उनके चारों साहिबजादों ने पिता समान ही धर्म की रक्षा के लिए चलाए जा रहे युद्ध को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाया। परंतु छोटे साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह व बाबा फतेह सिंह ने अपने पिता से मिले संस्कारों को अपनाते हुए जुल्म के खिलाफ सिर न झुकाते हुए धर्म की रक्षा के लिए मौत का आलिंगन किया। छोटे साहिबजादों संग माता गुजरी जी की लिखी अनमोल शहादत को बीते 309 से साल से देश विदेश से लाखों की तादाद में हर धर्म से संबंधित लोग 25, 26, 27 दिसंबर (11, 12 और 13 पौह) को नमन करने फतेहगढ़ साहिब पहुंचते हैं।

छोटे साहिबजादों की शहादत को ब्यां करता है गुरुद्वारा श्री फतेहगढ़ साहिब

गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह को सरहिंद के गवर्नर वजीर खान ने इस्लाम कबूल न करने पर नाराज़ हो कर 26 दिसंबर 1705 को जिंदा दीवारों में भौरा साहिब में चिनवा दिया था। इस स्थान पर आज गुरुद्वारा श्री फतेहगढ़ साहिब बना हुआ है। यह दीवारें आज भी गुरुद्वारा साहिब में विद्यमान है। गौर हो बाबा जोरावर सिंह का जन्म 17 नवंबर 1696 और बाबा फतेह सिंह का जन्म 25 फरवरी 1699 को हुआ था। ठंडे बुर्ज में कैद माता गुजरी जी को जब अपने पोतों की शहादत की असहनीय जानकारी मिली थी। तो उन्होंने भी अपने प्राण त्याग दिए थे। गौर माता गुजरी जी का जन्म 1624 को करतारपुर में हुआ था।

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दीवान टोडर मल ने सोने की मोहरें दे कर खरीदी थी यह जमीन

माता गुजरी जी, साहिबजादों बाबा ज़ोरावर सिंह व बाबा फतेह सिंह के पार्थिव शरीरों का पूर्ण विधि विधान से दीवान टोडर मल जैन ने मौजूदा गुरुद्वारा ज्योति स्वरुप साहिब में किया था। इस स्थान को दीवान टोडर मल ने 78 हजार सोने की मोहरें बिछा कर मुगल फौजदार सरहिंद वजीर खान से खरीदा था। यह जमीन विश्व की सबसे महंगी जमीन के तौर पर पहचानी जाती है। सोने की कीमत के मुताबिक इस 4 स्कवेयर मीटर जमीन की कीमत दो अरब पचास करोड़ रुपये बनती है।

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गुरुद्वारा ज्योति स्वरुप साहिब में हुआ था अंतिम संस्कार

माता गुजरी जी, छोटे साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह, बाबा फतेह सिंह का अंतिम संस्कार मौजूदा गुरुद्वारा ज्योति स्वरुप साहिब में किया गया था। संस्कार के लिए वजीर खान ने जमीन धनराशि लेने के बाद ही दी थी। संस्कार करने के बाद वजीर खान का गुस्सा थमा नहीं। उसने दीवान टोडर मल व उसके परिवार को जिंदा ही कोल्हू में पिसवा कर शहीद कर दिया था। गुरुद्वारा ज्योति स्वरूप का निर्माण 1705 में किया गया था। 138 साल बाद वर्ष 1843 में गुरुद्वारा ज्योति स्वरुप का महाराजा कर्म सिंह ने पुनः विकास किया था। जबकि महाराजा यादविदंर सिंह ने 1952 में मुख्य गेट का निर्माण किया था।

प्रदीप शाही

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