भारत का अनूठा मंदिर… जहां मुसलमान भी मांगते हैं मन्नतें

भारत को देवी-देवताओं, ऋषि-मुनियों व पीर पैगंबरों की धरती कहा जाता है। यहां हर धर्म का आदर-सम्मान किया जाता है। भारत में विभिन्न देवी-देवताओं को समर्पित मंदिर मौजूद हैं। आज हम आपको एक ऐसे अनूठे मंदिर के बारे में जानकारी देंगे जिसे हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक माना जाता है। इस स्थान पर नतमस्तक होने के लिए हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोग बड़ी संख्या में आते हैं। इस मंदिर की खास बात यह है कि इस मंदिर में एक मजार और एक शिवलिंग स्थापित है।

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श्री कपालेश्वर मंदिर

श्री कपालेश्वर शिव मंदिर उत्तर प्रदेश के नगर डेरापुर, कानपुर देहात में स्थित है। इस इलाके में बहने वाली सेंगुर नदी की उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित है ‘श्री कपालेश्वर शिव मंदिर’। यह मंदिर जंगल मंे 100 फीट ऊँचे टीले पर बना हुआ है। कहा जाता है कि श्री कपालेश्वर मंदिर का निर्माण पंडित कनौजी लाल मिश्र जो असिस्टेंट कमिश्नर थे, ने करवाया था। पंडित कनौजी लाल मिश्र को मंदिर के निर्माण के बारे में एक स्वप्न आया था। इसमें मंदिर के निर्माण तथा समाधि को ऐसे ही रखने का आदेश हुआ था। इस पर पंडित कनौजी लाल मिश्र ने तुरंत पेन्शन लेकर 1894 में मंदिर का निर्माण करवाना शुरू किया लेकिन मंदिर का काम पूरा होने से पहले ही उनकी मृत्यु हो गई। इसके बाद उनके सृपुत्र पंडित शिव कुमार मिश्र ने मंदिर का अधूरा कार्य पूरा करवाया। कहते हैं कि पंडित कनौजी लाल मिश्र को अपनी मृत्यु की तिथि पता थी इसलिए वह इस मंदिर का निर्माण जल्दी करवाना चाहते थे। इसी कारण मंदिर का मठ आकार में छोटा रह गया। बाद में इसी मठ के ऊपर दूसरे मठ का निर्माण किया गया।

यह भी कहा जाता है कि कनौजी लाल मिश्र फैजाबाद जिले में तैनात थे। उन्हें एक रात को सपना आया कि जंगल में एक स्थान पर शिवलिंग स्थापित है और उस शिवलिंग से खून निकल रहा है। सुबह के समय वह उस स्थान पर पहुंचे तो जो उन्होंने सपने में देखा था, बिल्कुल वैसा ही दृश्य था। इसके बाद उन्होंने इस शिवलिंग को निकालने के लिए खुदाई का काम शुरू करवाया। लेकिन काफी जमीन खोदने के बाद भी शिवलिंग का दूसरा छोर या हिस्सा दिखाई नहीं दिया। फिर कनौजी लाल मिश्र ने इसी स्थान पर ही मंदिर का निर्माण करवाया। इसी खुदाई के दौरान ही एक मजार भी मिली थी।

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हिन्दू-मुसलमान मांगते हैं एक साथ मन्नतें

इस मंदिर को पीर पहलवान बाबा के नाम से भी जाना जाता है। इस मजार को कुछ लोग नीमनाथ की समाधि कहते हैं और कुछ पीर पहलवान की मजार कहते हैं। कुछ लोग इसे सैयद बाबा की मजार भी कहते हैं। इस स्थान पर सैयद बाबा को पीर व भगवान शिव को पहलवान कहा जाता है। इसी कारण यह स्थान पीर पहलवान के नाम से प्रसिद्ध है। इस मंदिर में स्थापित मजार पर मुस्लिम समुदाय के लोग चादर चढ़ाकर मन्नतें मांगते हैं और हिंदू शिवलिंग का अभिषेक कर भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। श्रद्धालुओं का मानना है कि फाइलेरिया यानि हाथी पांव या पील पांव के रोग से ग्रस्त मरीज इस मंदिर में दर्शन करने के बाद पूरी तरह से ठीक हो जाता है। इस लिए श्रद्धालु इसे पील पहलवान का मंदिर भी कहते हैं।

बड़ी संख्या में पहुंचते हैं कांवड़िए

महाशिवरात्रि और सावन के महीने में हर सोमवार को इस स्थान पर मेला लगता है। महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर लोधेश्वर जाने वाले कांवड़िए इस मंदिर में दर्शन करने के बाद ही प्रस्थान करते हैं। इसके अलावा और भी श्रद्धालु व कांवड़िए कांवड़ लेकर इस मंदिर में पहुंचते हैं और भगवान शिव का जलाभिषेक कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

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मंदिर तक कैसे पहुंचें

कपालेश्वर मंदिर जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर का नज़दीकी रेलवे स्टेशन रूरा  रेलवे स्टेशन है जो इस मंदिर से महज 13 किलोमीटर दूर है। इस रेलवे स्टेशन पर एक्सप्रेस और सुपर फास्ट गाड़ियां भी रुकती हैं। यहां से मंदिर तक कार या टैक्सी द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा आगरा-कानपुर राज्य मार्ग पर स्थित मुंगीसापुर नामक स्थान से मंदिर की दूरी 10 किलोमीटर के करीब है। मुंगीसापुर से भी हर समय टैक्सी सेवा उपलब्ध रहती है।

धर्मेन्द्र संधू

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