देवी का ऐसा अनूठा मंदिर… जहां नहीं है देवी की मूर्ति… होती है “श्रीयंत्र” की पूजा

भारत के प्राचीन व रहस्यमयी मंदिर पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं। देश ही नहीं विदेश से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। देवभूमि के नाम से विख्यात भारत का राज्य उत्तराखण्ड देश-विदेश के श्रद्धालुओं के लिए आस्था व श्रद्धा का केन्द्र है। हरिद्वार और ऋषिकेश के मंदिर तो अपनी अलग पहचाव रखते ही हैं साथ ही उत्तराखण्ड के कुछ ऐसे प्राचीन मंदिर भी हैं जो हिन्दू धर्म में खास महत्व रखते हैं। एक ऐसा ही प्रसिद्ध मंदिर ‘चन्द्रबदनी देवी मंदिर’ उत्तराखण्ड के चन्द्रकूट पर्वत पर स्थित है।

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मां चन्द्रबदनी देवी मंदिर

उत्तराखण्ड के टिहरी मार्ग पर चन्द्रकूट पर्वत पर स्थित है सिद्धपीठ ‘मां चन्द्रबदनी मंदिर’। समुद्र तल से लगभग आठ हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित यह प्राचीन मंदिर भक्तों की आस्था का केन्द्र है। यह मंदिर देवप्रयाग से 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

मंदिर की स्थापना

मंदिर की स्थापना के बारे में कहा जाता है कि आदि जगत गुरु शंकराचार्य जी ने श्रृंगीऋषि की तपस्थली श्रीनगरपुरम् में श्रीयंत्र से प्रभावित होकर अलकनन्दा नदी के पास स्थित चन्द्रकूट पर्वत पर इस चन्द्रबदनी शक्ति पीठ की स्थापना की थी। इस लिए इस मंदिर में देवी की कोई मूर्ति नहीं है बल्कि यहां “श्रीयंत्र” की पूजा होती है।

हमेशा ढका रहता है “श्रीयंत्र”

मंदिर में मां चन्द्रबदनी की मूर्ति की बजाए देवी का यंत्र “श्रीयंत्र” स्थापित हैं। इसी यंत्र की पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है। “श्रीयंत्र” मंदिर के गर्भ गृह में एक शिला यानि पत्थर पर बना हुआ है और यंत्र के ऊपर चाँदी का बड़ा छत्र स्थापित है। गर्भगृह में जमीन पर भी एक यंत्र के दर्शन होते हैं जिसे भुवनेश्वरी यंत्र कहते हैं। इस यंत्र के ऊपर की ओर ‘श्रीयंत्र’ स्थापित है जो हमेशा ढका रहता है। इस पावन स्थान पर माँ सती का पावन बदन गिरा था, इसलिए यहां स्थापित ‘श्रीयंत्र’ हर समय ढककर रखा जाता है। यहां तक कि मंदिर के पुजारी भी आँखों पर पट्टी बाँधकर माँ चन्द्रबदनी को स्नान करवाते हैं। कहते हैं कि एक बार मंदिर के पुजारी ने ‘श्रीयंत्र’ को देख लिया था, जिसके बाद वह अंधा हो गया था। 

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धार्मिक ग्रन्थों में है इस स्थान का उल्लेख

इस पावन स्थान का उल्लेख धार्मिक ग्रन्थों में भी मिलता है। महाभारत में वर्णित है कि अश्वत्थामा को चन्द्रकूट पर्वत पर ही फेंका गया था। कहा जाता है अश्वत्थामा आज भी हिमालय पर रहते हैं। इसके अलावा स्कंदपुराण और देवी भागवत में भी इस मंदिर का वर्णन मिलता है। प्राचीन ग्रन्थों में इस मंदिर का उल्लेख भुवनेश्वरी सिद्धपीठ के नाम से मिलता है।

मंदिर से जुड़ी कथा

पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव माता सती की मृत देह को लेकर पूरे ब्रह्माण्ड में भ्रमण करने लगे तो भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के पावन शरीर के कई हिस्से कर दिए। माता सती के पावन शरीर के यह पावन हिस्से जिस भी स्थान पर गिरे वह स्थान शक्ति पीठ कहलाए। इस स्थान पर भी माता सती का पावन कटीभाग यानि पावन बदन गिरा था। इस लिए चन्द्रकूट पर्वत पर भुवनेश्वरी सिद्धपीठ स्थापित हुआ। पौराणिक मान्यता है कि बाद में भगवान शिव इस स्थान पर आए थे। इस स्थान पर पहुंचकर वह सती माता को याद कर विरहा भाव से भर गए। उसी समय चन्द्र के समान शीतल मुख वाली सती माता प्रकट हुई। माता सती को देखकर भगवान शिव प्रसन्न हो गए और विरहा भाव भी समाप्त हो गया। इसके बाद देव-गन्र्धवों ने भी महाशक्ति के दर्शन और स्तुति की। माता सती के इस पावन स्थल पर इस प्रकार प्रकट होने के कारण ही यह यह स्थान माता चन्द्रबदनी के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

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मंदिर के त्योहार व पर्व

वैसे तो सारा साल ही श्रद्धालु माता के दर्शन करने आते हैं लेकिन नवरात्रों में बड़ी संख्या में माता के भक्त माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। नवरात्रि के त्योहार के अलावा दशहरे व दीपावली के त्योहार भी पूरे उत्साह के साथ मनाए जाते हैं। साथ ही मां चन्द्रबदनी देवी मंदिर में हर साल अप्रैल महीने के में एक बड़ा मेला भी लगता है। 

कैसे पहुंचें

52 शक्तिपीठों में से एक मां चन्द्रबदनी मन्दिर समूद्र तल से 2277 मीटर ऊंचाई पर चन्द्रकूट पर्वत पर सुशोभित है। मां भगवती का यह मन्दिर श्रीनगर टिहरी मार्ग पर स्थित है और उत्तराखण्ड के श्रीनगर से मंदिर की दूरी 60 किलोमीटर के करीब है। यह पावन स्थान देवप्रयाग से 35 किलोमीटर और नरेन्द्रनगर से 109 किलोमीटर दूर है। बागवान नामक स्थान के रास्ते से यह मंदिर नज़दीक पड़ता है। बस व टैक्सी के द्वारा आसानी से माता के मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। ऋषिकेश से देवप्रयाग की दूरी 90 किलोमीटर है। कांडीखाल से सिलौड होते हुए 8 किलोमीटर का पैदल रास्ता है। इस रास्ते से पैदल चलते हुए भक्त माता चन्द्रबदनी के मंदिर तक पहुंचते हैं। मंदिर से नज़दीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है जो 106 किलोमीटर दूर है।

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धर्मेन्द्र संधू

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