भगवान श्री राम, माता सीता की चरण-धूलि से पावन हुए यह स्थल

-त्रेतायुग के स्थल आज भी हैं मौजूद

प्रदीप शाही

त्रेतायुग में बढ़ रहे अधर्म, अत्याचारों पर अंकुश लगाने के लिए भगवान श्री विष्णु जी ने भगवान श्री राम का मानव रुप में अवतार लिया। प्रभु श्री राम ने अपने 14 वर्ष के वनवास के दौरान जनमानस को जागरुक करते हुए धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। ऋषियों मुनियो से शिक्षा हासिल की। भगवान श्री राम ने अपनी अर्धांगिनी देवी सीता व भाई लक्ष्मण संग लंबी यात्रा की। उनकी यह पद-यात्रा अयोध्या से शुरु होकर श्रीलंका में जा कर संपन्न हुई। भगवान श्री राम, माता सीता की जहां पर चरण-धूलि पड़ी। वह स्थान पावन हो गए। यह पावन स्थल आज भी विद्यमान है। इनमें से कई स्थलों को अनुसंधानकर्ताओं, शोधकर्ताओं ने ढूंड निकाला है। जबकि यह शोध निरंतर जारी है। भगवान श्री राम अयोध्या से बनवास दौरान कहां-कहां रुके। आईए, जानते हैं कि अब तक कितने स्थलों की पहचान की जा चुकी है।

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पहली बार गोमती नदी पार कर गंगा नदी तट पहुंचे

बनवास मिलने पर प्रभु श्री राम, देवी सीता औऱ भाई लक्ष्मण सबसे पहले अय़ोध्या से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तमसा नदी पहंचे। तमसा नदी, गोमती नदी को पार कर प्रयागराज (इलाहाबाद) पहुंचे। यहां से 20 किलोमीटर से अधिक कुछ दूरी पर स्थित निषादराज गुह के राज्य में श्रृंगवेरपुर नगर पहुंचे। यहीं पर गंगा नदी के तट पर उन्होंने केवट से गंगा पार करवाने को कहा था। श्रृंगवेरपुर (सिंगरौर) का उल्लेख रामायण में भी मिलता है। द्वापर युग में हुए महाभारत काल में इस स्थान को तीर्थ स्शल के नाम से जाना जाता था। प्रयागराज जिले में ही कुरई नामक स्थित है। गंगा के इस पार कुरई और उस पार सिंगरौर था। श्रीराम गंगा पार करने के बाद इसी स्थान पर पहली बार उतरे थे।

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चित्रकूट घाट पर डाला दूसरा पड़ाव

कुरई के बाद श्री राम, देवी सीता और लक्ष्मण का दूसरा पड़ाव प्रयागराज था। यहां पर ही गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम होता है। संगम के पास यमुना नदी को पार को चित्रकूट घाट पहुंचे। मौजूदा समय में य़हां पर वाल्मिकी आश्रम, मांडव्य आश्रम, मरतकूप प्रमुख स्मारक हैं। जो रामायण काल की याद को जीवंत करते हैं।

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सिद्धा पहाड़ पर किया निशाचरों का नाश

जिला सतना के बिरसिंहपुर में सिद्धा पहाड़ स्थित है। इस पहाड़ का उल्लेख रामायण में मिलता है। इस पहाड़ पर पहुंचने पर श्री राम निशाचरों का नाश करने की शपथ ली थी। चित्रकूट वह पावन स्थल है। जहं पर श्री राम के अनुज भऱत ने आकर पिता दशरथ के देहांत की जानकारी देते हुए भगवान राम को वापिस अय़ोध्या चलने की प्रार्थना की थी। यहीं से भरत, श्री राम की चरण पादुकाएं लेकर वापिस लौटे थे। उन्होंने श्री राम की चरण-पादुकाओं को सिंहासन पर रख कर राज्य का शासन किया था।

ऋषि अत्रि के आश्रम में श्री राम ने बिताया था कुछ समय

त्रित्रकूट के पास ही मध्य प्रदेश में स्थित सतना में ऋषि अत्रि के आश्रम में भगवान श्री राम ने कुछ समय व्यतीत किया। ऋषि अत्रि को ऋग्वेद के पांचवें मंडल के दृष्टा माना जाता है। दक्ष प्रजापति की 24 बेटियों में से एक अनुसूइया का विवाह ऋषि अत्रि से हुआ था। श्री राम ने यहां पर मंदाकिनी, गुप्त गोदावरी, छोटी-छोटी पहाडियों से गुजरते हुए। यहां के घनों जंगलों को पार किया। इस इलाके में कई छोटी-छोटी गुफाएं आज भी विद्यमान है। यह इलाका श्री राम, देवी सीता व लक्ष्मण का आश्रय बना।

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इस क्षेत्र में काटा श्री राम ने लंबा समय़

मौजूदा समय में छतीसगढ़ राज्य में दंडकारण्य आरंभ हो जाता है। इस क्षेत्र में कुछ हिस्सों पर श्री राम के नाना और कुछ इलाके पर बाणासुर का राज था। इस इलाके की गुफाओं, पहाडों पर श्री राम के रहने के प्रमाण मिलते हैं। दंडक राक्षस के कारण इस इलाके को दंडकारण्य कहा जाता है। मौजूदा समय में यह क्षेत्र नक्सली प्रभावित है। गोदावरी के तट पर स्थित भद्राचलम शहर में सीता-राम चंद्र का बेहद प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर भद्रगिरी पर्वत पर स्थित है। श्री राम ने अपने बनवास का कुछ समय भद्रगिरी पर्वत भी व्यतीत किया था। यह भी माना जाता है कि इस इलाके के आकाश में रावण और जटायु का युद्ध हुआ था। इस इलाके में जटायु के कुछ अंग कट कर गिरे थे। सबसे खास बात यह है कि जटायु का विश्व भर में इकलौता मंदिर इसी इलाके में है।

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पंचवटी में भगवान श्री राम का वास

दंडकारण्य, भद्रगिरी पर्वत के क्षेत्र में ऋषियों मुनियों संग विचार चर्चा करने के बाद भगवान श्री राम ने नासिक स्थित अगस्तय मुनि के आश्रम में वास किया। यह इलाका आज पंचवटी के नाम से प्रसिद्ध है। बनवास का कुछ समय पंचवटी स्थित अगस्तय मुनि में व्यतीत किया गया।

सर्वतीर्थ से किया था रावण ने देवी सीता का हरण

नासिक का यह क्षेत्र त्रेतायुग में बेहद खास रहा। इसी क्षेत्र में रावण की बहन शूर्पनखा का लक्ष्मण द्वारा नाक काटना, मारीच, खर औऱ दूषन के वध के अलावा लंकापति रावण द्वारा देवी सीता का हरण किया गया था। इतना ही नहीं इसी क्षेत्र में जटायु का रावण ने वध किया था। ताकेड़ गांव में सर्वतीर्थ नामक स्थल आज भी संरक्षित है। इसी जगह से माता सीता की खोज की काम भी शुरु किया माना जाता है। यहीं से श्री राम, भ्राता लक्ष्मण ने तुंगभद्रा व कावेरी नदी के क्षेत्र देवी सीता की खोज की। इस स्थान के दर्शन करने के लिए हर साल बड़ी संख्या में भक्त आते हैं।

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भीलनी शबरी के जूठे बेरों का श्रीराम ने किया सेवन

श्री राम, लक्ष्मण पंपा नदी के पास भीलनी शबरी के आश्रम भी गए। यह स्थान मौजूदा समय में केरल में है। शबरी का असल नाम श्रमणा था। गौर हो केरल का प्रसिद्ध सबरीमलय तीर्थ स्थल इसी पंपा नदी के तट पर ही स्थित है।

श्री राम औऱ लश्र्मण ऋष्यमूक पर्वत पहुंचे

नदियों, वनो को पार कर श्री राम अपने भाई लक्ष्मण सहित ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचे। यहां पर उनकी मुलाकात हनुमान जी और सृग्रीव से हुई। यहीं पर उन्हें माता सीता के पहने आभूषणों को देखा। इतना ही नहीं। यहीं पर भगवान श्री राम ने बाली का वध किया। प्रभु श्री राम हनुमान और सुग्रीव से मिलकर एक सेना का गठन किया। श्री राम की पहली सेना का गठन कोडीकरई में किया था। इसी पर्वत पर सुग्रीव गुफा भी है। जहां पर सुग्रीव अपने भाई बाली से डर कर रहता था।

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रामेश्वर में की थी शिवलिंग की स्थापना

भगवान श्री राम ने लंका पर आक्रमण कर उस पर जीत हासिल करने के लिए रामेश्वरम समुद्र तट पर भगवान शिव की पूजा की। यहां पर श्री राम ने शिवलिंग को स्थापित किया। यह स्थान आज एक तीर्थ का रुप ले चुका है।

रामेश्वरम से लंका तक किया रामसेतु का निर्माण

तमिलनाडू के दक्षिणी पूर्वी तट पर स्थित रामेश्वरम द्वीप आज एक तीर्थ समान है। रामेश्वरम द्वीप से लेकर श्री लंका के उत्तर पश्चिमी तट पर स्थित मन्नार द्वीप के मध्य एक चूना पत्थर से पुल बना हुआ है। यह सेतु ही भारत औऱ श्रीलंका को आपस में भूमार्ग के तौर पर जोड़ता है। यह पुल लगभग 30 किलोमीटर लंबा है। अब इस पुल के अवशेष ही शेष रह गए हैं। वहीं धनुषकौडी एक ऐसा स्थान है। जो रामेश्वरम द्वीप के दक्षिणी तट पर स्थित एक गाव है। यह स्थान श्रीलंका के तलैमन्नार से करीब 18 मील की दूरी पर स्थित है। रामसेतु के अवशेषों का मिलना इस घटना को प्रासंगिक मानता है।

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लंकापति रावण का लंका में महल

वाल्मिकी रामायण अनुसार लंका के बीचो-बीच रावण का भव्य महल था। नुवारा एलिया पहाड़ियों से करीब 90 किलोमीटर दूरी पर बांद्रवेला की तरफ लंका की उंची पहाड़ियों के मध्य सुरंगें और गुफाएं मौजूद है। शोधकर्ताओं ने इस इलाके की कार्बन डेटिंग की। जिससे उस काल की जानकारी मिल गई है। जाने-माने इतिहासकार और पुरातत्वशास्त्री डॉ. राम अवतार भगवान श्रीराम और देवी सीता के जीवन की घटनाओं से जुड़े ऐसे 200 से भी अधिक स्थानों का पता लगा चुके हैं। जो त्रेता युग में श्री राम, माता सीता व लक्ष्मण के वास को प्रमाणित करते हैं।

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