इस देवी के दर्शन करने से मिलता है मनचाहा जीवनसाथी

धर्मेन्द्र संधू

भारत के प्राचीन मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र हैं। आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में जानकारी देंगे जिसके बारे में मान्यता है कि यहां मन्नत मांगने से मनचाहा जीवन साथी मिलता है। मां पार्वती को समर्पित यह मंदिर उत्तराखंड में स्थित है। जिसे ‘गर्जिया देवी मंदिर’ के नाम से जाना जाता है।

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गर्जिया देवी मंदिर

पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में स्थित है प्राचीन ‘गर्जिया देवी मंदिर’। रामनगर से रानीखेत मार्ग पर एक गांव है जिसका नाम है ‘ढिकुली’। इस गांव से 3 किलोमीटर की दूरी पर कोसी नदी के बीच एक टापू पर गर्जिया देवी का मंदिर है। 1940 से पहले इस मंदिर को उपटा देवी के नाम से जाना जाता था। मान्यता है कि जिस टापू पर यह मंदिर स्थित है वह कोसी नदी में आई बाढ़ में कहीं से बहकर आया था। रानीखेत के रहने वाले पंडित रामकृष्ण पांडे इस मंदिर के प्रथम पुजारी थे। भगवान शिव की अर्धांगिनी माता पार्वती को गिरिजा नाम से भी जाना जाता है। इनका यह नाम गिरिराज हिमालय की पुत्री होने के कारण पड़ा। इस मंदिर में गिरिजा देवी सतोगुणी रूप में अपने भक्तों को दर्शन देती हैं और केवल भक्तों के सच्चे मन से माथा टेकने पर ही कृपा कर देती हैं ।

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ऐसे पड़ा मंदिर का नाम

1940 से पहले इस इलाके के आसपास घने जंगल थे। 1950 के नज़दीक पहुंचे हुए तांत्रिक श्री 108 महादेव गिरी जी नागा बाबा इस स्थान पर आए थे। कहा जाता है कि नागा बाबा के शिष्य पाठक जी ने इस स्थान पर देवी की आराधना की थी। नागा बाबा ने ही तीन देवियों व भगवान गणेश आदि की मूर्तियां स्थापित करवाई थी। यह मूर्तियां राजस्थान से लाई गईं थी। इन मूर्तियों की स्थापना के दौरान अचानक एक शेर पहुंच गया और उसने तेज़ गर्जना की। जिसे देवी का संकेत मानते हुए मंदिर का नाम ‘गर्जिया देवी’ रखा गया।

कोसी नदी ने दिखाया था विनाशकारी रूप

मंदिर का नामकरण करने के बाद प्राचीन टीले पर सीढ़ियां बनाकर मंदिर तक जाने के लिए पत्थरों का रास्ता बनाया गया था। मान्यता है कि देवी को यह सब स्वीकार नहीं हुआ। इसके बाद सन् 1960 के करीब कोसी नदी प्राचीन के साथ ही नई मूर्तियों को भी बहा ले गई। बाद में मंदिर के प्रथम पुजारी पांडे जी के बेटों ने मंदिर का दोबारा निर्माण करवाया और मूर्तियों की स्थापना की।

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टीले के नीचे है भगवान शिव की गुफा

जिस टीले पर देवी का मंदिर बना हुआ है, ठीक उसके नीचे भगवान शिव की पावन गुफा है। इस गुफा में शिवलिंग स्थापित है। पास ही पहाड़ पर भैरव मंदिर भी है। मान्यता है कि देवी की कृपा तभी होती है जब श्रद्धालु भैरव जी के दर्शन करते हैं। भैरव जी को उड़द की दाल व चावल का भोग लगाया जाता है।

विवाह में आ रही बाधाएं होती हैं समाप्त

मान्यता है कि गिरिजा देवी की कृपा से विवाह में आने वाली सभी बाधाएं समाप्त हो जाती हैं। बड़ी संख्या में युवक-युवतियां मनचाहा जीवन साथी पाने की इच्छा से मां के दरबार में आकर प्रसाद चढ़ाकर मन्नत मांगते हैं। साथ ही वह एक चुनरी भी बांधकर जाते हैं। इसके बाद जिन लोगों की मनोकामना पूरी होती है, वह पती-पत्नी के रूप में मां आशीर्वाद प्राप्त करने जरूर आते हैं। इसके अलावा नवविवाहित महिलाएं अपने सुहाग की लंबी उम्र के लिए आशीर्वाद प्राप्त करने आती हैं। माता की कृपा से यहां आने वाले निःसंतान जोड़ों को संतान की प्राप्ति होती है।

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मंदिर के त्योहार

वैसे तो सारा साल ही बड़ी संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शनों के लिए आते हैं। लेकिन कार्तिक पूर्णिमा पर कोसी नदी में स्नान करने के लिए भक्तों का तांता लग जाता है। यहां स्नान करने के बाद श्रद्धालु मां गिरिजा देवी के दर्शन करते हैं। साथ ही शिवरात्रि, बसंत पंचमी व नवरात्रि के अवसर पर भी भक्तों की संख्या आम दिनों से कई गुणा बढ़ जाती है।

कैसे पहुंचें

मंदिर तक पहुंचने के लिए नजदीकी शहर रामनगर है। रामनगर तक रेल गाड़ी व बस के द्वारा पहुंचा जा सकता है। रामनगर से टैक्सी के द्वारा श्रद्धालु मां गिरिजा देवी या गर्जिया देवी के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं।

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