भगवान श्री राम की वंशज राजकुमारी कैसे बनी कोरिया की पहली महारानी

-दैवीय संदेश के चलते हुआ था राजकुमारी का विवाह

प्रदीप शाही

सतयुग के बाद आए त्रेतायुग में भगवान श्री विष्णु हरि जी ने भारत की पावन धरती पर श्री राम के रुप में महाराजा दशरथ के घर जन्म ले इस धरती पर फैले अत्याचार, पाप, अधर्म को नाश किया। श्री राम के काल से जुड़ा इतिहास आज भी हमें सनातन धर्म की विश्व भर में फैली जड़ों से अवगत करवाता है। सबसे अहम बात यह है कि भगवान श्री राम के वंशज आज भी इस धरती पर विद्यमान है। आज हम आपको भगवान श्री राम की वंशज एक राजकुमारी के बारे बताएंगे। जिसे एक दैवीय संदेश के चलते कोरिया की पहली महारानी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस बाबत कोरिया का एक धार्मिक ग्रंथ सामगुक युसा इसकी पुष्टि भी करता है। सामगुक युसा प्राचीन चीनी भाषा में लिखित हैं। माना जाता है कि इसे 1280 के दशक में लिखा गया था।

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कौन थी राजकुमारी सूरीरत्ना ?

सूरीरत्ना अय़ोध्या के राजा की बेटी थी। सूरीरत्ना भगवान श्री राम की वंशज थी। राजा को एक दिन रात को दैवीय संदेश मिला कि वह अपनी बेटी सूरीरत्ना को कोरिया के राजा सूरो से विवाह करने के लिए भेजे। राजा सूरो एक दिव्य पुरुष हैं। राजा ने सुबह उठ कर अपनी बेटी सूरीरत्ना को रात के दैवीय संदेश बारे बताया। साथ ही अपनी बेटी को राजा किम सूरो से शादी करने के लिए अपने कुछ चुनींदा सैनिकों संग कोरिया भेज दिया। कोरिया को उस समय काया के नाम से संबोधित किया जाता था। सूरीरत्ना एक समूद्री जहाज के माध्यम से अयोध्या से चार हजार से अधिक दूरी वाले देश कोरिय़ा के लिए रवाना हो गई। कहा जाता है कि अयोध्या की राजकुमारी सूरीरत्ना कोरिया 48 ईसा पूर्व में गईं थी। कोरिया पहुंचते ही राजा सुरो ने सूरीरत्ना को पहचान लिया। सूरीरत्ना भी इस अतिथिभाव से हतप्रभ हो गई। कुछ दिनों बाद दोनों ने विवाह कर लिया था। इस का उल्लेख कोरिया के 11वी सदी में लिखित एक धार्मिक ग्रंथ सामगुक युसा में मिलता है। कहा जाता है कि सूरीरत्ना विवाह के बाद वापिस कभी भी अयोध्या नहीं गई। सामगुक युसा अनुसार सूरीरत्ना की मृत्य 157 साल की आयु में हुई थी।

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कौन थे राजा सूरो ?

कहा जाता है कि कोरिया में सबसे पहले नौ विद्वान लोग ही शासन करते थे। वहां पर कोई राजा नहीं होता था। एक दिन इन विद्वानों ने भगवान से अपना एक राजा नियुक्त करने की प्रार्थना की। तब भविष्यवाणी हुई कि आप सभी राज्य के सबसे उंचे पहाड़ पर जा कर नाचते गाते हुए प्रार्थना करें। तब उन्हें पर्वत की चोटी पर एक विशाल सोने का बॉक्स मिला। जिसमें सोने के छह अंडे थे। वह उस बॉक्स को लेकर वापिस आ गए। अगले दिन जब बॉक्स को खोला तो उसमें एक बालक था। यह दैवीय बालक कुछ दिन में व्यस्क हो गया। सभी विद्वानों ने उस बालक को राजा नियुक्त कर पूर्णिमा के दिन किम सूरो का नाम दिया। किम का मतलब स्वर्ण (सोना) होता है। नौ विद्वानों ने जब अपने राजा से शादी के लिए कहा। तो उसने कहा कि उसके साथ विवाह करने के लिए एक लड़की समूद्री यात्रा कर पहुंचेगी। जब सूरीरत्ना काया देश पहुंची। तो किम सूरो ने पहचान लिया। कुछ दिन बाद इनका विवाह हो गया। विवाह के बाद सूरीरत्ना का नाम हियो ह्वांग ओक रख दिया गया। जब शादी हुई उस समय सूरीरत्ना की आयु 16 साल की थी।

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राजा ने करवाया विशाल मंदिर का निर्माण

राजा किम सूरो कुछ समय बाद गिमहाई नामक स्थान पर एक मंदिर का निर्माण किया। जहां पर राजा किम सूरो की सूरीरत्ना से पहली बार मुलाकात हुई थी। वहां पर आज महारानी सूरीरत्ना (हियो ह्वांग ओक) की समाधि है। इस समाधि के सामने ही कुछ पत्थरों की शिलाएं रखी हुई है। कहा जाता है कि यह पत्थरों की शिला सूरीरत्ना अयोध्या से अपने साथ लाई थी। यह स्पष्ट हो चुका है कि इस तरह के पत्थर केवल अयोध्या में पाए जाते हैं। यह भी कहा जाता है कि इन पत्थरों में समुद्र की लहरों को शांत करने ताकत है। राजकुमारी सूरीरत्ना इसलिए इन पत्थरों को अपने साथ समूद्री जाहाज में लेकर आई थी। सबसे खास बात यह कि इन पत्थरों पर मछली के आकार वाला स्वास्तिक का निशान भी उकरा हुआ है। किमहये शहर में महारान सूरीरत्ना की एक बड़ी प्रतिमा भी स्थापित है। आज भी बड़ी संख्या में कोरिया के रहने वाले लोग अयोध्या आकर सूरीरत्ना को नमन करते हैं। कोरिया की 60 लाख की आबादी में से अधिकतर लोग अपने आप को सूरीरत्ना का वंशज मानते हैं।

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