श्री कृष्ण के दो पैसों ने कैसे बदली दरिद्र ब्राह्मण की तकदीर

-सखा अर्जुन को दी सीख

प्रदीप शाही

यह पूर्णतौर से सत्य है कि इंसान जैसी सोच रखता है। उसका परिणाम भी इंसान की सोच पर ही निर्भर करता है। जब हम केवल अपने सुख की कल्पना को ही पूर्ण करने की सोचते हैं। तो इसमें हमारा स्वार्थ सामने होता है। परंतु वहीं दूसरी तरफ जब हम किसी अन्य के दुख को दूर करने की तरफ एक कदम भी बढ़ाते हैं, तो हम प्रभु की ओर से प्रदान किए जाने वाले आशीर्वाद का ही एक हिस्सा बन जाते हैं। आज हम आपको महाभारत काल की एक ऐसी ही घटना के बारे बताते हैं। जिसमें वीर अर्जुन की ओर से एक ब्राह्मण की मदद के लिए प्रदान की गई स्वर्ण मुद्राओं की पोटली, माणिक भी व्यर्थ में चले जाते हैं। जबकि भगवान श्री कृष्ण की ओर प्रदान किए मात्र दो पैसे उस ब्राह्मण की तकदीर को बदल देते हैं। आखिर इस घटना से भगवान श्री कृष्ण ने अपने सखा अर्जुन को क्या नसीहत प्रदान की।

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वीर अर्जुन ने की दरिद्र ब्राह्मण की आर्थिक मदद

एक बार की बात है कि भगवान श्री कृष्ण और उनके सखा अर्जुन भ्रमण कर रहे थे। रास्ते में उन्हें एक ब्राहमण को भिक्षा मांगते देखा। तो अर्जुन को बहुत दुख हुआ। उन्होंने तुरंत ब्राहमण को स्वर्ण मुद्राओ से भरी एक पोटली दान में दे दी। ताकि वह अपने जीवन का सही ढंग से यापन कर सके। ब्राहमण ने स्वर्ण मुद्राओं को हासिल कर अर्जुन का आभार जता कर अपने सुंदर भविष्य की कल्पना कर घर की तरफ लौट चला। तभी रास्ते में एक लुटेरे ने ब्राह्मण से उससे स्वर्ण मुद्राओं की पोटली को छीन लिया। ब्राहमण बेहद दुखी हुआ। एक बार फिर उसे मजबूरन भिक्षा मांगना शुरु कर दिया। अगले दिन फिर अर्जुन जब उस ब्राहमण को भिक्षा मांगते देखा। तो उन्होंने उस ब्राह्मण से इसका कारण पूछा। ब्राहमण ने सारी जानकारी अर्जुन को दी। अर्जुन इस घटना को सुन कर बेहद आहत हुआ। उन्होंने एक बार फिर ब्राहमण को एक मूल्यवान माणिक प्रदान किया। ब्राहमण मूल्यवाण माणिक को जब घर लेकर पंहुचा। तो उसने माणिक को चोरी होने से बचाने के लिए घर में पड़े एक पुराने घड़े में रख दिया। ब्राहमण की पत्नी नदी में जल लेने जा रही थी। परंतु मार्ग में ही उसका घड़ा टूट गया। उसने सोचा घर में जो पुराना घड़ा पड़ा है। उसी में जल ले आती हूं। यह सोच कर घर में पड़े पुराने घड़े को उठा कर जल लेने चली गई। जैसे ही घड़ा पानी में डुबोया तो घड़े में पड़ा माणिक भी पानी में बह गया। जब ब्राह्मण को यह जानकारी मिली। तो वह अपने भाग्य को कोसने लगा। आखिर फिर से भिक्षा मांगने का काम करने लगा। अर्जुन को जब फिर से सारी घटना की जानकारी मिली। तो वह मन में सोचने लगे कि इस ब्राह्ण के जीवन में शायद सुख है ही नहीं।

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भगवान श्री कृष्ण ने ब्राह्मण को प्रदान किए दो पैसे

इस घटना के बाद भगवान श्री कृष्ण ने उस दरिद्र ब्राह्मण को अपनी तरफ से दो पैसे प्रदान कर दिए। ब्राह्मण वह पैसे ले कर चला गया। सखा अर्जुन ने ब्राह्मण के जाने के बाद कहा कि प्रभु, मेरी स्वर्ण मुद्राओं की पोटली और माणिक उस ब्राह्मण की दरिद्रता को नहीं समाप्त कर सका। तो आपके दिए दो पैसे कैसे गरीबी दूर कर सकेंगे। भगवान श्री कृष्ण अपने प्रिय सखा अर्जुन की बात सुन कर मुस्कराए और सखा अर्जुन से कहा कि वह उसके पीछे जाए। तुम्हें सारी स्थिति की जानकारी मिल जाएगी। वहीं दूसरी तरफ ब्राह्मण ने सोचा-भगवान श्री कृष्ण ने मुझे केवल यह दो पैसे दिए हैं। पता नहीं क्या सोचा है मेरे लिए। यही सोचता वह घर जाने लगा तभी रास्ते में उसकी नजर एक मछुआरे पर गई। मछुआरे के जाल में एक मछली फंसी हुई थी। जो छूटने के लिए तड़प रही थी। ब्राह्मण को मछली पर दया आ गई। उसने सोचा इन दो पैसों से तो एक दिन का खाना भी नहीं बन पाएगा। तब उसने मछली का सौदा कर उसे खरीद लिया। मछली को अपने कमंडल डाल नदी में डालने चल दिया। तभी कमंडल में मछली ने कुछ उगल दिया। जब ब्राह्मण ने देखा तो वह वही माणिक था। जो उसकी पत्नी के कारण नदी में बह गया था। ब्राह्मण माणिक मिलने पर खुशी से चिल्लाने लगा कि मिल गया, मिल गया…। इसी दौरान वह लुटेरा जिसने उस ब्राह्मण से उसकी स्वर्ण मुद्राओं की पोटली छीनी थी। वह घबरा गया। उसने सोचा ब्राह्मण ने उसे पहचान लिया। अब वह राज दरबार में मेरे बारे बता देगा। और मुझे कारावास हो जाएगी। तो उसने तुरंत ब्राह्मण को वह स्वर्ण मुद्राएं वापिस करते हुए माफी देने की गुहार लगाई। ब्राह्मण ने भी उसे माफ कर दिया।  वहीं ब्राह्मण श्री कृष्ण के दिए दो पैसों के महत्व को समझते हुए उनका आभार जताने लगा।

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श्री कृष्ण ने दी अपने सखा अर्जुन को सीख

वहीं अर्जुन इस सारी घटना को देख कर श्री कृष्ण के पास पहुंच कर उनके समक्ष नतमस्तक हो कर बोले प्रभु, तुम्हारी लीला अपरंपार है। मेरी ओर से दी गई स्वर्ण मुद्राएं और माणिक ने ब्राह्मण की दरिद्रता को दूर नहीं कर सके। आपके दो पैसों ने वह कर दिखाया। तब श्री कृष्ण ने कहा कि पार्थ, सत्य यह है कि जब तक ब्राह्मण ने तुम्हारी भेंट से केवल अपना भविष्य बनाने की सोची। तो उसमें उसका स्वार्थ था। परंतु मेरे दो पैसों की भेंट से वह अन्य का भला करने की सोचने लगा। तो वह प्रभु की उदारता को अपने मन में समा चुका था। इसीलिए उसका अपने आप ही भला हो गया। इसलिए इंसान को हमेशा दूसरों का भला करने के लिए तत्पर रहना चाहिए।

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