भगवान श्री कृष्ण के वंश के अंत का कारण बने ये दो श्राप

-बहेलिए के तीर लगने से हुई थी श्री कृष्ण जी की मौत
कहते हैं कि देवी देवताओं और इंसान की ओर से प्रदान किए वरदान और श्राप हमेशा फलित होते हैं। यह कभी भी व्यर्थ नहीं जाते हैं। यही वजह है कि भगवान श्री कृष्ण के वंश का अंत का कारण भी दो श्राप बने। क्या आप इन श्राप के बारे जानते हैं। यह श्राप कौरव माता गंधारी व ऋषियों की ओर से दिए गए थे। आईए आपको इन दोनो श्राप के बारे विस्तार से जानकारी प्रदान करते हैं।

इसे भी देखें….यहां हुआ था भगवान श्री कृष्ण का अंतिम संस्कार ||

भगवान श्री कृष्ण थे वृष्णि वंश से संबंधित
कहा जाता है कि मथुरा अंधक संघ की और द्वारिका वृष्णियों की राजधानी थी। ये दोनों स्थान ही यदुवंश की शाखाएं थीं। यदुवंश में अंधक, वृष्णि, माधव, यादव आदि वंश चला। श्रीकृष्ण वृष्णि वंश से थे। वृष्णि वंश ही वार्ष्णेय कहलाए। जो बाद में वैष्णव हो गए।

इसे भी देखें….भगवान शिव की अमूल्य भेंट बांसुरी को भगवान श्री कृष्ण ने क्यों तोड़ा?

श्री कृष्ण को गंधारी ने दिया श्राप
महाभारत का 18 दिनों तक चला भयावह युद्ध एकमात्र ऐसा युद्ध था। जिससे कई घटनाओं और कहानियों को जन्म दिया। इनका भारत के भविष्य पर भी असर हुआ। इस युद्ध के बाद तो भगवान श्री कृष्ण को भी श्राप तक का सामना करना पड़ा। महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद भगवान श्री कृष्ण गांधारी को अपने सौ पुत्रों की मृत्यु के शोक में विलाप करता देख सांत्वना देने उनके पास गए। भगवान श्रीकृष्ण के सांत्वना भरे वचन सुन गांधारी ने क्रोध में आकर उन्हें श्राप दे दिया। गंधारी ने कहा कि कृष्ण, तुम्हारे कारण जिस तरह से मेरे सभी पुत्रों का नाश हुआ है, उसी तरह तुम्हारे समूचे कुल का आपस में एक-दूसरे संग लड़ कर नाश हो जाएगा।

इसे भी देखें….भगवान श्री कृष्ण के आशीर्वाद से बर्बरिक कैसे बने कृष्णावतार…

ऋषियों ने भी दिया था यह श्राप
एक दिन विश्वामित्र, असित, दुर्वासा, कश्यप, वशिष्ठ और नारद आदि बड़े-बड़े ऋषि द्वारका के पास पिंडारक क्षेत्र में निवास कर रहे थे। सारण आदि किशोर जाम्बवती नंदन साम्ब को स्त्री वेश में सजाकर उनके पास ले गए। शास्त्रों के मुताबिक भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब द्वारिकापुरी में आए रुद्रावतार दुर्वासा मुनि के रूप, दुबले-पतले शरीर को देख उनकी नकल करने लगे।

इसे भी देखें….भगवान शिव ने क्या भेंट किया था भगवान कृष्ण को अनमोल उपहार…

अपमानित दुर्वासा मुनि ने साम्ब को कुष्ठ रोगी होने का श्राप दे दिया। फिर भी साम्ब नहीं माने। और वही हरकतें करते रहे। तब दुर्वासा मुनि के एक और श्राप दे दिया। साम्ब से लोहे का एक मूसल पैदा होगा। जो यदुवंश की बर्बादी और अंत का कारण बनेगा। केवल बलराम और श्रीकृष्ण पर उस मूसल का वश नहीं चलेगा। मुनियों की यह बात सुनकर वे सभी युवा बहुत डर गए। उन्होंने तुरंत साम्ब का पेट (जो गर्भवती दिखने के लिए बनाया गया था) खोलकर देखा तो उसमें एक मूसल मिला। इस मूसले के मिलने पर बच्चों ने राजा उग्रसेन को सारी जानकारी प्रदान की। राजा उग्रसेन ने उस मूसल का चूरा-चूरा कर डाला तथा उस चूरे व लोहे के छोटे टुकड़े को समुद्र में फिंकवा दिया। ताकि ऋषियों की भविष्यवाणी सही न हो। परंतु मूसल के उस टुकड़े को एक मछली निगल गई। और मूसल का चूरा लहरों के साथ फिर से समुद्र के किनारे आ गया और कुछ दिन बाद एरक (एक प्रकार की घास) के रूप में उग आया। मछुआरों ने उस मछली को पकड़ लिया। उसके पेट में जो लोहे का टुकडा था। उसे फेंक दिया। उसे जरा नामक बहेलिए ने अपने बाण की नोंक पर लगा लिया।

इसे भी देखें….यहां हुआ था भगवान श्री कृष्ण का अंतिम संस्कार ??


एक दिन श्री कृष्ण ने यदुंवशियों को तीर्थयात्रा पर चलने की आज्ञा दी। परंतु यदुवंशी आपस में लड़ने लगे। झगड़ा इतना बढ़ गया कि समुद्र किनारे उगी घास को उखाड़कर एक-दूसरे को मारने लगे। इस घास से ही यदुवंशियों का विनाश हो गया। क्योंकि यह घायल मूसल से ही पैदा हुई थी।

इसे भी देखें…भगवान श्री हरि विष्णु के इन अवतारों ने दिलाई धरती को पापों से मुक्ति

श्री कृष्ण की तीर लगने से हुई मौत

वहीं दूसरी तरफ बलरामजी स्वयं ही अपने शरीर का परित्याग कर समुद्र में प्रवेश कर गए। जबकि श्रीकृष्ण भूमि पर ध्यानस्थ थे। इसी दौरान जरा नामक बहेलिए उनके पैर में तीर मार दिया। जिससे श्री कृष्ण की मौत हो गई।

 

प्रदीप शाही

LEAVE A REPLY