-इस समय शुभ कार्य करने होते हैं प्रतिबंधित
प्रदीप शाही
हिंदू धर्मानुसार ग्रंथों में, पुराणानुसार भगवान श्री विष्णु हरि जी को परमेश्वर के तीन मुख्य स्वरुप में एक रुप माना जाता है। भारतीय धर्म ग्रंथों अनुसार त्रिमूर्ति में भगवान श्री ब्रह्मा जी, भगवान श्री विष्णु हरि और भगवान शिव शंकर हैं। त्रिमूर्ति में से भगवान श्री विष्णु हरि को इस सृष्टि का पालनहार माना जाता है। पालनहार भगवान श्री विष्णु जी के बारे बहुत कम लोग जानते हैं कि वह चार माह के लिए पाताल लोक में योग निद्रा करते हैं। आखिर इसके पीछे क्या रहस्य है। आईए, आज आपको इस रहस्य से अवगत करवाते हैं।
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भगवान श्री विष्णु हरि ने कैसे तोड़ा राजा बलि का अहंकार
पुराणानुसार सृष्टि के पालनहार भगवान श्री विष्णु की पत्नी माता लक्ष्मी है। भगवान श्री विष्णु का निवास क्षीर सागर माना जाता है। जबकि उनका शयन शेषनाग पर है। श्री विष्णु की नाभि से कमल उत्पन्न होता है। जिसमें भगवान श्री ब्रह्मा जी स्थित हैं। अपने नीचे वाले बाएं हाथ में कमल, अपने नीचे वाले दाहिने हाथ में गदा, उपर वाले बाएं हाथ में शंख और अपने उपर वाले दाहिने हाथ में सुदर्शन चक्र धारण करने वाले श्री विष्णु जी पाताल लोक में वास करने गए। इसका विशेष रहस्य है। कहा जाता है कि एक बार बलि नामक राजा ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया। इससे देव राज इंद्र बेहद चिंतित हो गए। देव राज इंद्र भगवान श्री विष्णु से इस समस्या के समाधान के लिए पहुंचे। देव राज इंद्र की इस प्रार्थना पर भगवान श्री विष्णु हरि ने वामन अवतार के रुप में अवतरित होकर राजा बलि से दान लेने पहुंच गए। राजा बलि से वामन अवतार ने तीन पग भूमि दान में मांगी। राजा बलि की स्वीकृति मिलने पर वामन अवतार ने अपने विशाल रुप में दो पग में समूची धरती और आकाश को नाप लिया। तीसरा पग रखने के लिए जब वामन अवतार ने राजा बलि से पूछा तो उसने अपना सिर आगे कर दिया। इस तरह से भगवान विष्णु ने राजा बलि के अहंकार को तोड़ते हुए तीनों लोक को राजा बलि से मुक्त करवाया। साथ ही राजा बलि को पाताल लोक का राजा बना दिया।
भगवान श्री विष्णु पाताल में वास करने पहुंचे
वामन अवतार के रुप में भगवान श्री विष्णु हरि जी, राजा बलि की दानशीलता और भक्ति को देखकर अति प्रसन्न हुए। उन्होंने राज बलि से वरदान मांगने को कहा। राजा बलि ने भगवान श्री विष्णु जी से कहा कि आप मेरे साथ पाताल चलें और वहां पर हमेशा मेरे संग निवास करें। भगवान विष्णु ने बलि को उसकी इच्छानुसार वरदान दिया। और राजा बलि संग पाताल चले गए। भगवान श्री विष्णु के इस फैसले से सभी देवी देवता और देवी लक्ष्मी चिंतित हो उठी। देवी लक्ष्मी ने अपने स्वामी भगवान श्री विष्णु जी को पाताल लोक से वापिस लाने का फैसला किया। देवी लक्ष्मी ने एक योजना बनाई। देवी लक्ष्मी ने एक गरीब स्त्री का रूप धारण किया औऱ राजा बलि के पास पहुंच गई। राजा बलि के पास पहुंच कर उन्होंने राजा बलि को राखी बांध कर अपना भाई बना लिया। इसके बाद अपने स्वामी भगवान विष्णु को पाताल से मुक्त करवाने का वचन मांग लिया। इस तरह से भगवान विष्णु को पाताल लोक से देवी लक्ष्मी ने मुक्त करवाया।
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भगवान विष्णु ने दिया राजा बलि को वरदान
भगवान विष्णु अपने भक्त को निराश नहीं करना चाहते थे। ऐसे में उन्होंने राजा बलि को वरदान दिया कि वह हर साल आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक पाताल लोक में निवास करेंगे। यही कारण है कि इन चार महीनो में भगवान विष्णु पताल में योगनिद्रा में रहते हैं। पाताल लोक में भगवान श्री विष्णु का वामन अवतार रुप वास करता है। शास्त्रानुसार इस समय के दौरान हमें कोई शुभ कार्य नही करना चाहिए। इसीलिए इस समय दौरान शादी, जनेऊ संस्कार, मुंडन संस्कार, मकान की नींव डालने का कोई भी काम नहीं किया जाता है।
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