-कहां-कहां पर हैं माता के 51 शक्ति पीठ
प्रदीप शाही
इस सृष्टि की रचना भगवान श्री ब्रह्मा, भगवान श्री विष्णु और भगवान महेश ने की। कई बार ऐसी घटनाएं भी घटित हुई है कि यह त्रिदेव आमने-सामने भी हो गए। परंतु आज हम आपको एक ऐसे रहस्य से अवगत करवाते हैं। जब भगवान शिव के तांडव को रोकने के लिए भगवान श्री विष्णु हरि को अपने सुदर्शन चक्र का सहारा लेना पड़ा। आखिर क्या था, ऐसा कारण। जो ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हुई।
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भगवान श्री ब्रह्मा के पुत्र प्रजापति दक्ष हैं भगवान शिव के ससुर
त्रिदेवों में से एक भगवान श्री ब्रह्मा के पुत्र दक्ष हैं। दक्ष को समूचे ब्रह्मांड का अधिपति नियुक्त किया गया। इस उच्च पद पर नियुक्त होने के बाद दक्ष में अहंकार पैदा हो गया। भगवान शिव का विवाह प्रजापति दक्ष की बेटी सती के साथ हुआ। परंतु अधिपति दक्ष अपने दामाद भगवान शिव को पसंद ही नहीं करते थे। एक बार प्रजापति दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया। प्रजापति दक्ष ने अपनी पुत्री सती और दामाद देवों के देव महादेव को छोड़ कर अन्य सभी देवी-देवताओं को इस विशाल यज्ञ में आमंत्रित किया। देवी सति को जब अपने पिता के इस फैसले की जानकारी मिली तो उन्हें अपने पिता पर बहुत क्रोध आया। क्रोधित देव सती ने अपने स्वामी भगवान शिव से अपने पिता से इसका प्रश्न पूछने के लिए जाने की अनुमति मांगी। भगवान शिव के इंकार करने के बावजूद देवी सती यज्ञ में शामिल होने चली गई। यज्ञ स्थल पर पहुंच कर अपने पिता प्रजापति दक्ष से न बुलाने का कारण पूछा। तो प्रजापति दक्ष ने भगवान शिव के बारे अपशब्द बोलने शुरु कर दिए। अपने स्वामी का अपमान न सहते हुए उन्होंने हवन कुंड में ही आत्मदाह कर लिया।
महादेव की जटाओं से उत्पन्न हुए वीरभद्र, महाकाली
देवी सती के हवन कुंड में आत्मदाह करने की जानकारी मिलते ही भगवान शिव क्रोधित हो गए। क्रोधित भगवान शंकर ने अपनी जटा को उखाड़ कर जमीन पर दे मारा। इससे वीरभद्र औऱ महाकाली उत्पन्न हुई। क्रोधित देवों के देव महादेव ने वीरभद्र और महाकाली को प्रजापति दक्ष का यज्ञ नष्ट करने के आदेश दिए। वीरभद्र और महाकाली ने पल भर में प्रजापति दक्ष के यज्ञ को नष्ट कर दिया। इतना ही नहीं प्रजापति दक्ष का सिर काट कर उसी हवन कुंड में फैंक दिया।
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भगवान शिव ने शुरु किया तांडव
भगवान शिव शंकर ने हवन कुंड से देवी सती के पार्थिव शरीर को निकाल कर अपने कंधे पर रख पूरे ब्रह्मांड में तांडव करने लगे। भगवान शिव के क्रोध से समूची सृष्टि जलने लगी। सभी देवी-देवताओं ने भगवान श्री ब्रह्मा, भगवान श्री विष्णु हरि से भगवान शिव के तांडव को रोकने की प्रार्थना की। ताकि सृष्टि को नष्ट होने से बचाया जा सके।
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भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर को काटा डाला
तब भगवान श्री विष्णु जी ने भगवान शिव के तांडव को रोकने के लिए सुदर्शन चक्र की सहायता से शिव के कंधे पर रखे देवी सती के शरीर को 51 टुकड़ों में विभाजित कर दिया। देवी सती के शरीर के जिस-जस स्थान पर पावन अंग कट कर गिरे। उन्हीं स्थानों पर आज शक्ति पीठ की स्थापना की हुई है। गौर हो अगले जन्म में देवी सती ने पार्वती के रुप में जन्म लिया। कठोर तप कर भगवान शिव को अपने स्वामी के रुप में हासिल किया।
कहां-कहां पर स्थापित हैं माता के 51 शक्ति पीठ
देवी पुराण में भी माता के 51 शक्ति पीठों का उल्लेख मिलता है। देश के विभाजन के बाद भारत में माता के 51 शक्ति पीठ में से 42 शक्ति पीठ ही रह गए हैं। जबकि बांगलादेश में चार, नेपाल में दो, पाकिस्तान, तिब्बत, श्री लंका में एक-एक शक्ति पीठ है।
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