देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु बरसाएंगे कृपा, जानिए कैसे ?

धर्मेन्द्र संधू

हिन्दू धर्म में व्रत व पर्व श्रद्धा व उत्साह के साथ मनाए जाते हैं। इन्हीं में से एक पर्व है ‘देव उठनी एकादशी’। इस दिन भगवान विष्णु जी चार महीने की नींद के बाद जागते हैं। इसे ‘देवोत्थान एकादशी’ व ‘देव उठनी ग्यारस’ भी कहा जाता है। इसी दिन भगवान विष्णु के स्वरूप शालिग्राम जी का तुलसी के साथ विवाह कार्य भी संपन्न किया जाता है। देव उठनी एकादशी के बाद ही शुभ कार्यों व शादियों का आरंभ होता है।

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आखिर क्यों विष्णु जी सोते हैं चार महीने

पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु असुरों का संहार करने और अपने भक्तों पर कृपा करने के कारण कई वर्षों तक जागते रहते थे। इसके बाद अगर भगवान विषणु सोते थे तो लाखों वर्षों तक सोए रहते थे। विष्णु जी के ऐसा करने से माता लक्ष्मी जी को विश्राम करने में कठिनाई होती थी। इस समस्या के समाधान के लिए मां लक्ष्मी ने विष्णु जी से कहा कि आप समयानुसार नहीं सोते और अगर सोते भी हैं तो वर्षों के लिए अचानक सो जाते हैं। अगर आप हर साल नियमानुसार सोएंगे तो मैं भी विश्राम कर सकूंगी। माता लक्ष्मी को उत्तर देते हुए विष्णु जी ने कहा कि मेरे जागने से आपके साथ ही सभी देवों को भी कष्ट होता है। इसीलिए अब से मैं प्रतिवर्ष चार माह की निद्रा लूंगा। मान्यता है कि तब से भगवान विष्णु जी आषाढ़ शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी से लेकर कार्तिक मास की देवउठनी एकादशी तक यानि चार महीनों के लिए सोते हैं। देवउठनी एकादशी के बाद ही शुभ कार्यों का आरंभ होता है। खासकर हिन्दू धर्म में  इसके बाद ही विवाह-शादियां करने का सिलसिला शुरू हो जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ ही सभी देवता भी योग निद्रा से जागते हैं।

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देवउठनी एकादशी से एक और कथा भी जुड़ी है। कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को दैत्य शंखासुर का वध किया था। भगवान विष्णु और दैत्य शंखासुर के बीच चले लंबे युद्ध के बाद भगवान विष्णु थकने के बाद गहरी निद्रा में चले गए। इसके बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को उनकी नींद खुली तो सभी देवी-देवताओं ने भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की।

देवउठनी एकादशी का व्रत

देवउठनी एकादशी के व्रत का विशेष महत्व है। इस व्रत से घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है। देवउठनी या देवोत्थान एकादशी का नियमानुसार व्रत रखने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। व्रत रखते समय कुछ बातों का ध्यान जरूर रखें। इस दिन आप निर्जल रहते हुए व्रत रख सकते हैं या फिर केवल तरल पदार्थों का सेवन कर सकते हैं। अगर किसी कारण आप व्रत नहीं रख सकते तो केवल चावल व नमक के साथ ही लहसुन, प्याज़ आदि से परहेज़ करें। भगवान विष्णु की आराधना करते हुए सारा दिन ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः’ का जाप करने से भगवान की कृपा प्राप्त होती है।

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देवउठनी एकादशी पर ऐसे करें पूजा

देवउठनी एकादशी पर पूरे विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए। गन्ने का मंडप बनाकर उसमें बनाए गए चौक पर भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करें। इस चौक के साथ ही भगवान विष्णु के चरण चिन्ह बनाकर उन्हें ढक दें। इसके बाद भगवान को फल व मिठाई चढ़ाएं। साथ ही पूरी रात घी का एक अखंड दीपक जलाएं। सुबह उठकर स्नान आदि कार्यों को पूरा कर भगवान के चरणों की पूजा करें और भगवान के चरणों को स्पर्श करते हुए उन्हें जगाएं। भगवान विष्णु के चरण स्पर्श करने से सदैव उनकी कृपा बनी रहती है।

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पीपल के पेड़ के नीचे पाठ करने का महत्व

शास्त्रों के अनुसार देवउठनी एकादशी के दिन सुबह व शाम को किसी मंदिर में लगे पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर सुभाषित पाठ करने का विशेष महत्व है। इससे भगवान का आशीर्वाद मिलता है और हर मनोकामना पूरी होती है व पापों से मुक्ति मिलती है।

भगवान विष्णु के साथ ही करें इनकी पूजा

भगवान विष्णु के साथ ही तुलसी व सूर्य नारायण की पूजा करने का भी विधान है। मान्यता है कि इनकी पूजा के बिना देवउठनी एकादशी का व्रत सफल नहीं माना जाता। सूर्य देव की पूजा का इस लिए महत्व है कि सूर्य प्रकाश का पुंज होने के कारण भगवान विष्णु का स्वरूप माना जाता है जो अपने प्रकाश से पूरे संसार को आलोकित करता है। देवउठनी एकादशी को ही तुलसी पूजन व तुलसी विवाह की परंपरा है। इस लिए इन तीनों की पूजा से मनोकामनाएं पूरी होती हैं व विशेष फल की प्राप्ति होती है।

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तुलसी पूजा से बनते हैं विवाह के योग

जिन लड़के-लड़कियों के विवाह में कोई बाधा आती है, उन्हें सुबह व शाम के समय स्नान करके गाय के घी का दीपक जलाना चाहिए और तुलसी की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद पीले रंग के आसन पर बैठकर तुलसी चालीसा का पाठ करना चाहिए। इससे लड़के व लड़की के विवाह में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और विवाह के शीघ्र योग बनते हैं।

मुहूर्त न निकलने से परेशान लोग इस दिन कर सकते हैं शादी

देवउठनी एकादशी से मांगलिक कार्यों व विवाह शादियों का दौर शुरू हो जाता है। जो लोग शुभ मुहूर्त न मिलने के कारण विवाह का दिन नहीं रख पा रहे, उनके लिए देवउठनी एकादशी का दिन शुभ माना जाता है। इस दिन मुहूर्त निकलवाने की जरूरत नहीं पड़ती। इस दिन बिना किसी मुहूर्त के ही किया गया शादी-विवाह शुभ माना जाता है।

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