-आज भी उज्जैन में स्थापित है इस राजा की गुफा
प्रदीप शाही
भारत की प्राचीन विरासत को विश्व भर की संस्कृति में सबसे उत्कृष्ट माना गया है। भारत की इस पावन धरती पर देवी-देवताओं ने अवतरित हो कर अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना की। इतना ही नहीं कई राजाओं ने भी धर्म की स्थापना के अलावा कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की भी रचना करने में अपना अहम योगदान दिया। भारत के ही एक ऐसे राजा भी हुए। जिन्होंने ‘वैराग्य शतक’, ‘श्रृंगार शतक’ और ‘नीति शतक’ की रचना की। इस राजा की उज्जैन में आज भी गुफा विद्यमान है। आखिर कौन थे, यह राजा। जिनके रचित ग्रंथ आज भी साहित्य में विशेष स्थान रखते हैं।
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कौन थे राजा भर्तृहरि ?
राजा भर्तृहरि का उज्जैन में राज था। राजा भर्तृहरि, राजा विक्रमादित्य के बड़े भाई थे। विक्रमादित्य के राजा बनने से पहले राजा भर्तृहरि का ही उज्जैन में राज था। राजा भर्तृहरि के बारे एक कथा प्रचलित है। जिस अनुसार एख बार महान योगी गोरखनाथ का उज्जैन में आगमन हुआ। योगी गोरखनाथ, राजा भर्तृहरि के दरबार में पहुंचे। राजा भर्तृहरि ने योगी गोरखनाथ का राज दरबार में पहुंचने पर भव्य स्वागत किया। योगी गोरखनाथ, राजा भर्तृहरि की आवभगत से बेहद प्रसन्न हुए।
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गुरु गोरखनाथ ने राजा भर्तृहरि को किया फल भेंट
उन्होंने राजा भर्तृहरि को एक फल देते कहा कि वह इस के सेवन से हमेशा युवा व सुंदर बने रहेंगे। साथ ही वह कभी भी बूढे नहीं होंगे। राजा भर्तृहरि ने फल ग्रहण कर योगी गोरखनाथ को आदर सत्कार से विदा किया। गुरु गोरखनाथ के जाने के बाद राजा भर्तृहरि ने सोचा कि उन्हें जवानी और सुंदरता की क्या जरुरत है। वह अपनी पिंगला नामक पत्नी से विशेष प्रेम करते थे। इसलिए उन्होंने वह फल अपनी रानी को प्रदान कर दिया। ताकि उसकी पत्नी हमेशा सुंदर व युवा बनी रहे। राजा की यह पत्नी पिंगला राज्य के कोतवाल से प्रेम करती थी। यह बात राजा भर्तृहरि को मालूम नहीं थी। रानी पिंगला ने सोचा यदि उसका प्रेमी हमेशा युवा बना रहेगा। तो यह उसके लिए खुशी की बात है। रानी पिंगला ने वह फल कोतवाल को दे दिया। वहीं कोतवाल एक दासी से प्रेम करता था। उसने वह फल अपनी प्रेमिका दासी को भेंट कर दिया। ताकि वह हमेशा उसकी इच्छाओं की पूर्ति करती रहे। दासी ने सोचा यदि वह इस फल का सेवन कर लेगी, तो वह इस नर्क जैसे काम से निजात कभी नहीं पा सकेगी। तब उसने सोचा कि यदि हमारा राजा हमेशा युवा रहेगा। तो राज्य खुशहाल रहेगा। ऐसे में दासी उस फल को राजा को भेंट करने पहुंच गई।
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राजा भर्तृहरि ने जब योगी गोरखनाथ से मिले फल को वापिस मिलते देखा तो उसने दासी से पूछा कि यह फल तुम्हें किसने दिया। दासी ने कोतवाल का नाम ले दिया। कोतवाल को जब बुलाया तो उसने डरते-डरते रानी पिंगला के बारे बता दिया। राजा सारी जानकारी मिलने पर दुखी हो गया। अपनी पत्नी से मिले धोखे के कारण मन में वैराग्य पैदा हो गया। अपना संपूर्ण राज-पाठ अपने छोटे भाई विक्रमादित्य को सौंप कर एक गुफा में तपस्या करने चले गए। कहा जाता है कि यह सब गुरु गोरखनाथ की ही लीला थी।
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कहां पर है स्थित है वह गुफा
उज्जैन के बाहर एक सुनसान स्थान पर शिप्रा नदी के किनारे पर एक गुफा आज भी विद्यमान है। गुफा के अंदर जाने का रास्ता काफी संकरा है जहां अंदर जाने पर सांस लेने में भी कठिनाई महसूस होती है। इस गुफा के दो हिस्से हैं। पहली गुफा काफी छोटी है। छोटी गुफा राजा भर्तृहरि (तपस्वी भरभरी) के भतीजे गोपीचंद की कही जाती है। गुफा के अंत में राजा भर्तृहरि की एक प्रतिमा भी लगी हुई है। इस गुफा में राजा भर्तृहरि ने 12 वर्षों तक कठोर तपस्या की थी। यही पर राजा भर्तृहरि ने कई ग्रंथों की रचना की। इनमें ‘वैराग्य शतक’, ‘श्रृंगार शतक’ और ‘नीति शतक’ काफी चर्चित हैं। यह तीनों ग्रंथ आज भी उपलब्ध हैं। राजा भर्तृहरि की प्रतिमा के समक्ष एक धुनी भी है। जिसकी राख हमेशा गर्म ही रहती है। प्रतिमा के पास ही एक अन्य गुफा का रास्ता भी है। इस दूसरी गुफा के विषय में ऐसा कहा जाता है कि यहां से चारों धाम को जाने का रास्ता निकलता है।