एक ऐसा मंदिर जहा होती है भस्म से आरती , जिनके दर्शन मात्र से होता है कालसर्प दोष दूर

-वंदना

एक ऐसा मंदिर जहां देश-विदेश से श्रद्धालु पूरे साल दर्शन करने आते हैं |मगर कुंभ के दौरान यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं |यह मंदिर अति प्राचीन होने के साथ-साथ भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है |मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित है महाकालेश्वर मंदिर |

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मंदिर का इतिहास

पुराणों , महाभारत और कालिदास जैसी अनमोल रचनाओं में इसका वर्णन मिलता है | यह स्वयंभू होने के साथ-साथ दक्षिणा मुखी भी है |जिससे यह अत्यंत फलदाई बन जाता है इसके दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है | कहा जाता है कि सन 1235 में इल्तुतमिश ने इसे विध्वंस करने की कोशिश की और शिवलिंग तुड़वाकर फेंक दिया था लेकिन इसके बाद भी सभी शासकों ने पुनः इस मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कर इसके जीर्णोद्धार व सौंदर्यीकरण पर विशेष ध्यान दिया और अंततः मंदिर अपने वर्तमान स्वरूप को प्राप्त कर सका |

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मंदिर की रचना

मंदिर एक परकोटे में स्थित है | यह मंदिर मुख्य रूप से तीन हिस्सों में विभाजित है | ऊपरी हिस्से में नागचंद्रेश्वर मंदिर , नीचे ओमकारेश्वर मंदिर और सबसे नीचे महाकाल मुख्य ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान है | जहां शिव, पार्वती, गणेश व कार्तिकेय जी की मूर्तियों के भी दर्शन होते हैं| इसके साथ ही यहां पर एक कुंड भी है जहां स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं |इस कुंड को कोटि तीर्थ भी कहते हैं |कहा जाता है कि इल्तुतमिश ने शिवलिंग तुड़वाकर इसी कोटि तीर्थ में फिकवा दिया था | बाद में शिवलिंग की पुनः प्राण प्रतिष्ठा करवाई गई थी | साथ ही मुख्य द्वार का भी निर्माण करवाया गया इसके बाद श्रद्धालुओं की अपार भीड़ के कारण अन्य मार्ग भी बनवाए गए |श्रद्धालुओं को किसी तरह की कोई परेशानी ना हो इसके लिए समिति बनाई गई | वही सभी कार्य सुचारू रूप से करती है | प्रचलित कथाओं के अनुसार असुर हुआ करता था जिसने सब का जीना दूभर कर रखा था| इस असुर से सभी निवासी बहुत परेशान थे सभी निवासियों की रक्षा के लिए महाकाल वहां प्रकट हुए और असुर का वध किया| फिर भक्तों की प्रार्थना पर भगवान शिव यहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होकर यही विराजित है |

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पुराणों में है उल्लेख

वैसे उज्जैन का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है कहा जाता है कि श्री कृष्ण की शिक्षा भी यही हुई थी |

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भस्म आरती से जुड़े रहस्य

इस मंदिर में सुबह भस्म आरती भी की जाती है और माना जाता है कि जो इस भस्म आरती में शामिल होता है उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और इसमें शामिल हुए बिना दर्शन अधूरे माने जाते हैं कहा यह भी जाता है कि इस मंदिर में जो भस्म आरती होती है| वर्षों पहले इसकी भस्म शमशान से लाने की परंपरा थी लेकिन अब कपिला गाय के गोबर से बने कंडे शमी पीपल पलाश बाढ़ अमलतास बेटी की लकड़ियों को जलाकर भस्म तैयार की जाती है| इसे कपड़े से छानकर काम में लिया जाता है| भस्म आरती को सृष्टि का सार माना जाता है इसलिए भगवान इसे हमेशा धारण किए रहते हैं | यहां भस्म आरती के समय कुछ नियमों का भी पालन किया जाता है| आरती के समय महिलाओं को घूंघट करना पड़ता है| वैसे महिलाएं यहां ना आए तो ही बेहतर है| पुजारी को भी केवल धोती पहनकर ही आरती करनी होती है |अन्य किसी भी प्रकार के वस्त्र धारण करने की कोई अनुमति नहीं है|

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महाकाल के दर्शन से होता है कालसर्प दोष दूर

यहाँ के निवासियों का और ज्योतिषाचार्यों का यह भी कहना है कि महाकाल के दर्शन से कालसर्प दोष दूर होता है | चाहे वह अर्ध कालसर्प दोष हो या पूर्ण | सभी दोष दूर हो जाते है |

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रोगों से मिलती है मुक्ति

भगवान शिव को शमशान का साधक माना जाता है| अतः भस्म को उनका श्रंगार आभूषण माना जाता है मान्यता यह भी है कि ज्योतिर्लिंग पर चढ़े भस्म को प्रसाद के रूप में ग्रहण करने से सभी रोग दोषों से मुक्ति मिलती है।

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सरकार से मिलने वाली सुविधाएं

कुंभ में श्रद्धालुओं को कोई परेशानी ना हो इसके लिए सरकार की तरफ से भी विशेष आयोजन किया जाता है समिति अच्छी तरह से श्रद्धालुओं को दर्शन कराती है साथ ही इंटरनेट पर भी दान करने की व्यवस्था यहां पर शुरू की जा चुकी है|

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