हर धर्म के लोगों को इस मंदिर में मिलती है आत्मिक शांति

डॉ.धर्मेन्द्र संधू

हिमाचल प्रदेश को देव भूमि कहा जाता है। इसके हर कोने में विभिन्न देवी-देवताओं को समर्पित मंदिर मौजूद हैं। इनके अलावा हिमाचल में एक ऐसा मंदिर भी है जो हिन्दू धर्म से संबंधित नहीं है फिर भी हिमाचल के कांगड़ा जिले में घूमने जाने वाले पर्यटक इस मंदिर में जरूर जाते हैं।

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दलाई लामा मंदिर या बोध टेंपल

दलाई लामा मंदिर या बोध टेंपल हिमाचल प्रदेश के मैकलॉडगंज नामक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल में स्थित है। इस मंदिर को ‘त्सुगलाखंग मंदिर’ के नाम से भी जाना जाता है। बड़ी संख्या में पर्यटक इस शांतमयी स्थल के दर्शन करने के लिए आते हैं। मैकलॉडगंज के बाज़ार से होते हुए पैदल ही पर्यटक व श्रद्धालु मंदिर के मुख्य गेट तक पहुंचते हैं। मैकलॉडगंज के मुख्य चौक से मंदिर की दूरी 1 किलोमीटर के करीब है। इसके अलावा कई स्थानों पर मंदिर की दूरी को दर्शाते बोर्ड लगे हुए हैं। मंदिर में मुख्य गेट से प्रवेश करते ही एक स्मारक दिखाई देता है जो बोध धर्म, तिब्बती संस्कृति, तिब्बतियों के संघर्ष व शहीदों की स्मृति का प्रतीक है। इस स्मारक से आगे सीढ़ियों से होते हुए मंदिर तक पहुंचा जाता है। मंदिर में अंदर पहुंचते ही महात्मा बुद्ध की विशाल मूर्ति के दर्शन होते हैं। मंदिर में एक अखंड ज्योति भी देखी जा सकती है। मंदिर की दीवारों पर बोध धर्म से संबंधित चित्र देखे जा सकते हैं। मंदिर के अंदर एक बड़ा हाल भी है जहां पर प्रार्थना सभा का आयोजन किया जाता है। मंदिर की परिक्रमा के समय लोग प्रार्थना के बेलनाकार पहियों को घुमाते हैं। इन पहियों पर तिब्बती प्रार्थना के मंत्र उत्कीर्ण किए गए हैं। इन पहियों को घुमाना मंदिर के अनुष्ठानों व प्रार्थना का एक अंग है। इस मंदिर में भगवान बुद्ध, अवलोकवितेश्वर, पमसम्भव के साथ ही अन्य की कई विशाल मूर्तियों के दर्शन होते हैं। इसके अलावा मंदिर में सहेजकर रखे गए धार्मिक ग्रन्थ व प्राचीन पुस्तकें भी विशेष दर्शनीय हैं। मंदिर में कई स्थानों पर 14वें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो के चित्र भी लगे हुए हैं। मंदिर में बोध भिक्षु व लामा प्रार्थना करते हुए देखे जा सकते हैं। मंदिर में प्रवेश से पहले पर्यटकों को चेकिंग प्रक्रिया से गुज़रना पड़ता है।

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मैकलॉडगंज का इतिहास

भारत में ब्रिटिश शासन के समय धौलाधार की पहाड़ियों में स्थित मैकलॉडगंज एक प्रमुख हिल स्टेशन था। इस स्थान पर अंग्रेज अधिकारी गर्मियों का समय बिताया करते थे। मैकलॉडगंज का नामकरण तत्कालीन अंग्रेज़ अधिकारी सर डोनाल्ड फ्रेल मैकलियोड के नाम पर किया गया था। हिन्दी में ‘गंज’ शब्द का अर्थ ‘पड़ोस’ होता है।

मार्च 1959 में, 14वें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ तिब्बत में हुए विद्रोह के बाद भारत आ गए थे। इसके बाद भारत सरकार ने उन्हें धर्मशाला में शरण दी। 1960 के बाद मैकलॉडगंज उनका आधिकारिक निवास बना और आज यह स्थान बौद्ध धर्म को मानने वाले व हजारों तिब्बती शरणार्थियों का निवास स्थान है। तिब्बतियों की बड़ी आबादी के कारण इसे ‘लिटिल ल्हासा’ या ‘धासा’ के नाम से भी जाना जाता है।

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1989 को जन्मे गेन्धून छोयकी नीमा को 14 मई 1995 को धर्म गुरु दलाई लामा ने 10वें पेन्छन लामा के स्थान पर पेन्छन लामा घोषित कर दिया था। लेकिन 17 मई 1995 को पेन्छन लामा परिवार सहित गुम हो गया था। इसके बाद 1996 में चीनी अधिकारियों ने स्वीकार किया था कि पेन्छन लामा व उसका परिवार चीन की सुरक्षा में है। आज भी तिब्बती समुदाय पेन्छन लामा की सुरक्षा को लेकर चिंतित है और चीन इस मामले पर आज तक चुप्पी साधे हुए है। पेन्छन लामा को दुनिया का सबसे कम उम्र का राजनैतिक कैदी माना जाता है।

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मैकलॉडगंज के मुख्य आकर्षण

पहाड़ों में बसे जिला कांगड़ा के शहर धर्मशाला के नजदीक स्थित है प्रसिद्ध पर्यटन स्थल मैकलॉडगंज। शाम के समय इस पहाड़ी क्षेत्र का नजा़रा देखते ही बनता है। पहाड़ों के पीछे छिप रहा सूर्य सभी को आकर्षित करता है। जब मैकलॉडगंज में हल्का अंधेरा छाने लगता है तो धौलाधार की पहाड़ियों के ऊपर पड़ रही हल्की धूप को देखने के लिए पर्यटक ऊंचे स्थानों पर जमा होने शुरू हो जाते हैं। आसमान का रंग ऐसा दिखता है मानो किसी चित्रकार ने किसी बहुरंगी कला कृति की रचना की हो। मंदिर परिसर में एक छोटा सा तिब्बत संग्रहालय भी बना हुआ है।

इसके अलावा यहां के पकवानों खासकर मोमोस का लुत्फ भी उठाया जा सकता है। पर्यटक हल्की व भारी ठंड में गर्मागर्म  मोमोस खाते हुए देखे जा सकते हैं। मोमोस यहां का स्वादिष्ट स्नैक्स है।

तिब्बतियों द्वारा स्थापित दुकानों पर बोध धर्म से संबंधित पुस्तकें, कपड़े व बोध धर्म के चिह्नों के साथ ही पत्थर व धातुओं की बनी हुई मूर्तियां खरीदी जा सकती हैं।

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यह मंदिर दलाई लामा के निवास स्थान के बिल्कुल नजदीक स्थित है। दलाई लामा इस मंदिर में हर साल दो या तीन बार आते हैं। ध्यान लगाने के लिए व मानसिक शांति पाने के लिए यह एक बढ़िया स्थान है।

दलाई लामा मंदिर में कब जाएं ?

दलाई लामा मंदिर में हर धर्म के लोग जा सकते हैं। वैसे तो सारा साल ही बड़ी संख्या में पर्यटक इस मंदिर में आते हैं। लेकिन इस मंदिर के दर्शन करने का सबसे बढ़िया समय सितंबर से जून तक  है। क्योंकि जुलाई-अगस्त के महीने में धर्मशाला सहित हिमाचल के ऊपरी हिस्सों में भारी बरसात होती है। हालांकि दिसंबर व जनवरी में इस स्थल का नज़ारा देखने योग्य होता है लेकिन फिर भी इन महीनों में अगर आप यहां जाने का कार्यक्रम बना रहे हैं तो पहले कांगड़ा के मौसम के बारे में पूरी जानकारी हासिल कर लें क्योंकि इन दिनों इस पूरे इलाके में भारी बर्फबारी होती है। जिसके कारण सड़क मार्ग बाधित हो जाते हैं और लंबे जाम में फंसने की संभावना बनी रहती है।

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दलाई लामा मंदिर तक कैसे पहुंचें ?

मैकलॉडगंज तक बस व टैक्सी द्वारा आसानी से पहुंच सकते हैं। कांगड़ा से धर्मशाला व मैकलॉडगंज तक हिमाचल राज्य परिवहन की बसें व प्राइवेट बसें चलती हैं। इसके अलावा आप अपनी कार के द्वारा भी पहुंच सकते हैं। धर्मशाला से मैकलॉडगंज की दूरी 10 किलोमीटर है। हिमाचल प्रदेश के शहर कांगड़ा तक पंजाब के शहरों रोपड़ व नंगल से होते हुए बस या टैक्सी के द्वारा पहुंच सकते हैं। पठानकोट से भी सीधा सड़क मार्ग कांगड़ा तक जाता है। निकटतम रेलवे स्टेशन पठानकोट है जो यहां से 90 किलोमीटर की पर स्थित है। साथ ही पठानकोट से एक छोटी रेल गाड़ी कांगड़ा से होते हुए जोगिन्द्र नगर तक जाती है। मंदिर का नजदीकी हवाई अड्डा गग्गल एयर पोर्ट है। गग्गल एयर पोर्ट से मैकलॉडगंज की दूरी 25 किलोमीटर के करीब है।

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