शिव की भूमिका विनाशक की, तो फिर पूजा क्यों ?

सनातन धर्म में मुख्य रूप से प्रचलित दो प्रमुख मतों शैव और वैष्णव की बात करें तो हिंदूधर्म में ज्यादातर त्यौहार वैष्णव मत से ही हैं। अधिकतर में सृष्टि के पालनहार भगवान श्री विष्णू के ही अवतारों की अराधना में आयोजित होने वाले महोत्सव हैं। इसके बाद शिव और शक्ति की उपासना में संख्या की दृष्टि से शक्ति यानि मां दुर्गा, श्री लक्ष्मी और मां सरस्वती पर ही केंद्रीत है।

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दिलचस्प है कि हिंदू धर्म में त्रिदेव यानि ब्रह्मा जी, श्री विष्णू और आदिगुरू श्री महेश को कहा गया है। इनमें ब्रह्मा जी सृष्टि का जन्मदाता यानि रचनाकार, श्री विष्णू को पालनहार अथवा संचालक और महेश यानि भगवान शिव को विनाशक और विध्वंसक कहा गया है। ऐसे में सवाल उठना स्वभाविक है कि रचनाकर्ता और पालनकर्ता की पूजा तो ठीक है पर नष्ट करने वाले भगवान की अराधना क्यों? जो महादेव अपने तांडव से दुनिया समाप्त कर सकते है! जो अपने त्रिनेत्र से दुनिया को भस्म कर सकते हैं उनकी पूजा-अचर्ना कहीं भयवश तो नहीं!

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हिंदू धर्म के ज्यादातर उपासक तो इसे भोलेनाथ की मर्जी कह कर, मात्र मुस्कुरा कर ओम नमः शिवाय कह देते हैं, लेकिन सोशल मीडिया के युग में अन्य धर्माविलंबियों की ओर कौतूहलवश ही सही प्रश्न किया जाता है कि शिव की भूमिका विनाशक की तो फिर पूजा क्यों!

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इसी सवाल का जवाब जानने के प्रयास में सामने आया कि महादेव ने धरती पर मानवता सहित सभी प्रकार के जीव जंतुओं की रक्षा के पहली बार तांडव किया था। आदिगुरू महादेव सृष्टि के आस्तित्व में आने से पहले भी थे और इसकी समाप्ति के बाद भी रहेंगे। इसीलिए उन्हें अजन्मा कहा जाता है, ऐसे में मृत्यु का प्रश्न ही नहीं है। महादेव का आदि व अंत ना होने की सूरत में, उनके तांडव को भी दोनों ही दृष्टि से देखा जाता है। अर्थात तांडव हर्ष में है तो आर्शिवाद के रूप में रक्षक के तौर पर है और अगर नाराजगी के रूप में आया तो रूदन और प्रलय तय है।

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इसलिए मनाई जाति है महाशिवरात्रि…
महाशिवरात्रि उस अवसर को चिन्हित करती है जब शिव ने पहली बार तांडव नृत्य किया था। जिसे मूल निर्माण, संरक्षण और विनाश के नृत्य के रूप में भी जाना जाता है। भक्ति के इस नृत्य के द्वारा ही भगवान शिव ने संसार को विनाश से बचाया था। हालांकि इसी दिन भगवान शिव ने देवी पार्वति के साथ विवाह भी रचाया था। भगवान श्री राम को याद करने रामनवमी और श्री कृष्ण के लिए जन्माष्टमी है, और दोनों ही श्री विष्णू के अवतार हैं, जबकि रचनाकार श्री ब्रह्मा जी, जिन्होंने स्वयं सृष्टि की रचना की उनके लिए तो राजस्थान के पुष्कर में एकमात्र कमल के रूप में एक ब्रह्म सरोवर के अलावा अन्य कोई स्थल ही नहीं है।

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ऐसे में महादेव का स्मरण करने हर महीने में चंद्रमा की 14वीं रात यानि अमावस्या से ठीक पहले की सबसे अंधेरी रात कोे शिवरात्रि मनाई जाती है। प्रत्येक वर्ष होने वाली 12 शिवरात्रियों में से, महा शिवरात्रि (जो फरवरी-मार्च के आसपास बसंत ऋतु मंे होती है) सबसे शक्तिशाली आध्यात्मिक महत्व वाली होती है।

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इसी क्रम में यह भी सामने आया कि समुद्र मंथन अमर अमृत का उत्पादन करने के लिए किया गया, लेकिन इसके साथ ही हलाहल नामक विष भी पैदा हुआ था। हलाहल विष में ब्रह्माण्ड को नष्ट करने की क्षमता थी और इसलिए केवल भगवान शिव इसे नष्ट कर सकते थे। भगवान शिव ने हलाहल नामक विष को अपने कण्ठ में रख लिया था। जहर इतना शक्तिशाली था कि भगवान शिव बहुत दर्द से पीड़ित हो उठे थे और उनका गला बहुत नीला हो गया था।

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इस कारण से भगवान शिव नीलकंठ के नाम से प्रसिद्ध हैं। उपचार के लिए, चिकित्सकों ने देवताओं को भगवान शिव को रात भर जागते रहने की सलाह दी। इस प्रकार, भगवान शिव के चिन्तन में एक सतर्कता रखी जाती है। रात भर लगातार जाग कर विभिन्न प्रकार का नृत्य और संगीत बजाने की परंपरा है। शिवरात्रि इस घटना का भी उत्सव है। जिससे शिव ने दुनिया को बचाया। तभील से इस दिन, भक्त उपवास करते है।

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