विश्व का इकलौता मंदिर, जहां माता कौशल्या की गोद में विराजमान हैं भगवान राम 

धर्मेन्द्र संधू

भारत के प्राचीन मंदिर भारत की संस्कृति का अभिन्न अंग हैं। पूरे देश में भगवान राम को समर्पित मंदिर बने हुए हैं। इन मंदिरों में भगवान राम माता सीता, लक्ष्मण जी व हनुमान जी के साथ विराजमान हैं। लेकिन एक ऐसा अनूठा मंदिर भी है, जिसमें भगवान राम माता कौशल्या की गोद में बैठकर भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं।

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माता कौशल्या का मंदिर 

छत्तीसगढ़ के चंदखुरी नामक स्थान पर स्थित है माता कौशल्या का प्राचीन मंदिर। इस मंदिर का निर्माण आठवीं शताब्दी में सोमवंशी राजाओं द्वारा करवाया गया था। कहा जाता है कि सोमवंशी राजाओं ने एक सपना देखने के बाद जलसेन तालाब खुदवाया था। खुदवाई के दौरान ही माता कौशल्या व श्री राम की यह अदभुत व दुर्लभ मूर्ति प्राप्त हुई थी। इसके बाद ही सोमवंशी राजाओं ने मंदिर बनवाया। आजतक कई बार इस मंदिर का जीर्णोद्धार हो चुका है जिसके चलते यह प्राचीन मंदिर अपने प्राचीन स्वरूप में नहीं है। लेकिन फिर भी छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित माता कौशल्या का यह प्राचीन मंदिर आज भी लोगों की आस्था व श्रद्धा का केन्द्र है। चंदखुरी को पहले चंद्रपुरी के नाम से जाना जाता था जो बाद में चंदखुरी हो गया।

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माता कौशल्या की गोद में विराजमान हैं भगवान राम

पूरी दुनिया में माता कौशल्या को समर्पित यह इकलौता मंदिर है। इस मंदिर में स्थापित मूर्ति अदभुत् है। भगवान श्री राम माता कौशल्या की गोद में बैठे हुए भक्तों को दर्शन देते हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि यह मूर्ति जलसेन नामक तालाब से मिली थी। जलसेन तालाब 16 एकड़ में फैला हुआ है। यह मंदिर इसी जलसेन नामक एक विशाल तालाब के बीच में बना हुआ है। तालाब के किनारे से मंदिर तक जाने के लिए एक पुल बनाया गया है। इस पुल को सुषेण सेतु कहा जाता है। मान्यता है कि प्रसिद्ध वैद्य सुषेण चंदखुरी के मूल निवासी थे। यह मंदिर गांव में स्थित सात तालाबों के पास मौजूद है। भक्तों के दर्शनों के लिए अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियों का निर्माण भी किया गया है। इनमें से भगवान विष्णु जी की शयन मुद्रा में स्थापित मूर्ति विशेष दर्शनीय है। इस मूर्ति तक जाने के लिए तैर कर ही जाना पड़ता है।

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छत्तीसगढ़ को माना जाता है प्राचीन कौशल प्रदेश

कहा जाता है कि प्राचीन समय में छत्तीसगढ़ ही कौशल प्रदेश था। कौशल प्रदेश का वर्णन रामचरित मानस व वाल्मीकि रामायण में भी किया गया है। माता कौशल्या के पिता सुकौशल को स्थानीय लोग राजा भानुमंत के तौर पर जानते हैं। कौशल प्रदेश के राजा भानुमंत की सुपुत्री राजकुमारी भानुमति का विवाह अयोध्या के राजा दशरथ के साथ हुआ था। कौशल राज्य से संबंध होने के कारण ही बाद में राजकुमारी भानुमति का नाम कौशल्या हो गया।

सुषेण वैद्य की समाधि है मौजूद

सुषेण वैद्य रावण का राज्य वैद्य था। भगवान राम व रावण के बीच हुए युद्ध के दौरान लक्ष्मण जी के मूर्छित होने पर उनका उपचार सुषेण वैद्य ने ही किया था। युद्ध के समाप्त होने के बाद सुषेण वैद्य ने इसी स्थान पर अपने प्राण त्यागे थे। माता कौशल्या के प्राचीन मंदिर के पास ही आज भी सुषेण वैद्य की समाधि बनी हुई है।

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नवरात्र पर लगता है भक्तों का तांता

नवरात्र के पावन पर्व पर इस स्थान पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। यहां स्थित तालाबों में भक्तों द्वारा ज्योति कलश जलाने की परंपरा है। जलसेन तालाब को इस इलाके का सबसे बड़ा तालाब माना जाता है। इस तालाब के आसपास 126 के करीब तालाब थे। लेकिन अब इन तालाबों की संख्या 20-25 के करीब ही रह गई है। मनोकामना मांगने के लिए श्रद्धालु कपड़े में नारियल डालकर यहां स्थित एक पेड़ पर बांधते हैं और मनोकामना पूरी होने पर दोबारा इस नारियल को खोलने भी आते हैं। कहा जाता है कि इस पेड़ के स्थान पर पहले नागों की बांबी हुआ करती थी। आज भी लोगों का विश्वास है कि नागराज द्वारा ही उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी की जाती हैं।

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