मुगल कालीन ‘चोरों की बावड़ी’ को कहा जाता है ‘स्वर्ग का झरना’

-सदियों पुरानी बावड़ी में बना है सुरंगों का जाल
पुरातन समय में कई ऐसी इमारतों का निर्माण किया गया था। जो सदियां बीत जाने के बाद आज भी रहस्य बनी हुई है। मुगल काल में रोहतक के पास एक ऐसी इमारत का निर्माण किया गया था। जिसे इतिहास के पन्नों में ‘चोरों की बावड़ी’, ‘स्वर्ग का झरना’ औऱ ‘ज्ञानी चोर की गुफा’ के नाम से जाना जाता है। इस सदियों पुरानी बावड़ी में अबूझ सुरंगों का जाल भी बिछा हुआ है। कुछ लोग तो यहां पर पुराने समय में चोरों के द्वारा लूटी गई अकूत धनराशि के जमा होने की बात भी कहते हैं। आईए, आज आपको इस मुगल कालीन ‘चोरों की बावड़ी’, ‘स्वर्ग का झरना’ के बारे जानकारी प्रदान करते हैं।

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क्यों कहा जाता है ‘चोरों की बावड़ी’, ‘स्वर्ग का झरना’
हरियाण के रोहतक जिले के महम क्षेत्र में ‘ज्ञानी चोर की गुफा’ , ‘चोरों की बावड़ी’, ‘स्वर्ग का झरना’ के बाबत कई कहानियां प्रचलित हैं। यह बाबड़ी जमीन में कई फीट नीचे तक बनी हुई है। इस बावड़ी में एक कुआं भी बना हुआ है। कुएं के उपरी सिरे पर एक पत्थर लगा हुआ है। जानकारों का कहना है कि इस पर फारसी भाषा में ‘स्वर्ग का झरना’ लिखा हुआ है। वहीं चोरों की बावड़ी इसलिए कहते हैं कि इस जगह का निर्माण चोरों ने अपनी सुरक्षा के लिए किया था।

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‘चोरों की बावड़ी’ में दफन है खजाना?
माना जाता है कि सदियों पहले बनाई गइ इस बावड़ी में खजाना छुपा हुआ है। इस बावड़ी में सुरंगों का जाल भी बिछा हुआ है। यह सुरंगे दिल्ली, हिसार और लाहौर तक जाती बताई जाती है। परंतु इसका कोई प्रमाण नहीं है। बावड़ी में फारसी भाषा में लगे पत्थरों अनुसार इस स्वर्ग के झरने का निर्माण मुगल राजा शाहजहां के सूबेदार सैद्यू कलाल ने 1658-59 ईस्वी में करवाया था। इसमें एक कुआं है। इस कुंएं तक पहुंचने के लिए 101 सीढिय़ां उतरनी पड़ती हैं। इस कुंएं के चारों तरफ कई कमरे भी बने हुए हैं। जो कि उस जमाने में राहगीरों के आराम के लिए बनवाए गए थे।

इस बावड़ी से जुडी हैं यह कहानियां
इस बावड़ी को ज्ञानी चोर की गुफा भी कहा जाता है। इसके साथ एक कहानी बी जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि ज्ञानी चोर एक शातिर चोर था, जो धनवानों का लूटता और इस बावड़ी में छलांग लगाकर गायब हो जाता। और अगले दिन फिर राहजनी के लिए निकल आता था। लोगों का यह अनुमान है कि ज्ञानी चोर द्वारा लूटा गया सारा धन इसी बावड़ी में मौजूद है। ज्ञानी चोर के बावड़ी में दफन खजाने को जो ढूंडने अंदर गया। वह कभी वापिस नहीं आया। कई जानकार इस जगह को सेनाओं की आरामगाह बताते हैं। उनका कहना है कि रजवाड़ों में आपसी लड़ाई के बाद राजाओं की सेना यहां रात को आराम किया करती थी। छांव व पानी की सुविधा होने के कारण यह जगह उनके लिए सुरक्षित थी।
एक अन्य कहानी अनुसार अंग्रेजों के समय में एक बारात सुरंगों के रास्ते दिल्ली जाना चाहती थी। कई दिन बीतने के बाद भी सुरंग में उतरे बाराती न तो दिल्ली पहुंच पाए और न ही वापिस आए। इसके बाद किसी अनहोनी घटना के चलते अंग्रेजों ने इन गुफाओं को बंद करवा दिया था। जो आज भी बंद पड़ी हैं।

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सरकार की अनदेखी से बावड़ी हो रही खंडित
बावड़ी के पानी के अंदर गंदगी व अन्य तरह की वस्तुएं अक्सर तैरती हुई देखी जा सकती हैं। सफाई की कोई व्यवस्था नहीं है। चमगादड़ों ने नीचे जाने वाली सीढिय़ों के पास अपना डेरा जमा लिया है। सुरंगों पर लगे लोहे के दरवाजे जाम हो चुके हैं। जगह-जगह से टूटने के कारण छोटी ईंटों का मलबा बावड़ी के अंदर गिरने लग गया है। इलाके के लोग बाबड़ी की खस्ताहाल पर चिंता जताते हैं। यह जगह पुरातत्व विभाग के अंतर्गत है। बावजूद इसकी देखभाल नहीं हो पा रही है। कई बार प्रशासन से इसकी रिपेयर करवाने की गुहार लगाई जा चुकी हैं। परंतु स्थिति यथावत है।

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प्रदीप शाही

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