भगवान हरि विष्णु ने छल कर के भी किया, दुनिया का उद्धार

-भगवान श्री कृष्ण का एक नाम छलिया भी था

प्रदीप शाही

यह पूर्ण तौर से सत्य है कि भगवान ने जब भी इस धरती पर अवतार लिया। वह जनमानस के उद्धार के लिए ही लिया। उनकी सभी लीलाओं में एक संदेश छिपा होता है। भगवान श्री विष्णु हरि ने कई बार छल का सहारा लिया। परंतु इस छल में भी दुनिया का उद्धार समाहित था। इतना ही नहीं भगवान श्री विष्णु ने जब द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के रुप में अवतार लिया। तब उनका एक नाम छलिया भी था। आईए, आज आपको भगवान श्री विष्णु हरि के विभिन्न रुपों में किए गए छल के बारे विस्तार से जानकारी प्रदान करते हैं। गौर हो भगवान श्री विष्णु जी के अब तक कुल 24 अवतार इस धरती पर अवतरित हो चुके हैं।

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मोहिनी का रुप धर राक्षसों से बचाया अमृत कलश्

समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत कलश निकला। तो इसको हासिल करने के लिए देवों औऱ असुरों में हौड़ सी मच गई। अमृत को देवों और राक्षसों में एक समान बांटने का भ्रम पैदा करने के लिए भगवान श्री विष्णु जी ने मोहिनी का रुप धारण किया। मोहिनी के रुप में उन्होंने अमृत कलश के सारे अमृत को देवताओं में बांट दिया। एक असुर राहु को मोहिनी का छल समझ में आ गया। उसने देवताओं जैसा रुप धारण कर अमृत को हासिल कर लिया। देवताओं को जैसे ही पता चला तो उन्होंने तुरंत राहू का सिर धड़ से अलग कर दिया। ताकि अमृत राहु के पेट में न पहुंच सके। इस तरह भगवान श्री विष्णु ने मोहिनी का रुप धर कर इस विश्व को एक बड़े संकट से बचाया।

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राक्षस भस्मासुर का मोहिनी रुप में किया अंत

राक्षस भस्मासुर ने कठिन तपस्या कर भगवान महादेव से किसी के सिर पर भी हाथ रख कर मारने का वरदान हासिल किया। इस वरदान के कारण सभी लोग भस्मासुर से डरने लगे। इस वरदान के बाद तो भस्मासुर ने भगवान शिव से ही हासिल वरदान को उसने भगवान शिव को भी भस्म करने की ठान ली। भगवान शिव को भस्मासुर से जान बचाने के लिए एक गुफा में शरण लेनी पड़ी। तब भगवान श्री विष्णु हरि ने अप्सरा मोहिनी की रुप धर कर भस्मासुर को मोहित कर दिया। मोहिनी ने उसे अपने साथ नृत्य करने के लिए प्रेरित किया। भस्मासुर भगवान विष्णु की मोहिनी के रुप में इस चाल को समझ नहीं पाया। नृत्य के दौरान अपने ही सिर पर हाथ रख लिया। और भस्म हो गया।

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जालंधर की पत्नी वृंदा का पतिव्रत खंडित किया

भगवान शिव का अंश जालंधर अपनी पत्नी वृंदा के पतिव्रत धर्म के कारण निरंतर शक्तिशाली होता जा रहा था। जालंधर की असुरी शक्तियां बढ़ती ही जा रही थी। जालंधर ने देवी पार्वती और देवी लक्ष्मी के हरण की योजना बनाई। इस समस्या के समाधान के लिए भगवान विष्णु को एक बार फिर छल का सहारा लेना पड़ा। भगवान श्री विष्णु हरि ने जालंधर का वेष धारण कर वृंदा के पतिव्रता धर्म को खंडित कर दिया। तब भगवान शिव ने जालंधर का वध किया। गौर हो वृंदा ने ही अगले जन्म में तुलसी का रुप धर भगवान श्री विष्णु को अपने पति सालिगराम के रुप में पाया।

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भगवान श्री विष्णु ने छल कर भगवान शिव से छिना उनका विश्राम स्थान

एक समय था जब बद्रीनाथ धाम देवों के देव महादेव शिव का विश्राम स्थल हुआ करता था। एक दिन भगवान श्री विष्णु इस इलाके से गुजरे तो उन्हें यह स्थल बेहद पसंद आया। उन्होंने योजना बना कर इस स्थान को अपना बनाने की ठान ली। भगवान श्री विष्णु हरि ने एक बालक का रुप धारण कर बद्रीनाथ धाम से कुछ दूर रोने का स्वांग करने लगे। देवी पार्वती ने जब एक बालक के रोने की आवाजा सुनी। तो उनकी ममता जाग गई। वह उस बालक को अपने निवास स्थान पर ले आई। भगवान शिव ने भगवान विष्णु की इस योजना को समझते हुए देवी पार्वती से बच्चों से बाहर छोड़ने के लिए कहा। परंतु देवी पार्वती ने अपने स्वामी की बात को स्वीकार न किया। रो रहे बालक को चुप करवा करवा कर उसे सुला दिया। कुछ समय बाद भगवान शिव व माता पार्वती सैर करने के लिए बद्रीनाथ धाम से बाहर निकल गए। भगवान विष्णु जी ने जैसे ही भगवान शिव व देवी पार्वती को बाहर जाते देखा। तो उन्होंने बिना देर किए मुख्य दरवाजा बंद कर लिया। कुछ समय बाद जब भगवान शिव व माता पार्वती वापिस लौटे तो उन्हें द्वार बंद मिला। बालक से द्वार को खोलने के लिए कहा। तब भगवान श्री विष्णु हरि ने भीतर से कहा कि भगवन, यह स्थान मुझे पसंद आ गया है। अब मुझे यहां पर विश्राम करने दें। आप केदारनाथ धाम में रह कर भक्तों को दर्शन दें। तब से भगवान विष्णु हरि जी बद्रीनाथ धाम में भगवान शिव जी केदारनाथ धाम में वास करते हैं।

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मोहिनी का रुप धर राक्षसों से अमृत कलश् बचाया

समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत कलश निकला। तो इसको हासिल करने के लिए देवों औऱ असुरों में हौड़ सी मच गई। अमृत को देवों और राक्षसों में एक समान बांटने का भ्रम पैदा करने के लिए भगवान श्री विष्णु जी ने मोहिनी का रुप धारण किया। मोहिनी के रुप में उन्होंने अमृत कलश के सारे अमृत को देवताओं में बांट दिया। एक असुर राहु को मोहिनी का छल समझ में आ गया। उसने देवताओं जैसा रुप धारण कर अमृत को हासिल कर लिया। देवताओं को जैसे ही पता चला तो उन्होंने तुरंत राहू का सिर धड़ से अलग कर दिया। ताकि अमृत राहु के पेट में न पहुंच सके। इस तरह भगवान श्री विष्णु ने मोहिनी का रुप धर कर इस विश्व को एक बड़े संकट से बचाया।

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नारद मुनि से छल करने पर मिला विष्णु भगवान को श्राप

कहा जाता है एक बार देवी लक्ष्मी के स्वयंवर का आयोजन हुआ। इस बाबत जब नारद मुनि को जनकारी मिली तो वह भगवान श्री विष्णु के पास पहुंचे। विष्णु हरि से ही अपने जैसा ही मनमोहक रुप देने की प्राथर्ना की। ताकि मैं भी स्वयंवर में जा सकूं। भगवान विष्णु तथास्तु कह दिया। तब नारद मुनि की मुंह एक बंदर के मुख जैसा हो गया। क्योंकि भगवान विष्णु का एक रुप बंदर भी है। स्वयंवर में जब भगवान श्री विष्णु व नारद मुनि एक साथ पहुंचे। तो सभी नारद मुनि को देख कर हंसने लगे। जब नारद मुनि ने अपना चेहरा देखा तो उन्हें सारी बात समझ आ गई। तब नारद मुनि ने आहत मन से श्री विष्णु हरि को श्राप दे दिया कि आप जब भी धरती पर अवतार लेंगे तो आपको अपनी पत्नी का वियोग सहना पड़ेगा। यही कारण है कि भगवान श्री राम को माता सीता से वियोग सहना पड़ा था।

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भगवान राम के रुप में छिप कर वानरराज बाली का किया वध

भगवान श्री विष्णु ने त्रेता युग में भगवान श्री राम के रुप में अवतार लिया। तब उन्होंने छल करते हुए बानरराज बाली का छिप कर वध किया।

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मधु, कैटभ असुरों का किया वध

मधु, कैटभ नामक दो महाबलशाली असुर थे। जिन्हें इच्छामृत्यु का वरदान हासिल था। इस वरदान के चलते उन्होंने सृष्टिकर्ता भगवान श्री ब्रह्मा जी को ही मारने की ठान ली। इस बात को सुनने के बाद भगवान श्री विष्णु हरि ने छल से मधु औऱ कैटभ नामक असुरों को भ्रमित कर दिया। असुर भी भगवान श्री विष्णु को पहचान नहीं पाए। तब असुरों ने भगवान विष्णु से वरदान मांगने को कहा। भगवान विष्णु ने तपाक से कहा कि तुम्हारी मृत्यु मेरे हाथों से हो। असुरों ने बिना कुछ सोचे समझे तथास्तु कह दिया। तभी भगवान श्री विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से मधु और कैटभ नामक असुरों के सिर धड़ से अलग कर दिए।

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