भगवान श्री राम, माता सीता के स्पर्श से मिली अश्व को श्राप से मुक्ति

-महर्षि दुवार्सा के श्राप से बना था एक ब्राह्मण अश्व

प्रदीप शाही

कहते हैं कि जव भी किसी देवी देवता ने किसी को भी श्राप दिया है। तो साथ में उसे उसे श्राप से मुक्त होने का रास्ता भी बताया। एक ऐसा ही रोचक प्रसंग भगवान श्री राम औऱ माता सीता के साथ भी जुड़ा हुआ है। जिसमें भगवान श्री राम और माता सीता के हाथ लगते ही एक अश्व अपने पिछले जन्म में महर्षि दुर्वासा की ओर से मिळे अश्व बनने के श्राप से मुक्त हो गया। आखिर क्या था वह प्रसंग। आईए जानते हैं कि महर्षि दुर्वासा ने आखिर क्यों एक ब्राह्मण को अश्व बनने का श्राप दिया था।

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क्या होता है अश्वमेघ यज्ञ

अश्वमेघ यज्ञ वह होता है कि जिसमें जो भी राजा, चक्रवती बनने की कामना करता है। वह एक अश्वमेध यज्ञ का अपनी पत्नी संग आयोजन करता है। साथ ही एक अश्व को कड़ी सुरक्षा में छोडा जाता है। इस घोड़े पर एक तख्ती लटकी होती है। जो भी इस घोड़े को पकड़ेगा। उसे उस राजा की सेना से युद्ध करना पड़ेगा। युद्ध में हारने पर घोड़े को छोड़ना भी पडेगा। साथ में संबंधित राजा की अधीनता स्वीकार करनी होगी।

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श्री राम ने चक्रवर्ती सम्राट बनने के लिए शुरु किया अश्वमेघ यज्ञ

भगवान श्री राम लंका पर विजय हासिल करने के बाद सुचारु रुप से राजपाठ कर रहे थे। इसी दौरान एक धोबी के कहने पर जनमानस की आवाज का मान रखते हुए अपनी पत्नी सीता तक का त्याग कर दिय़ा था। एक बार श्री राम को उनके छोटे भाई लक्ष्मण ने अश्वमेघ यज्ञ करने की प्रार्थना की। श्री राम ने अपने भाई लक्ष्मण की मांग को स्वीकार करते हुए अश्वसेघ यज्ञ करने का फैसला किया।

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जब लक्ष्मण माता सीता को वन से वापिस राजमहल लाए

अश्वमेघ यज्ञ के आयोजन की एक मुख्य शर्त होती थी कि राजे को यज्ञ अपनी पत्नी संग करना पड़ता था। परंतु माता सीता के वन में होने के कारण इस यज्ञ को करने में मुश्किल आने लगी। तब विद्वान मुनियों ने कहा कि राजा अपने साथ अपनी पत्नी की सोने की मूर्ति बना कर यज्ञ को पूर्ण कर सकता है। भगवान श्री राम ने इस मुनियों के इस फैसले को स्वीकार करते हुए मूर्ति बनवाने का फैसला किया। परंतु लक्ष्मण ने इस फैसले का विरोध किया। उन्होंने कहा कि जब माता सीता वन में है, तो एक सोने की प्रतिमा यज्ञ में नहीं रखी जाएगी। वह माता सीता को वापिस महल लाएंगे। इसके बाद ही यज्ञ की शुरुआत होगी। तब लक्ष्मण, माता सीता को लाने वन चले गए। माता सीता ने लक्ष्मण की प्रार्थना को स्वीकार करते हुए रजमहल जाना स्वीकार कर लिया। अयोध्या आने पर माता कौशल्या ने सीता को गले लगा कर स्वागत किया। यज्ञ में से सोने की मूर्ति को हटा

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उनका यह उपाय सबको भा गया परन्तु लक्ष्मण ने कहा की भाभी की जगह कोई नहीं ले सकता मैं उन्हें अवश्य मना कर वापस ले आऊंगा| जब से प्रभु श्री राम ने देवी सीता का त्याग किया था तब से उन्होंने इसे ही अपना भविष्य मान कर जंगल में समय व्यतीत करना शुरू कर दिया था| जब लक्ष्मण उनके पास पहुंचे तो सीता को देखते ही उनकी आँखों से आंसू बहने लगे और उन्होंने देवी सीता को साथ चलने को कहा| बहुत विनती करने पर देवी सीता उनके साथ वापस अयोध्या आ गयी| आते ही श्री राम की माता कौशल्या ने उन्हें ह्रदय से लगा लिया। अयोध्या पुहंच कर देवी सीता, श्री राम के साथ यज्ञ में सम्मिलित हो गयी।

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भगलान श्री राम, माता सीता ने किया अश्व को श्राप से मुक्त

अश्वमेध यज्ञ समाप्त होते ही जैसे भगवान ष्री राम व माता सीता ने घोड़े को अपने-अपने हाथ लगाए। तो अश्व ने एक ब्राह्मण का रुप धर लिया। भगवान श्री राम ने कहा कि आप कौन है। तो ब्राह्मण ने कहा कि प्रभु आप तो अंतर्यामी हैं। यदि आप सुनना ही चाहते हैं। तो मैं बताता हूं कि मैं पिछले जन्म में एक ब्राह्मण था। एक दिन की बात है कि मैं सरयू नदी के तट पर स्नान करने का बाद पूजा कर रहा था। तो मुझे लगा कि वहां आसपास के लोग मुझे ही गौर से देख रहे हैं। मुझे इस बात से अहंकार आ गया। इसी दौरान महर्षि दुर्वाशा का वहां आगमन हुआ। अहंकार के चलते मैंने उन्हें भी नमन नहीं किया। महर्षि दुर्वाशा को मेरे अहकार के बारे ज्ञात हो गया। उन्होंने मुझे श्राप दिया कि तुम इंसान होकर भी जानवरों जैसी सोच रखते हो। इसलिए तुम अगले जन्म में एक जानवर के रुप में जन्म लोगे। जब मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ। तो मैने महर्षि दुर्वाशा के पांव पकड़ कर अपनी गलती की माफी मांगी। मेरी प्रार्थना सुनकर महर्षि दुर्वाशा ने कहा कि तुम अगले जन्म में अश्व बनोगे। और जब भगवान श्री राम और देवी सीती तुम्हें स्पर्श करेंगी। तो तुम फिर से अपने वास्तविक रुप में आ जाओगे। आज आपने मुझ पर कृपा कर मुझे मेरा असल रुप दिलाया है। इसलिए आपका कोटि-कोटि आभार है।

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