भगवान श्री कृष्ण के इस मंदिर के कपाट, मात्र दो मिनट होते हैं बंद

-यहां श्री कृष्ण दो मिनट में पूरी कर लेते हैं अपनी निद्रा

प्रदीप शाही

द्वापर काल में अवतरित हुए भगवान विष्णु हरि जी के अवतार सोलह कला संपूर्ण भगवान श्री कृष्ण की लीलाएं आज भी भक्तों को हतप्रभ कर देती हैं। मथुरा हो या वृंदावन या फिर द्वारिक। इन सभी स्थानों के अलावा जहां भी श्री कृष्ण के मंदिर हैं। उन मंदिरों में होने वाले कौतुक में भक्तों की जहां आस्था समाहित है। वहीं भगवान के इन कौतुक के समक्ष साइंस हमेशा से नतमस्तक ही रही। भगवान की यह लीलाएं साइंस की समझ से परे ही रही हैं। आज आपको भगवान श्री कृष्ण के एक ऐसे मंदिर के बारे बताते हैं। जिस मंदिर के कपाट 24 घंटे में महज दो मिनट के लिए ही बंद होते हैं। कपाट बंद करने के पीछे भी एक बेहद रोचक प्रसंग है। क्योंकि इस मंदिर में भगवान श्री कृष्ण जी दो मिनट से अधिक भूख सहन ही नहीं कर पाते हैं। आईए, आज आपको इस रोचक प्रसंग से अवगत करवाते हैं।

इसे भी देखें….50 साल लगे Rajasthan के इस विशाल मंदिर को बनाने में पर Hindu Temple नहीं है आखिर क्या है खासियत है?

भगवान श्री कृष्ण का यहां स्थित है चमत्कारिक मंदिर

केरल राज्य के कोट्टयम जिले में तिरुवेरप्पु शहर में भगवान श्रीकृष्ण का 1500 साल पुराना चमत्कारिक मंदिर स्थित है। इस मंदिर को तिरुवरप्पू श्री कृष्ण मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित भगवान श्री कृष्ण जी की प्रतिमा के साथ रोमांचक प्रसंग जुड़े हुए हैं। कहा जाता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण को कंस के वध करने के बाद जोरों सें भूख लगने लगी। कहते हैं इस मंदिर में भी श्री कृष्ण की मूर्ति को भूख सहन नहीं होती है।

इसे भी देखें…..अदभुत्! झूले में बैठी देवी करती है ग्रामीणों की रक्षा, पालतू पशुओं को नहीं बनाते जंगली जानवर

इस मंदिर के कपाट 24 घंटे में मात्र दो मिनट मध्य रात्रि 11.58 से 12.00 के लिए बंद किए जाते हैं। भक्तों के लिए यह मंदिर मध्य रात्रि में दो  बजे खुलता है। इस मंदिर को दो मिनट से अधिक बंद न रखने की परंपरा सदियों से अनवरत जारी है। मध्य रात्रि में दो मिनट के समय में किसी भी अनहोनी से बचने के लिए पुजारी को एक कुल्हाड़ी दी जाती है। यदि किसी कारणवश मंदिर के कपाट खोलने में देरी हो जाए, तो वह कुल्हाड़ी से ताला तोड़ने की अनुमति है। दरवाजा खोलने के लिए पुजारी के पास एक चाबी भी दी जाती है।

इसे भी देखें…..ये है भारत का सबसे शक्तिशाली किला, जिसके हैं सातवें दरवाजे पर लगी है सबसे दमदार…

श्री कृष्ण जी को 10 बार नैवेद्यम चढ़ाने की परंपरा   

देवी-देवताओं की स्तुति के लिए जिस भोग, प्रसाद, प्रसादी, प्रसादम का प्रयोग किया जाता है। उसे नैवेद्य़ कहते हैं।अभिषेक की विधि पूर्ण होते-होते श्रीकृष्ण का सिर पहले सूख जाता है। तभी नैवेद्यम चढ़ाया जाता है। तब तक उनका शरीर सूख जाता है। इसीलिए मंदिर में 24 घंटे में कम से कम 10 बार मैवेदय चढ़ाने की परंपरा है। ताकि भगवान श्री कृष्ण जी को भूखा न रहना पड़े।

इसे भी देखें…..ऐसा मंदिर जिसकी सीढ़ियों पर पैर रखते ही निकलते हैं संगीत के स्वर

श्री कृष्ण जी की प्रतिमा की विशेषता

भगवान श्री कृष्ण जी के मंदिर के बारे में एक कथा प्रचलित है कि महाभारत काल में जब पांडव बनवास दौरान जंगल में रह रहे थे। तो श्री कृष्ण जी ने उन्हें अपनी चार हाथ वाली एक प्रतिमा प्रदान की थी। जब पांडव उस जंगल से आगे जाने लगे तो जंगल में रहने वाले चेरथलाई लोगों ने यह मूर्ति उनसे ले ली। लंबे समय तक चेरथलाई लोगों की ओर से भगवान श्री कृष्ण की उस प्रतिमा की पूजा की जाती रही। कुछ समय बाद न जाने क्यों चेरथलाई लोगों ने इस प्रतिमा को समुद्र में प्रवाहित कर दिया। कहते हैं कि एक लंबे अतंराल के बाद यही प्रतिमा एक ऋषि को समुद्र में यात्रा करने के दौरान मिली। समुद्र में नाव के डूबने के समय एक दिव्य पुरुष ने नाव में प्रकट हो कर ऋषि को वह प्रतिमा प्रदान की। तब उस ऋषि ने भगवान श्री कृष्ण की चार भुजाओं वाली प्रतिमा को इस मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठित कर दिया।

इसे भी देखें…..यह है कोणार्क के बाद विश्व का दूसरा सदियों पुराना सूर्य देव मंदिर

ग्रहण के समय भी बंद नहीं होता मंदिर

भगवान श्री कृष्ण के इस चमत्कारिक मंदिर के कपाट ग्रहण के समय भी बंद नहीं होते हैं। एक बार शंकराचार्य के समय में मंदिर के कपाट ग्रहण के चलते बंद कर दिए गए। ग्रहण समाप्त होने पर जब मंदिर के मुख्य भवन के कपाट खोले गए तो ठाकुर जी की कमर की पट्टी नीचे सरकी हुई थी। तब शंकराचार्य ने बताया कि ऐसा इसलिए हुआ। क्योंकि इस दौरान भगवान श्री कृष्ण अधिक देर तक भूखे रहे। इस घटना के बाद ग्रहण काल में भी मंदिर के कपाट को बंद नहीं किया जाता है।

इसे भी देखें…..इस अदभुत् मंदिर में… बलि चढ़ाने के बाद ‘बकरा’ दोबारा हो जाता है ज़िंदा !

मंदिर का प्रसाद है चमत्कारिक

माना जाता है कि मंदिर में भक्तों को वितरित किए जाने वाला प्रसाद बेहद चमत्कारिक है। जो भी भक्त थोड़ा सा प्रसाद ग्रहण कर लेता है। उसका पेट भर जाता है। मंदिर से किसी भी भक्त को बिना प्रसाद ग्रहण किए जाने की इजाजत नहीं है। मंदिर के दो मिनट के कपाट बंद करने से पहले पुजारी जोरों से पुकारता है कि क्या कोई भक्त बिना प्रसाद ग्रहण किए तो नहीं रह गया। यह बी माना जाता है कि जो भी भक्त इस मंदिर का प्रसाद एक बार ग्रहण कर लेता है। वह जीवन में कभी भी भूखा नहीं रहता है। मंदिर में हर साल अप्रैल माह में 10 दिवसीय वार्षिक उत्सव का आयोजन किया जाता है। इस उत्सव में अविवाहित लड़कियां समागम के दौरान सुशील वर पाने के लिए दीप प्रज्जवलित करती हैं।

इसे भी देखें……रोग मुक्त करता है इस ‘मंत्र’ का जाप…हर अक्षर में छिपा है गूढ़ रहस्य

LEAVE A REPLY