ब्राह्मण पिता, राक्षसी माता के पुत्र थे परम शिव भक्त, वेदों के ज्ञाता दशानन

-राजनीतिज्ञ, सेनापति, वास्तुकला विशेषज्ञ रावण को था तंत्र मंत्र का विशेष ज्ञान
शास्त्रों में वर्णित है कि इस धरती पर हर कोई अपने पूर्व जन्म में किए अच्छे और बुरे कर्म कमों का फल भोग मृत्यु को प्राप्त होता है। सबसे अहम बात यह है कि देवी देवताओं को भी इस धरती पर नर या राक्षसी रुप में जन्म लेना पड़ा। क्या आप जानते हैं कि लंकाधिपति रावण को भी सनकादि मुनि से मिले श्राप के कारण ही इस धरती पर राक्षसी योनि में जन्म लेना पड़ा। कहा जाता है कि इस धरती पर रावण जैसे चरित्र वाला और इस नाम का दूसरा कोई आदमी पैदा नहीं हुआ। ब्राह्मण पिता, राक्षसी माता के पुत्र, परम शिव भक्त, वेदों के ज्ञाता, कुशल राजनीतिज्ञ, सेनापति, वास्तुकला विशेषज्ञ, तंत्र मंत्र, सम्मोहन में दशानन को विशेष महारत थी। आईए आपको लंकाधिपति रावण के जीवन संबंधित कुछ विशेष जानकारी प्रदान करते हैं।

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ब्राह्मण पिता और राक्षसी माता की संतान थे रावण
रावण के पिता कुल से ब्राह्मण और माता कुल राक्षसी थी। वाल्मीकि रामायण अनुसार रावण पुलस्त्य मुनि के पोते और विश्वश्रवा के पुत्र थे। विश्वश्रवा की दो पत्नियां वरवर्णिनी और कैकसी थी। ऋषि भारद्वाज की पुत्री वरवर्णिनी से कुबेर का जन्म हुआ था। जबकि कैकसी के अशुभ समय में गर्भ धारण किए जाने के चलते रावण तथा कुम्भकर्ण जैसे क्रूर स्वभाव वाले भयंकर राक्षसों और विभीषण और सूर्पणखाका जन्म हुआ। रावण ने अपने सौतेले भाई कुबेर को बेदखल कर लंका पर अपना आधिपत्य कर लिया था। रावण ने अपनी बहन शूर्पणखा का विवाह दानवराज विद्युविह्वा के साथ किया। जबकि खुद मय की कन्या मंदोदरी से विवाह किया। जो हेमा नामक अप्सरा के गर्भ से पैदा हुई थी। माना जाता है कि मंदोदरी राजस्थान के जोधपुर के निकट मन्डोर की थी। कुंभकर्ण का विवाह विरोचनकुमार बलि की पुत्री वज्रज्वला से और विभीषम का विवाह गन्धर्व राज महात्मा शैलूष की कन्या सरमा से हुआ। मेघनाद को मंदोदरी ने जन्म दिया था। मेघनाद को इंद्र देव को परास्त करने इंद्रजीत के नाम से प्रसिद्धि मिली। श्री राम रावण के युद्ध के बाद विभीषण को छोड़कर रावण के पूरे कुल का नाश हो गया था।

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क्यों कहा जाता था रावण को दशानन ?
लंकाधिपति रावण को दशानन के नाम से भी संबोधित किया जाता है। क्या सचमुच में ही रावण के दस सिर थे। इस बाबत अलग-अलग है। कुछ विद्वानों का मानना है कि रावण के दस सिर नहीं थे। तंत्र मंत्र का ज्ञाता होने के कारण ही रावण के दस सिर और 20 हाथ होने का भ्रम पैदा होता था। कुछ विद्वानों अनुसार रावण को छह दर्शन और चारों वेदों का ज्ञान था। इसीलिए उसका हर सिर एक ज्ञाता के रुप को दर्शाता था। जैन शास्त्रों में वर्णित जानकारी अनुसार रावण के गले में बड़ी-बड़ी गोलाकार नौ मणियां होती थीं। इन नौ मणियों में उसका सिर दिखाई देता था। इस कारण उसके दस सिर होने का भ्रम होता था। रावण के दस सिर होने बारे तो रामचरितमानस में भी उल्लेख है। भगवान श्री राम व रावण के मध्य कृष्णपक्ष की अमावस्या को युद्ध शुरु हुआ था। नौ दिन तक यह युद्ध चला। हर दिन रावण का क्रमशः एक-एक सिर कटा था। दसवें दिन शुक्लपक्ष की दशमी को रावण का भगवान विष्णु जी के अवतार श्री राम ने वध किया था। इसीलिए दशमी के दिन रावण दहन किए जाने की परंपरा है।

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जैन तीर्थस्थलों पर स्थापित हैं उनकी प्रतिमाएं
कहते हैं कि रावण लंका का तमिल राजा था। सभी ग्रंथों को छोड़कर वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण महाकाव्य में रावण का सबसे प्रामाणिक इतिहास वर्णित है। जैन शास्त्रों में तो रावण को प्रति-नारायण माना गया है। जैन धर्म के 64 शलाका पुरुषों में रावण की गिनती भी की जाती है। इसी लिए कुछ प्रसिद्ध प्राचीन जैन तीर्थस्थलों पर उनकी मूर्तियां भी प्रतिष्ठित हैं।

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रावण की नाभि में थे उसके प्राण
रावण देवों के देव महादेव का परम भक्त था। अमरत्व हासिल करने के लिए रावण ने भगवान ब्रह्मा की घोर तपस्या की। परंतु ब्रह्मा जी ने रावण को अमरत्व के वरदान को अस्वीकारते हुए उसके प्राण नाभि में स्थित कर दिए। यही कारण था कि भगवान राम और रावण के युद्ध में विभीषण द्वारा जानकारी प्रदान किए जाने पर भगवान राम ने नाभि में तीर मार रावण का अंत किया।

रावण का विशाल राज्य
रावण ने सबसे पहले सुंबा और बालीद्वीप को जीतकर अपने शासन का विस्तार किया। इसके बाद अंगद्वीप, मलयद्वीप, वराहद्वीप, शंखद्वीप, कुशद्वीप, यवद्वीप और आंध्रालय पर फतेह हासिल की। मौजूदा समय में की बात करें तो रावण का राज इंडोनेशिया, मलेशिया, बर्मा, दक्षिण भारत के कुछ राज्यों तक था। गौर हो माली, सुमाली और माल्यवान नामक तीन दैत्यों द्वारा त्रिकुट सुबेल पर्वत पर बसाई लंकापुरी को देवों और यक्षों ने जीतकर कुबेर को लंकापति बना दिया था। रावण की माता कैकसी सुमाली की पुत्री थी। अपने नाना के कहने पर रावण ने अपने सौतेले भाई कुबेर से युद्ध की ठानी। परंतु पिता ने लंका रावण को दिला दिया। तथा कुबेर को कैलाश पर्वत के आसपास के त्रिविष्टप (तिब्बत) क्षेत्र में रहने के लिए कह दिया। परंतु रावण ने अपने आई कुबेर का पुष्पक विमान भी छीन लिया।

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रावण ने की रक्ष संस्कृति की स्थापना
माना जाता है कि रावण ने एक नए संप्रदाय की शुरुआत भी की। ब्राह्मण कुल का होने के कारण रावण सभी जातियों से एक समान व्यवहार करते थे। रावण ने आर्यों की भोग-विलास वाली यक्ष संस्कृति से अलग सभी की रक्षा करने के लिए रक्ष संस्कृति की स्थापना की थी। बाद में इस संस्कृति से संबंधित लोग ही राक्षस बने।

भगवान विश्वकर्मा ने बनाया था पुष्पक विमान
रावण के पास जो पुष्पक विमान था। वह असल में कुबेर का था। जिसे रावण ने बलपूर्वक छीन लिया था। महर्षि अंगीरा के डिजाइन किए इस विमान को भगवान विश्वकर्मा ने बनाया था। इसी कारण भगवान श्री विश्वकर्मा को शिल्पी होने का मान हासिल हुआ। पुष्पक विमान की विशेषता यह थी कि इसे आकार में छोटा या बड़ा किया जा सकता था। पुष्पक विमान मन की गति से चलता था। यह विमान आकाश में स्वामी की इच्छानुसार भ्रमण करता था। रावण ने इस विमान के लिए चार हवाई अड्डों उसानगोड़ा, गुरुलोपोथा, तोतूपोलाकंदा और वारियापोलाका भी निर्माण किया था। मौजूदा समय में श्रीलंका की श्रीरामायण रिसर्च कमेटी अनुसार रावण के उक्त चार हवाई अड्डों में से एक उसानगोड़ा हवाई अड्डा नष्ट हो गया था। यह हवाई अड्डा माता सीता की तलाश में जब श्री हनुमान लंका पहुंचे थे। तब नष्ट हो गया था।

विद्वान रावण के रचित ग्रंथ
ब्राह्मण पिता से मिले संस्कारों की वजह से रावण अत्यंत विद्वान था। इसी कारण उसने कई ग्रंथों की रचना की। इनमें शिव तांडव स्तोत्र, अरुण संहिता, रावण संहिता, कुमार तंत्र, नाड़ी परीक्षा प्रमुख हैं। शिव तांडव स्रोत  कहते हैं कि एक बार रावण ने कैलाश पर्वत ही उठा लिया था। वह जब पूरे पर्वत को ही लंका ले जाने लगा, तो भगवान शिव ने अपने अंगूठे से पर्वत को दबा दिया। तो कैलाश पर्वत फिर वहां स्थापित हो गया। इस घटना में रावण का हाथ पर्वत नीचे दब गया। एेसे में रावण ने भगवान शिव से क्षमा मांगते हुए स्तुति की। यह शिव क्षमा स्तति ही शिव तांडव स्तोत्र कहलाया।
अरुण संहिता संस्कृत भाषा में रचिल है। असल में इस मूल ग्रंथ को लाल किताब के नाम से जाना जाता है। इस का अनुवाद कई भाषाओं में हो चुका है। मान्यता है कि इस का ज्ञान सूर्य के सारथी अरुण ने लंकाधिपति रावण को प्रदान किया था। इस ग्रंथ में जन्म कुण्डली, हस्त रेखा तथा सामुद्रिक शास्त्र की बहुमूल्य जानकारी संग्रहित है।
रावण संहिता में जहां रावण के संपूर्ण जीवन के बारे में जानकारी है। वहीं यह ज्योतिष की बेहतर जानकारियों का भंडार भी है।

रावण बेहद दयालु प्रवृति के थे
रावण की विनम्रता जगजाहिर थी। भगवान श्री राम जब रामेश्वरम् में ‍शिवलिंग की स्थापना की थी। तब उन्हें विद्वान पंडित की आवश्यकता थी। तब रावण ने श्री राम के इस आमंत्रण को स्वीकारा था। श्री राम रावण के युद्ध के दौरान घायल लक्ष्मण की चिकित्सा करने के लिए आयुर्वेदाचार्य सुषेण को सहर्ष अनुमति प्रदान कर दी थी। रावण ने दो वर्ष तक सीता को अपने पास बंधक बनाकर रखा, लेकिन उसने भूलवश भी सीता को छूआ तक नहीं था।

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ईसा पूर्व 5076 साल पहले हुआ था राम रावण युद्ध
अंतरिक्ष एजेंसी नासा का प्लेनेटेरियम सॉफ्टवेयर हर तरह की गणना करने में सक्षम है। सॉफ्टवेयर अनुसार राम को वनवास, राम-रावण युद्ध ईसा पूर्व 5076 साल पहले हुआ था। श्रीलंका की श्रीरामायण रिसर्च कमेटी अनुसार रावण का शव श्रीलंका की रानागिल की गुफा में आज भी सुरक्षित रखा है। यानिकि आज उसे सात हजार 89 वर्ष हो चुके हैं। इस गुफा में रिसर्च आज भी जारी है।

 

प्रदीप शाही

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