धृतराष्ट्र, गंधारी को किस ने प्रदान की दिव्य दृष्टि

-महाभारत युद्ध के बाद क्या हुआ ?

प्रदीप शाही

महाभारत को विश्व का सबसे बड़ा महायद्ध कहा जाए, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। 18 दिनों तक चलने वाले महाभारत के युद्ध में लाखों की तादाद में पांडवों व कौरवों के पक्ष के लोगों की मौत हुई। कहा जाता है कि कुरुक्षेत्र की धरती पर हुए महाभारत के युद्ध में मारे गए लाखों सैनिकों के कारण धरती की मिट्टी आज भी लाल है। महाभारत के युद्ध तक की कई जानकारियों का सही ढंग से उल्लेख मिलता है। परंतु इस युद्ध के बाद क्या हुआ। इसकी जानकारियां बेहद कम लोग जानते हैं। महाभारत के युद्ध के बाद धृतराष्ट्र व गंधारी को एक महर्षि ने दिव्य दृष्टि प्रदान की। वह महर्षि कौन से से थे। आईए, इस बारे आपको विस्तार से जानकारी प्रदान करते हैं।

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दुश्मनों के शवों का भी किया जाता था विधिपूर्वक अंतिम संस्कार

सतयुग, त्रेतायुग के बाद द्वापर युग और अब कलयुग में लागातार विचारों व सोच में परिवर्तन साफ तौर से देखा जा सकता है। मौजूदा समय में दुश्मन के शवों के साथ बर्बरता पूर्ण व्यवहार साफ तौर से देखा जा सकता है। परंतु पौराणिक काल में दुश्मनों के शवों का भी विधिपूर्वक अंतिम संस्कार करने की परंपरा थी। कहा जाता है कि जब भीष्म पितामह ने अपनी अंतिम सांस ली थी। तो समूची कुरुक्षेत्र की युद्ध भूमि को जला दिया गया था। ताकि मृत योद्धाओं की आत्माओं को स्वर्ग में स्थान मिल सके।

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भीम के व्यवहार से निराथ धृतराष्ट्र, गंधारी बन गए

महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद महाबली भीम ने गुस्से में आकर महाराजा धृतराष्ट्र को कड़वी बातें कह डाली। महाराजा धृतराष्ट्र, भीम की बातों का जवाब तो नहीं दे पाए। साथ ही उन्होंने अपना अंतिम समय वन में व्यतीत करने का फैसला किया। वहीं गांधारी ने भी अपने पति संग ही वन में जाने की घोषणा कर दी। इतना ही महाराजा धृतराष्ट्र औऱ गांधारी के साथ महात्मा विदुर व संजय ने भी वन में रहने की अपनी इच्छा व्यक्त कर दी।

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अपने पुत्रों के श्राद्ध के लिए धृतराष्ट्र ने मांगा धन

वन गमन से पहले धृतराष्ट्र ने अपने सभी पुत्रों और योद्धाओं के श्राद्ध के लिए महाराज युधिष्ठर से धन की मांग की, लेकिन भीम ने उन्हें निऱाश कर दिया। परंतु महाराज युधिष्ठर को भीम का यह कथन सही नहीं लगा। उन्होंने धृतराष्ट्र को धन देते हुए उनके बेटों का श्राद्ध भी करवाया। इसके बाद ही धृतराष्ट्र, गंधारी, महात्मा विदुर औऱ संजय वन के लिए प्रस्थान करने लगे। तो माता कुंती ने भी उनके साथ ही वन जाने का अपना फैसला सुना दिया। माता कुंती को वन में जाने से रोकने के लिए पांचों भाइयों ने काफी कोशिश की। परंतु माता कुंती अपने फैसले पर अटल रही।

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किस महर्षि ने धृतराष्ट्र, गंधारी को प्रदान की दिव्य दृष्टि

धृतराष्ट्र, गंधारी, महात्मा विदुर, संजय और माता कुंती को वन में गए एक साल का लंबा समय बीत गया था। एक दिन सभी पांडवों और द्रोपदी के मन में वन में गए सभी लोगों से मिलने की इच्छा जागी। सभी वन में मुलाकात करने गए। धृतराष्ट्र, गंधारी और माता कुंती अपने परिवार से मिल कर बेहद प्रसन्न हुए। धृतराष्ट्र, गंधारी की कुटिया में इतने लोगों को एक साथ देख कर महात्मा विदुर बिना मिले ही वापिस अपनी कुटिया में चल गए। महाराज युधिष्ठर को जब पता चला तो वह महात्मा विदुर से मिलने चल पड़े। परंतु महात्मा विदुर के मुलाकात से पहले ही प्राण निकल गए। और महात्मा विदुर के प्राण युधिष्ठर के शरीर में प्रवेश कर गए।

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कुछ समय के बाद महर्षि वेद व्यास का कुटिया में आगमन हुआ। जब उन्हें महात्मा विदुर की मौत के बारे जानकारी दी। तो उन्होंने बताया कि महात्म विदुर यमराज के अवतार थे। महाराज युधिष्ठर भी उन्हीं के अंश हैं। इसलिए महात्मा विदुर के प्राण महाराज युधिष्ठर में प्रवेश कर गए हैं। महर्षि वेद व्यास ने सभी लोगों को बताया कि वह आज आप सब को अपने तप का प्रमाण देंगे। इसलिए जिन्हें जो भी चाहिए। वह मांग सकता है। सभी ने विचार विमर्श करते हुए महर्षि वेद व्यास से कहा कि वह महाभारत के महायुद्ध में मारे गए अपने सभी प्रियजनों को एक बार देखना चाहते हैं। तब महर्षि वेद व्यास ने धृतऱाष्ट्र औऱ गंधारी को दिव्य दृष्टि प्रदान की। ताकि वह अपने प्रियजनों को देख सकें। रात के समय महर्षि वेद व्यास गंगा नदी में प्रवेश कर गए। कुछ समय पश्चात भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य, कर्ण, दुर्धोधन, दुशासन, अभिमन्यु, घटोत्त्कच, द्रोपदी के पुत्र, शकुनि, शिखंडी व अन्य सभी एक-एक कर के नदी से बाहर निकल आए। नदी से बाहर आए इन लोगों के मन किसी के प्रति कोई द्वेष, ईष्या का भाव नहीं दिखा। सभी ने अंतिम बार अपने प्रियजनों को देखा और महर्षि वेद व्यास का आभार जताया।

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