घट-घट में, कण-कण में है प्रभु श्री राम का वास

-भारत में यहां पर स्थित हैं भगवान श्री राम के मंदिर
भगवान श्री विष्णु हरि के अवतार भगवान श्री राम का घट-घट व कण-कण में वास माना जाता है। भगवान श्री राम के राम राज्य का उल्लेख सदियों बाद भी आज भी कायम है। दुख हो या फिर राम का नाम हर इंसान के मुख पर स्वतः ही आ जाता है। मर्यादा पुरुषोतम भगवान श्री राम के पावन मंदिर केवल भारत ही नहीं विश्व भर में स्थापित हैं। आज हम आपको भगवान श्री राम के प्राचीन मंदिरों के इतिहास के बारे विस्तार से जानकारी प्रदान करेंगे कि यह मंदिर भारत में कहां-कहां स्थित हैं।


राम जन्म भूमि मंदिर, अयोध्या
शोधकर्ताओं अनुसार भगवान श्री राम का जन्म आज से 7128 वर्ष पूर्व यानिकि 5114 ईस्वी पूर्व को उत्तर प्रदेश के अयोध्या नगर में हुआ था। इस पावन स्थल का उल्लेख कई पुराणों में वर्णित है। अयोध्या हिंदुओं प्राचीन सात पवित्र तीर्थस्थलों में से एक माना गया है। सरयू नदी के तट पर बसे अयोध्या नगर को रामायण अनुसार मनु ने बसाया था। कहा जाता है कि मध्य काल में राम जन्मभूमि पर बने श्री राम मंदिर को मुगल राज में महाराज बाबर ने तोड़कर वहां एक मस्जिद स्थापित कर दी। इस स्थलआज भी लंबा समय बीत जाने के कारण अभी भी विवाद जारी है। अयोध्या को घाटों और मंदिरों की प्रसिद्ध नगरी कहा जाता है। सरयू नदी अयोध्या से ही होकर बहती है। सरयू नदी के किनारे 14 प्रमुख घाट हैं, लेकिन इनमें गुप्तद्वार घाट, कैकेयी घाट, कौशल्या घाट, पापमोचन घाट, लक्ष्मण घाट विशेष तौर से उल्लेखनीय हैं।

वास्तुकला का है अनूठा रघुनाथ मंदिर
जम्मू शहर में स्थित भगवान श्री राम का रघुनाथ मंदिर आकर्षक वास्तुकला का नमूना है। रघुनाथ मंदिर को 1835 में महाराजा गुलाब सिंह ने बनवाना शुरू किया। जबकि इस मंदिर का पूर्ण निर्माण महाराजा रंजीत सिंह के कार्यकाल में हुआ। इस मंदिर में सात अन्य ऐतिहासिक धार्मिक स्‍थल भी मौजूद है। मंदिर की भीतरी दीवारों पर तीन तरफ से सोने की परत चढ़ी हुई है। मंदिर के चारों तरफ कई मंदिर भी हैं। जिनका संबंध रामायण काल से है।

त्रिप्रायर श्रीरामा मंदिर में उकेरे हैं रामायण काल के चित्र
केरल के दक्षिण-पश्चिमी शहर त्रिप्रायर में स्थित श्रीरामा मंदिर में रामायण काल के चित्रों को उकेरा हुआ है। भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्रीराम की इस मंदिर में पूजा की जाती है। इस मंदिर के बारे में कई किंदवंतियां प्रचलित हैं। कहा जाता है इस मंदिर में स्थापित मूर्ति यहां के मुखिया को समुद्र तट पर मिली थी। इस मूर्ति में भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान शिव के तत्व मौजूद हैं। इस कारण प्रतिमा की पूजा त्रिमूर्ति के रूप में की जाती है। मंदिर के परिसर में एक गर्भगृह और दूसरे को नमस्कार मंडपम कहा जाता है। मंदिर में नवग्रहों को दर्शाती हुई लकड़ी की नक्काशी और प्राचीन भित्ति चित्र इसकी पौराणिक होने का प्रमाण देते हैं। त्रिप्रायर श्रीराम मंदिर में पारंपरिक कलाओं जैसे कोट्टू नाटक का रोजाना मंचन किया जाता है।

भगवान श्री राम वनवासियों के हैं पूजनीय
आंध्र प्रदेश के भद्राचलम शहर में स्थित श्रीसीतारामचंद्र स्वामी मंदिर के आसपास के सारे क्षेत्र वनवासी रहते हैं। इसी कारण भगवान राम वनवासियों के परम पूजनीय हैं। कहा जाता है कि जब भगवान राम लंका से सीता को बचाने के लिए गए थे, तब गोदावरी नदी को पार कर इस स्थान पर रुके थे। श्री सीता राम चंद्र स्वामी मंदिर गोदावरी नदी के किनारे ठीक उसी जगह पर बनाया गया है, जहां से राम ने नदी को पार किया था। भद्राचल से कुछ दूरी पर श्रीराम ने एक पर्णकुटी बनाकर अपना समय व्यतीत किया था। आज भी इस स्थान को पर्णशाला कहा जाता है। यहीं पर कुछ ऐसे प्राचीन शिलाखंड भी हैं, जहां सीताजी ने वनवास के दौरान वस्त्र सुखाए थे।

सीता स्वंयवर के समय बना था हरिहरनाथ मंदिर
भगवान श्री राम ने त्रेता युग में भगवान विष्णु को समर्पित हरिहरनाथ मंदिर का सोनपुर में निर्माण करवाया था। माना जाता है कि श्रीराम ने यह मंदिर तब बनवाया था, जब वह सीता स्वयंवर में जा रहे थे। सारण और वैशाली जिले की सीमा पर गंगा और गंडक नदी के संगम पर स्थित इस मंदिर का निर्माण राजा मानसिंह ने करवाया। वर्तमान में जो मंदिर है, उसका जीर्णोद्धार तत्कालीन राजा राम नारायण ने करवाया था।

 

दो हजार साल पुराना है थिरुवंगड श्रीरामस्वामी मंदिर
केरल के जिला कन्नूर स्थित थालास्सेरी में अंग्रेजों द्वारा बनाया गया एक प्रसिद्ध किला है। यहां से कुछ दूरी ही प्रसिद्ध राम मंदिर भी है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण दो हजार साल पहले हुआ था। इससे पहले इस स्थान पर भगवान परशुराम ने एक विष्णु मंदिर का निर्माण करवाया था। इस स्थान का संबंध अगस्त्य मुनि से भी माना गया है।

चित्रकूट में भगवान श्री राम मंदिर
भगवान श्रीराम अपने अनुज लक्ष्मण और पत्नी सीता सहित प्रयाग पहुंचे थे। प्रयाग में गंगा, जमुना, सरस्वती का संगम होता है। इस स्थान पर ही कुंभ मेले का आयोजन होता है। प्रभु श्रीराम संगम नदी पार कर ही चित्रकुट पहुंचे थे। यहां पर वाल्मीकि आश्रम, मांडव्य आश्रम, भरतकूप स्थलों का खास महत्व है। चित्रकूट में राम ने अनुसूया के आश्रम में कई महीनों तक वास किया था। चित्रकूट में ऐसे कई स्थल हैं, जो राम, लक्ष्मण और सीता के जीवन से जुड़े हुए हैं। यहां पर रामघाट, जानकी कुंड, हनुमानधारा, गुप्त गोदावरी कई दर्शनीय स्थल हैं।

सतना में है पावन रामवन
भगवान श्री राम अत्रि-आश्रम के बाद सतना स्थित रामवन पहुंचे है। नर्मदा व महानदी नदियों के किनारे 10 वर्षों तक उन्होंने कई ऋषि आश्रमों का भ्रमण भी किया। दंडकारण्य क्षेत्र तथा सतना के आगे वह सरभंग व सुतीक्ष्ण मुनि आश्रमों में गए। आज भी पन्ना, रायपुर, बस्तर और जगदलपुर में कई स्मारक विद्यमान हैं। शहडोल के पूर्वोत्तर की ओर सरगुजा क्षेत्र है। यहां एक पर्वत का नाम रामगढ़ है। 30 फीट की ऊंचाई से एक झरना जिस कुंड में गिरता है, उसे सीता कुंड कहा जाता है। इसके अलावा दो अन्य गुफाएं लक्ष्मण बोंगरा और सीता बोंगरा भी हैं।

पंचवटी में बसते हैं भगवान श्री राम
विभिन्न ऋषियों मुनियों के आश्रमों में रहने के बाद श्रीराम अगस्त्य मुनि के आश्रम गए। मुनि का आश्रम नासिक के पंचवटी क्षेत्र में था। भगवान श्री राम ने सीता व लक्ष्मण सहित बनवास का कुछ समय यहां बिताया था। उस काल में पंचवटी यह स्थान या दंडक वन में आता था। पंचवटी से गोदावरी त्र्यंम्बकेश्वर लगभग 20 मील दूर स्थित है। यहां पर अगस्त्य मुनि ने श्रीराम को अग्निशाला में बनाए गए शस्त्र भेंट किए थे। श्रीराम ने अपने जीवन का कुछ समय पंचवटी में व्यतीत किया। और गोदावरी के तट पर स्नान किया। गोदावरी के तट पर पांच वृक्षों के स्थान को ही पंचवटी कहा जाता है। ये पांच वृक्ष पीपल, बरगद, आंवला, बेल तथा अशोक वट सीता माता की गुफा के पास आज भी मौजूद हैं। इन वृक्षों को प्रभु श्री राम सीमा और लक्ष्मण ने अपने हाथों से लगाया था। इसी स्थान पर लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक काटी थी। साथ ही राम और लक्ष्मण ने खर व दूषण के साथ युद्ध किया था। नासिक के आसपास का स्थान स्मारकों से भरा पड़ा है। इनमें सीता सरोवर, राम कुंड, त्र्यम्बकेश्वर प्रमुख हैं। यहां पर श्रीराम का बनाया हुआ एक मंदिर खंडहर रूप में आज भी विद्यमान है। सबसे खास बात यह है कि मरीच का वध पंचवटी के पास मृगव्याधेश्वर में हुआ था। जबकि गिद्धराज जटायु की श्रीराम से मुलाकात भी यहीं हुई थी।

प्रदीप शाही

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