क्यों अर्जुन ने धरती पर स्वर्ग से बुलाया, देवराज इंद्र का ऐरावत हाथी ?

प्रदीप शाही

-गजलक्ष्मी पूजन से होती है माता की विशेष कृपा

सृष्टि पालनकर्ता भगवान श्री विष्णु जी की पत्नी महालक्ष्मी के आठ रूप आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी और विद्यालक्ष्मी हैं। इनमें से माता लक्ष्मी के गजलक्ष्मी रूप का विधिवत पूजन करने से माता की विशेष कृपा होती है। गजलक्ष्मी रूप में माता का पूजन करने से राज्य सुख, सुख संपत्ति, संतान व परिवार सुख हासिल होता है। महाभारत काल में वीर अर्जुन ने माता कुंती की उदासी को दूर करने के लिए देवराज इंद्र के वाहन ऐरावत हाथी को धरती पर बुला लिया था। तब पांचों पांडवों, माता कुंती व अन्य राज्य वासियों ने ऐरावत हाथी की पूजा कर माता लक्ष्मी के गजलक्ष्मी रूप से विशेष कृपा हासिल की।

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महाभारत काल में एक बार महर्षि श्री वेदव्यास जी हस्तिनापुर पधारे। महाराज धृतराष्ट्र ने महर्षि श्री वेदव्यास का हस्तिनापुर पहुंचने पर आदर सत्कार किया। फिर उन्हें राजमहल में ले गए। स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान कर उनका पूजन किया। महर्षि वेद व्यास से माता कुंती तथा गांधारी ने हाथ जोड़ कर निवेदन किया कि हे महामुनि, आप तो सर्वज्ञाता हैं। आप हमें कोई ऐसा सरल व्रत तथा पूजन बताएं। जिससे हमें राज्यलक्ष्मी, सुख-संपत्ति, संतान सुख व  परिवार सुख प्राप्त हो। महर्षि श्री वेद व्यास जी ने बताया कि श्री महालक्ष्मी जी का व्रत ऐसा व्रत है, इसे माता गजलक्ष्मी व्रत भी कहा जाता है। प्रतिवर्ष आश्विन कृष्ण अष्टमी को विधिवत पूजन कर सभी सुखों को प्राप्त किया जा सकता है।  

महर्षि वेद व्यास जी ने कहा कि भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को शुरु होने वाले व्रत का शुभारंभ स्नान कर 16 सूत के धागों का डोरा बनाएं। हल्दी से पीला कर धागे के डोरे में 16 गांठ लगाएं। इस  डोरे पर 16 दूब व 16 गेहूं के दाने चढ़ाएं। अश्विन कृष्ण अष्टमी के दिन उपवास रखकर मिट्टी के बनाए हाथी पर श्री महालक्ष्मी जी की प्रतिमा स्थापित कर विधिपूर्वक पूजन करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। माता कुंती व गंधारी को व्रत की समूची जानकारी प्रदान कर महर्षि वेदव्यास अपने आश्रम को चले गए।

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माता कुंती व गंधारी ने भाद्रपद शुक्ल अष्टमी से अपने-अपने महलों में पहुंच कर राज्य में रहने वाली महिलाओं सहित व्रत शुरु किया। पूजन के 15 दिन बीतने के बाद गांधारी ने 16वें दिन अश्विन कृष्ण अष्टमी के दिन सभी महिलाओं को अपने महल में बुलवा लिया। जबकि माता कुंती के महल में कोई भी पूजन करने के लिए नहीं पहुंची। इतना ही नहीं गांधारी ने भी माता कुंती को पूजन में भाग लेने के लिए आमंत्रित नहीं किया। माता कुंती ने इसे अपना अपमान समझा। इस घटना के घटित होने से वह उदास हो गई।

जब भ्राता युधिष्ठिर सहित अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव पांचों पांडव महल पहुंचे। तो सभी ने माता कुंती को बेहद उदास देख कर इसका कारण जानना चाहा। पांडवों ने पूछा माता-आप आज उदास क्यों हैं। आपने अश्विन कृष्ण अष्टमी पूजन की अभी तक तैयारी क्यों नहीं की है।  तब माता ने बताया कि आज महालक्ष्मीजी के गजलक्ष्मी रूप के व्रत का उत्सव तो गांधारी के महल में मनाया जा रहा है। गांधारी ने राज्य की सभी महिलाओं को बुला लिया है। इतना ही नहीं उसके 100 बेटों ने मिट्टी के एक विशाल हाथी का निर्माण किया है। सभी महिलाएं उस विशाल हाथी का पूजन करने के लिए गांधारी के महल गईं हैं। मेरे बुलाने पर भी कोई महिला यहां नहीं पहुंची। यह सुनते ही वीर अर्जुन ने कहा कि माता आप पूजन की तैयारी करें। साथ ही नगर में ढिंडोरा भी करवा दें, कि हमारे महल में स्वर्ग से इंद्र देव के ऐरावत हाथी की पूजा की जाएगी। माता कुंती ने वीर अर्जुन के कहने पर नगर में ढिंढोरा करवा दिया। महल में पूजा की विशाल तैयारी होने लगी। वहीं दूसरी तरफ अर्जुन ने अपने बाण के द्वारा इंद्र देव के वाहन ऐरावत हाथी को अपने महल में बुला लिया। समूचे शहर में शोर मच गया कि माता कुंती के महल में इंद्र देव के ऐरावत हाथी की पूजा की जाएगी। गांधारी के महल में पहुंची महिलाएं व अन्य सभी लोग माता कुंती के महल पहुंचने लग गए।

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माता कुंती ने ऐरावत के स्वागत के लिए रेशमी वस्त्र बिछवा दिए। नगरवासी स्वागत करने के लिए नगर में जगह-जगह खडे हो गए। स्वर्ग से ऐरावत हाथी जब धरती पर उतरने लगा तो हर तरफ शोर मचने लगा। सभी शहरवासी हाथी की जय-जय कार करने लगे। राज पुरोहित द्वारा ऐरावत हाथी पर महालक्ष्मी जी की प्रतिमा को स्थापित कर मंत्रोच्चारण द्वारा पूजन किया गया। माता कुंती ने 16 गांठों वाले डोरे को माता लक्ष्मी जी को अर्पित कर अपने हाथों में बांध लिया। समागम में आमंत्रित ब्राह्मणों को भोजन करवा कर दक्षिणा के रूप में स्वर्ण आभूषण और वस्त्र भेंट किए गए। अगले दिन सुबह राज पुरोहित ने मंत्रोच्चारण करते हुए माता लक्ष्मी जी प्रतिमा को यमुना के जल में विसर्जित किया। इसके बाद ऐरावत हाथी इन्द्रलोक को प्रस्थान कर गया।

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जो भी महिलाएं श्री महालक्ष्मी जी का विधिपूर्वक व्रत एवं पूजन करती हैं। उनके घर सुख समृद्धि, धन से पूर्ण रहते हैं। इतना ही नहीं उस घर में महालक्ष्मी जी हमेशा वास करती हैं।

महालक्ष्मी जी का स्तुति मंत्र…
‘महालक्ष्‍मी नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं सुरेश्वरि।
हरि प्रिये नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं दयानिधे।।’

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