कृपालु श्री राम ने ऐसे किया माता कैकयी का उद्धार

-भेड़ों ने कैसे बदल दिया माता कैकयी का जीवन

प्रदीप शाही

यह पूर्णतौर से सत्य है कि भगवान श्री राम के नाम का सिमरन करते ही सब दुखों का निवारण हो जाता है। तभी तो रामसेतू के निर्माण के दौरान पत्थरों पर भी कण-कण में विद्यमान मर्यादा पुरुषोतम भगवान श्री राम का नाम लिखते ही वह समुद्र में तैरने लग गए थे। हनुमान जी भी तो यही कहते हैं कि भगवान श्री राम तो घट-घट के वासी है। जिधर भी देखो, प्रभु श्री राम ही विद्यमान है। एक घटना अनुसार कृपालु श्री राम ने माता कैकयी के मन में समाए अज्ञान को समाप्त कर उनका उद्धार किया। कैसे भेड़ों ने माता कैकयी के जीवन को बदल डाला। आईए, आज आपको इस घटना के बारे विस्तार से जानकारी प्रदान करते हैं।

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माता कैकयी ने श्री राम से मांगी क्षमा

भगवान श्री राम लंका पर विजय हासिल करने के बाद अयोध्या वापिस लौटे। माता कैकयी, श्री राम के कक्ष में अपने अपराध की क्षमा मांगने के लिए पहुंची। कैकयी ने कहा कि मैंने तुम्हें वनवास में भेज कर बहुत बड़ा अपराध किया। मैं जानती हूं कि अपराध क्षमा योग्य नहीं है। पर मैं यह भी जानती हूं कि तुम कृपालु है। मेरा अपराध क्षमा करते हुए मुझे अपनी शरण में ले लो। मेरे मन पर पड़े अज्ञान के पर्दे को हटा कर मेरा उद्धार करो।

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श्री राम ने कहा कि माता, आपने तो कोई भी अपराध नहीं किया है। जब आपने मेरे लिए वनवास जाने की मांग की थी। उस समय देवी सरस्वती आपकी वाणी पर विराजमान थी। इसलिए यह तो होना तय था। आपके प्रति मेरे दिल में कोई भी गुस्सा नहीं है। माता कैकयी वही खड़ी हो कर राम को देखती रही। तब श्री राम ने लक्ष्मण को कहा कि कल माता को कहीं ले जाकर उपदेश दिला देना। यह सुनने के बाद माता कैकयी वहां से विदा हो गई।

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माता कैकयी को भेड़ों से उपदेश दिला देना लक्ष्मण

माता कैकयी के जाने के बाद श्री राम ने लक्ष्मण से कहा कि तुम कल माता कैकयी को सरयू नदी के तट पर ले जाना। वहां पर कई भेंड़ें रहती हैं। तुम भेड़ों के मुख से कुछ उपदेश माता को दिला लाना। लक्ष्मण अपने भ्राता श्री राम की बात सुन कर अचंभित हो गए। औऱ सोचने लगे की भेड़ें भला क्या उपदेश देंगी। श्री राम के आदेशानुसार लक्ष्मण, माता कैकयी को नदी के तट पर लेकर चले गए। माता कैकयी को जब सारी जानकारी मिली तो वह सोचने लगी शायद राम ने उसके साथ उपहास किया है। भेड़ें कैसे उपदेश दे सकती है। तभी बड़ी संख्या में भेड़ें आकर मैं-मैं करने लगी।  कैकयी सोचने लगी कि इस मैं-मैं कोई तो भाव छिपा हुआ है। श्री राम ने उन्हें अकारण यहां नहीं भेजा है। कुछ तो राज इसमें जरुर छिपा हुआ है। कैकयी ने आंखे बंद कर ली। कुछ समय बाद माता कैकयी ने लक्ष्मण से कहा कि चलो वापिस राज महल चलो। उन्हें सब ज्ञात हो गया है। लक्ष्मण की समझ में कुछ भी नहीं आया।

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राम तुम सचमुच में परम कृपालु हो

राजभवन पहुंच कर माता कैकयी ने श्री राम से कहा कि आज भेड़ों ने मुझे सच्चे ज्ञान की अनुभूति करवा दी है। भेड़ जो मैं-मैं कर रही थी। उसी तरह मुझ में भी मैं का अंहकार छिपा था। मेरा परिवार, मेरे बच्चे, मेरा राज, मेरी संपत्ति। हर जगह मुझे मैं हीं मैं दिखाई देता था। भेड़ों ने सिखा दिया कि मैं को तज कर सच्चे प्यार की अनुभूति हो सकती है। मैं शब्द के छूट जाने के साथ ही परम पिता परमात्मा के दर्शन हो सकते हैं। राम तुमने मेरी भेड़ों के माध्यम से आंखे खोल दी। तुम सचमुच में परम कृपालु हो।

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