किस पतिव्रता महिला ने यमराज को कमंडल में कर लिया था कैद

-चिरंजीवी होने का आशीर्वाद सबसे पहले किसने दिया

प्रदीप शाही

हिंदू धर्म अनुसार यमराज को मृत्यु का देवता कहा जाता है। यमराज का उल्लेख वेदों में भी मिलता है। जीवों के सभी अच्छे बुरे कर्मों के निर्णायक कहे जाने वाले, हाथों में दंड धारण किए यमराज का वाहन भैंसा है। क्या आप जानते हैं कि एक बार यमराज को एक पतिव्रता महिला ने अपने कमंडल में कैद कर लिया था। यमराज को कैद करने के पीछे क्या था महिला का उद्देश्य। आईए, आज आपको बताएं कि आखिर कैसे यमराज उस कमंडल से आजाद हुए।

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माता महामाया को प्रसन्न कर हासिल किया आशीर्वाद

कहा जाता है कि प्राचीन समय में एक सज्जन ब्राह्मण अपनी धर्मपत्नी संग खुशी-खुशी जीवन बिता रहा था। ब्राह्मण परिवार केवल संतान के न होने के कारण परेशान रहता था। ब्राह्मण की पत्नी बेहद सरल स्वभाव की थी। भगवान प्रति बेहद आस्था थी। एक दिन ब्राह्मण की पत्नी ने संतान प्राप्ति के लिए माता महामाया की तपस्या करनी शुरु कर दी। कठोर तप करने से माता महामाया प्रसन्न हो गई। भक्ति से प्रसन्न हो कर देवी महामाया ने उसे दर्शन देकर तपस्या का कारण पूछा। ब्राह्मण की पत्नी माता महामाया को अपने समक्ष पाकर अति प्रसन्न हुई। माता को प्रणाम कर तपस्या का कारण बताते कहा कि मातेश्वरी, अगर आप मेरी तपस्या से प्रसन्न हैं। तो मुझे एक कीर्तिवान पुत्र की माता बनने का वरदान दें| माता महामाया ने ब्राह्मण की पत्नी से कहा कि तुम कैसे पुत्र की माता बनना चाहोगी। पहला-तुम्हारा पुत्र बड़ा ही दीर्घायु होगा। जो दस हजार वर्ष जीवित रहेगा, परंतु मूर्ख होगा। या फिर ऐसा पुत्र जो अति विद्वान् होगा। परंतु महज 15 साल तक ही जीवित रहेगा। अब फैसला तुम्हारा है कि तुम किस तरह के पुत्र की माता बनना चाहती हो। माता महामाया का कथन सुन कर ब्राह्मण की पत्नी ने कहा कि मातेश्वरी, एक पंडित का पुत्र अगर मूर्ख होगा। तो ऐसी संतान की क्या लाभ। ऐसे में आप मुझे अल्पायु विद्वान् पुत्र की माता बनने का ही वरदान दें। माता महामाया ने मुस्कुराते हुए कहा तथास्तु। ठीक नौ माह बाद ब्राह्मण की पत्नी ने एक सुन्दर बालक को जन्म दिया।

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अल्पायु बालक की हुई शादी और फिर मौत

माता महामाया की कृपा से उत्पन्न हुआ बालक ज्यों-ज्यों बड़ा होने लगा। वैसे ही उसके ज्ञान की चर्चा हर तरफ होने लगी। बालक जब 12 साल का हुआ तो ब्राह्मण की पत्नी ने अपने बेटे की शादी करने का फैसला किया। बालक का एक सुंदर कन्या से शादी कर दी। जैसे ही बालक ने अपने 15 साल पूरा किए। तो यमराज ने सांप का वेश धारण बालक को डस लिया। सांप के डसने से बालक की मौत हो गई। बालक को जब सांप ने डसा। तब उसकी पत्नी पास ही मौजूद थी। बालक की पत्नी ने तुरंत ही सांप को पकड़ कर अपने कमंडल में बंद कर दिया। साथ ही माता महामाया की तपस्या करनी प्रारम्भ कर दी। सांप के रूप में यमराज के कमंडल में कैद होने की वजह से तीनो लोकों में त्राहि-त्राहि होने लगी। मृत्यु न होने से प्रकृति में असंतुलन पैदा हो गया। सभी देवी-देवताओं ने माता महामाया के समक्ष जाकर यमराज को छुड़ाने की प्रार्थना की।

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कमंडल में कैद यमराज को माता महामाया ने करवाया मुक्त

माता महामाया ने प्रकृति में पैदा हुए असंतुलन को सही करने के उद्देश्य से  कन्या को दर्शन दिया। साथ ही उसके पति को जीवित कर दिया। बालक की पत्नी को कमंडल में कैद यमराज को मुक्त करने के लिए कहा। बालक की पत्नी ने कमंडल में कैद यमराज को मुक्त किया। यमराज ने बालक की पत्नी की अपने पति के प्रति समर्पण की भावना से प्रभावित होकर उसके पति को चिरंजीवी होने का आशीर्वाद दिया। इसके बाद ही शादी के समय किसी भी वर के नाम से पहले चिरंजीवी लगाने का चलन शुरू हुआ था।

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