ऐसा रहस्यमयी मंदिर जिसके बंद होने पर भी आती है पूजा व घंटी की आवाज़

धर्मेन्द्र संधू

भारत के प्राचीन मंदिर अपने रहस्यों के कारण पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं। इन मंदिरों में घटित होने वाले चमत्कार आज भी रहस्य बने हुए हैं। एक ऐसा ही मंदिर मध्य प्रदेश में स्थित है जिसके बारे में कहा जाता है कि इस मंदिर के बंद होने के बाद भी घंटी की आवाज़ आती है जो आज भी रहस्य बनी हुई है।

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माता शारदा मंदिर

माता शारदा का प्राचीन मंदिर मध्य प्रदेश के रीवा में है। यह मंदिर रीवा के नज़दीक सतना जिले की मैहर तहसील में त्रिकूट पर्वत पर स्थित है। यह प्राचीन मंदिर भारत का इकलौता माता शारदा का मंदिर है। यह रहस्यमयी मंदिर मैहर नगर से 5 किलोमीटर दूरी पर त्रिकूट पर्वत पर स्थित है। पर्वत के शिखर पर मां शारदा का निवास स्थान माना जाता है। मान्यता है कि इस स्थान पर माता सती के गले का हार गिरा था। मैहर का अर्थ मां का हार होता है। मां शारदा के दर्शनों के लिए 1100 के करीब सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। मां शारदा की मूर्ति की स्थापना का समय 559 विक्रम संवत माना जाता है। इस पर्वत पर माता के साथ ही श्री काल भैरवी, काली देवी, मां दुर्गा, फूलमति माता, जलापा देवी, हनुमान जी, श्री गौरी शंकर, ब्रह्म देव और शेष नाग के दर्शन भी होते हैं।

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मंदिर के बंद होने पर आती है पूजा की आवाज़

इस मंदिर से आने वाली पूजा व घंटी की आवाज़ पहेली बनी हुई है। यह आवाज मंदिर के कपाट बंद होने के बाद आती है। लोगों का मानना है कि माता का भक्त आल्हा आज भी इस मंदिर में पूजा करने के लिए आता है। सुबह जब मंदिर के कपाट खोले जाते हैं तो वहां पूजा हो चुकी होती है और शाम की आरती के बाद मंदिर के कपाट बंद करने के बाद भी पूजा की आवाज सुनाई देती है। अगर तुरंत भी मंदिर के कपाट खोले जाएं तो अंदर कोई नहीं होता। इस रहस्य से पर्दा उठाने के लिए कई बार कोशिश की गई परंतु हर बार असफलता ही हाथ लगी।

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आल्हा व उदल ने की थी मंदिर की खोज

कहा जाता है कि इस मंदिर की खोज आल्हा व उदल नामक दो भाईयों द्वारा की गई थी। मान्यता है कि आज भी सबसे पहले माता के दर्शन आल्हा व उदल द्वारा ही किए जाते हैं। यह भी कहा जाता है कि आल्हा माता को शारदा माई कहा करता था। इसी के चलते यह मंदिर शारदा माई के नाम से विख्यात हुआ है। मंदिर के पीछे निचले भाग में एक तालाब है, इस तालाब को आल्हा तालाब कहते हैं। इस तालाब से कूछ दूरी पर एक अखाड़ा भी है। कहते हैं कि इस अखाड़े में आल्हा व उदल कुश्ती किया करते थे। तालाब से इस प्राचीन अखाड़े की दूरी 2 किलोमीटर के करीब है।

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आल्हा व उदल थे वीर योद्धा

आल्हा और उदल नामक दो भाई बुन्देलखण्ड के महोबा के वीर योद्धा थे। ये दोनों भाई कालिंजर के राजा परमार के सामंत थे। राजा परमार के दरबारी कवि जगनिक ने आल्हा व उदल की वीरता को दर्शाते एक काव्य ‘आल्हा खण्ड’ की रचना भी की थी। इस काव्य ग्रंथ में दोनों वीरों की 52 लड़ाइयों का रोमांचकारी वर्णन देखने को मिलता है। आल्हा व उदल ने आखरी युद्ध पृथ्वीराज चौहान के साथ लड़ा था। इस युद्ध में चौहान की हार हुई थी। कहा जाता है कि गुरु गोरखनाथ के कहने पर आल्हा ने पृथ्वीराज चौहान को जीवनदान दे दिया था। कहते हैं कि आल्हा मां शारदा का परम भक्त था व आल्हा पर मां शारदा की विशेष कृपा थी। इसी आशीर्वाद के चलते पृथ्वीराज चौहान की सेना पीछे हटने के लिए विवश हो गई थी।

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मंदिर की यात्रा

त्रिकूट पर्वत पर मैहर देवी या मां शारदा का निवास स्थान माना जाता है। इस मंदिर की भू-तल से ऊंचाई छह सौ फीट के करीब है। इस मंदिर तक की यात्रा को चार हिस्सों या चरणों में बांटा जाता है। तीन सौ फीट तक की यात्रा गाड़ी द्वारा की जा सकती है। यात्रा के पहले चरण में चार सौ अस्सी सीढ़ियों की चढ़ाई है। दूसरे चरण में 228 सीढ़ियों को पार करना होता है। इसके बाद तीसरे चरण में 147 सीढ़ियां हैं। चैथे व आखिरी खंड में 196 सीढ़ियां चढ़ने के बाद मां शारदा के दर्शन होते हैं। त्रिकूट पर्वत के पास बहती येलजी नदी इस स्थान की सुंदरता को और भी बढ़ा देती है।

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वसंत पंचमी पर लगता है बड़ा मेला

वैसे तो सारा साल ही बड़ी संख्या में श्रद्धालु मां शारदा के दर्शनों के लिए आते हैं, लेकिन वसंत पंचमी को इस मंदिर में बड़ा मेला लगता है। इस अवसर पर लाखों की संख्या में भक्त मां के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इसके अलावा नवरात्र मेले का आयोजन भी किया जाता है। इस दौरान यात्रियों की सुविधा के लिए सभी रेल गाड़ियां मैहर स्टेशन पर कम से कम दो मिनट के लिए जरूर रुकती हैं।

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