इस देवी के नाम से जुड़ा है देवभूमि सोलन शहर का नाम

-मां शूलिनी की है सोलन शहर पर अपार कृपा
-साल में एक बार बहन से मिलने निकलती हैं मां शूलिनी
देवभूमि हिमाचल प्रदेश का नाम सुनते ही मन में श्रद्धा भाव जागृत हो जाता है। देवभूमि हिमाचल में ऊंचे ऊंचे पहाड़, निर्मल जल के बहते झरने, शांत वातावरण, धार्मिक स्थल, शक्ति पीठ व मंदिर हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। हिमाचल प्रदेश में स्थित प्राचीन मंदिर अध्यात्म का केन्द्र होने के साथ-साथ इतिहास की कई परतों को खुद में संजोए बैठे हैं। प्रत्येक मंदिर का अपना इतिहास, अपनी महिमा व अपना महत्व है। इन तीर्थ स्थलों पर हर साल लाखों लोग श्रद्धा भाव से माथा टेकने व दर्शनों हेतु पहुंचते हैं। मां नयना देवी, मां ब्रजेश्वरी, मां ज्वाला देवी, मां चामुण्डा देवी, मां चिंतपूर्णी व मां बगलामुखी आदि शक्ति पीठों के अतिरिक्त बैजनाथ जैसे प्राचीन मंदिर भक्तों की श्रद्धा व आस्था का मुख्य केन्द्र हैं। देवभूमि हिमाचल प्रदेश में स्थ्ति मंदिरों का विशेष महŸव है। हिमाचल के प्रसिद्ध मंदिरों में अपना अहम स्थान रखता है सोलन जिले का शूलिनी माता मंदिर। खास बात यह है कि सोलन का नाम भी शूलिनी माता के नाम पर पड़ा है। मां शूलिनी का मंदिर सोलन शहर के दक्षिण में शीली मार्ग पर स्थित है। इस मंदिर में मां शूलिनी, शिरगुल देवता व माली देवता की मूर्तियां सुशोभित हैं।


शूलिनी माता मंदिर का इतिहास
शूलिनी देवी को भगवान शिव की शक्ति माना जाता है। पुराणों के अनुसार दैत्य महिषासुर के अत्याचारों से देवता व ऋषि-मुनि तंग होकर भगवान शिव और विष्णु के पास गए और सहायता मांगने पर भगवान शिव और विष्णु के तेज से भगवती दुर्गा उत्पन्न हुई जिससे प्रसन्न होकर सभी देवताओं ने अपने अस्त्र-शस्त्र मां दुर्गा को भेंट किए। इसके उपरांत भगवान शिव ने स्वयं अपना त्रिशूल मां दुर्गा को भेंट किया। जिसके कारण मां दुर्गा का नाम मां शूलिनी पड़ा। एक पौराणिक कथा के अनुसार मां शूलिनी सात बहनों में से एक थी बाकी बहनें जेठी ज्वाला जी, हिंगलाज देवी, नयना देवी, लुगासना देवी व तारा देवी के नाम से प्रसिद्ध हैं।


मां शूलिनी के प्रकट होने की कथा
मां शूलिनी के प्रकट होने की कथा कुछ इस प्रकार है-मां शूलिनी का इतिहास 12 घाटों को मिलाकर बनने वाली बघाट रियासत से जुड़ा है। माना जाता है कि बघाट रियासत की राजधानी जौणाजी थी। कहते हैं कि इस राजधानी के राजा बिजली देव को एक बार स्वप्न आया और इस स्वप्न में मां शूलिनी ने राजा को दर्शन दिए तथा बताया कि मैं जौणाजी में रहती हूं , वहां धरती के नीचे से मेरी मूर्तियों को निकाला जाए। इस स्वप्न के बाद राजा ने जौणाजी में खुदाई शुरू करवाई और मां शूलिनी की मूर्ति व दो अन्य देवताओं की मूर्तियों को निकलवाकर सोलनी गांव में स्थापित कर दिया। बघाट रियासत का क्षेत्रफल 36 वर्ग मील में फैला हुआ था। इस रियासत की राजधानी पहले जौणाजी बाद में कोटी व फिर सोलन बनी। बघाट रियासत के अंतिम शासक राजा दुर्गा सिंह थे।


मां शूलिनी का मेला
मान्यता है कि मां शूलिनी के प्रसन्न होने से किसी प्रकार की महामारी व प्राकृतिक आपदा घटित नहीं होती। बघाट रियासत के शासक अपनी कुलश्रेष्ठा मां शूलिनी को प्रसन्न करने के लिए मेला आयोजित करते थे। उनका मानना था कि मां शूलिनी के प्रसन्न होने से सुख-समृद्धि आती है। लोगों का कहना है कि मां शूलिनी का यह प्रसिद्ध मेला बघाट रियासत के शासकों के समय से यानि लगभग 200 सालों से लगता आ रहा है। मां शूलिनी मेले का आयोजन हर साल जून महीने के तीसरे सप्ताह में भारी श्रद्धा व उत्साह के साथ किया जाता है। मेले की शुरूआत पूजा-अर्चना के साथ होती है और शोभा यात्रा निकाली जाती है जिसमें मां शूलिनी की भव्य पालकी सुशोभित होती है। इस मेले में भंडारे, कुश्ती व प्रदर्शनियां विशेष आकर्षण का केन्द्र रहती हैं। तीन दिन तक चलने वाले इस मेले में लाखों की तादाद में श्रद्धालु पहुंचते हैं। कहा जाता है कि इस मेले के दौरान मां शूलिनी शहर के भ्रमण के लिए निकलती हैं और दो दिन के लिए अपनी बहन के पास रुकती हैं तथा इसके बाद मंदिर में वापिस लौटती हैं। इस मेले में बड़ी संख्या में श्रद्धालु मां शूलिनी के दर्शन कर मां का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

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मंदिर तक कैसे पहुंचे
मां शूलिनी देवी का मंदिर राजधानी शिमला से लगभग 46 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। शिमला से बस, टैक्सी व ट्रेन से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए नज़दीकी हवाई अड्डा शिमला है जो सोलन से लगभग एक धंटे की दूरी पर है। दूसरा नज़दीकी हवाई अड्डा चंडीगढ़ है। चंडीगढ़ से सोलन पहुंचने के लिए लगभग एक घंटा तीस मिनट का समय लगता है।

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मंदिर में दर्शन करने का सही समय
सोलन एक पहाड़ी क्षेत्र है यहां पर वैसे तो सारा साल मौसम खुशनुमा रहता है इस लिए पर्यटक व श्रद्धालु सारा साल ही सोलन की सैर के लिए आते हैं लेकिन फिर भी यहां घूमने व माता के दर्शनों के लिए आने का सही समय गर्मियों व मानसून का मौसम है बाकी समय यहां पर बहुत ठंड होती है।

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