क्यों होती हैं भारत में हत्या से ज्यादा आत्महत्याएं, क्यों नही हैं इसका हल ?

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आज हम आपको एक चौंकाने वाली खबर बताएंगे, जिसमें आप देखेंगे कि भारत में मर्डर से मरने वाले लोगों की तुलना में, आत्महत्या से मरने वाले लोगों की संख्या पांच गुना ज्यादा है. हमने हिंसा और हत्याओं को रोकने के लिए तो कानून बना दिए. लेकिन आत्महत्याओं को रोकने में भारत ही नहीं पूरी दुनिया नाकाम रही है. इस रिपोर्ट में 50 लाख से ज्यादा आबादी वाले दुनिया के कुल 113 देशों का अध्ययन किया गया है और ये रिपोर्ट कहती है कि आज आत्महत्या, हत्या से भी बड़ा और गंभीर मुद्दा बन चुका है, जिसके बारे में सबसे कम बात होती है. लेकिन सच ये है कि आज के दौर में लोग हत्या से कम और आत्महत्या से ज्यादा मर रहे हैं.

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क्यों हत्या से कहीं ज्यादा हो रहीं आत्महत्या

भारत में हर एक लाख लोगों पर दो लोग हत्या में मारे जाते हैं. जबकि इससे पांच गुना ज्यादा मौतें आत्महत्या से होती हैं. यानी आज हमारे देश के ज्यादातर राज्यों में लोग हत्या से ज्यादा आत्महत्या से मर रहे हैं. National Crime Records Bureau यानी NCRB की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2020 में केरल में 323 लोग हत्या में मारे गए थे. जबकि इसी वर्ष 8 हजार 500 लोगों की मौत आत्महत्या से हुई थी. इसी तरह छत्तीसगढ़ में 1024 लोग हत्या में मारे गए थे. जबकि आत्महत्या से मरने वालों की संख्या 7 हजार 710 थी. उत्तर प्रदेश में हत्या के मुकाबले आत्महत्या की घटनाएं 0.23 गुना ज्यादा होती हैं. जम्मू कश्मीर और नागालैंड में ये आंकड़ा एक-एक प्रतिशत है और सिक्किम में 25 गुना ज्यादा लोग आत्महत्या से मर जाते हैं.

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क्यो हैं बिहार में सबसे ज्यादा केस

हालांकि, बिहार अब भी एक ऐसा राज्य है, जहां आत्महत्या से ज्यादा हत्याएं होती हैं. 2020 में बिहार में 3 हजार 195 लोगों की हत्या हुई थी. जबकि 809 लोगों की मृत्यु का कारण आत्महत्या था. यानी हमारी सरकारें और पूरी व्यवस्था हत्याओं को रोकने में लगी हुई है. जबकि लोग आत्महत्या से ज्यादा मर रहे हैं. इसलिए हमें लगता है कि अब सही समय आ गया है, जब आत्महत्याओं को रोकने के लिए भी सरकारों को एक नई व्यवस्था तैयार करना चाहिए.

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क्यों बढ़ रही हैं आत्महत्या की घटनाएं

हालांकि आपके मन में भी सवाल होगा कि भारत में आत्महत्या की घटनाएं इतनी क्यों बढ़ रही हैं? तो जानिए कुछ सबसे ज्यादा सामने आने वाली वजहें…

– भारत में होने वाली कुल आत्महत्याओं में, सबसे ज्यादा 33 प्रतिशत पारिवारिक समस्याओं की वजह से होने वाली आत्महत्याओं का है. यानी जिस परिवार को, जीवन का आधार माना जाता है, वही लोगों की जान ले रहा है.

– 18 प्रतिशत लोग अलग-अलग बीमारियों की वजह से परेशान होकर और डिप्रेशन में आत्महत्या कर लेते हैं.

– 5 प्रतिशत लोगों की आत्महत्या का कारण, शादी है. यानी आज कल शादियां तो भव्य होती जा रही हैं लेकिन रिश्ते जर्जर होते जा रहे हैं

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– 4.4 प्रतिशत आत्महत्याओं की वजह प्रेम संबंध हैं, 3.4 प्रतिशत लोग आर्थिक तंगी की वजह से अपनी जान दे देते हैं और बेरोजगारी की वजह से Suicide करने वाले लोगों की संख्या हमारे देश में 2.3 प्रतिशत है.

– इसके अलावा परीक्षा में फेल होने के डर से भी 1.4 प्रतिशत लोग आत्महत्या कर लेते हैं.

इस मामले में क्या कहता है WHO

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक जब भी कोई व्यक्ति आत्महत्या करता है तो उससे जुड़े करीब 135 लोगों का जीवन प्रभावित होता है. ये लोग गहरे दुख और अवसाद में चले जाते हैं. किसी भी जीवन की समाप्ति से उस व्यक्ति के जीवन साथी, बच्चे, परिवार, रिश्तेदार, दोस्त और साथी कर्मचारी बुरी तरह प्रभावित होते हैं. यानी आत्महत्या सिर्फ स्वयं पर की गई हिंसा नहीं है बल्कि ये उस व्यक्ति के करीबी लोगों को भी दुख पहुंचाती है. एक और बात यह कि अगर आप अपनी नौकरी से खुश नहीं हैं तो आप इसे छोड़ सकते हैं. अगर आप किसी रिश्ते से खुश नहीं हैं तो आप उससे भी अलग हो सकते हैं. लेकिन जीवन के साथ आप ऐसा नहीं कर सकते. क्योंकि जीवन का निर्माण आपने नहीं किया है और जिसका निर्माण आप नहीं करते उसे नष्ट करने का अधिकार भी आपके पास नहीं है. हालांकि ये स्थिति सिर्फ भारत में नहीं है. पूरी दुनिया में ये ट्रेंड देखा जा रहा है.

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इस मामले में जापान भी है आगे

– जापान में हत्या की तुलना में आत्महत्या की दर 60 प्रतिशत अधिक है.

– जापान में हर एक लाख लोगों पर 15 लोग आत्महत्या करते हैं. जबकि हर एक लाख लोगों पर वहां हत्या की एक घटना भी नहीं होती. (हत्या की दर- 0.25, आत्महत्या की दर- 15.3- हर एक लाख लोगों पर)

– इसी तरह दक्षिण कोरिया में एक लाख लोगों पर हत्या की दर 0.58 है. जबकि आत्महत्या की दर 34 गुना ज्यादा 28.6 है.

– सिंगापुर में भी हत्या के मुकाबले आत्महत्या की घटनाएं 52 प्रतिशत ज्यादा होती हैं.

– हंगरी में ये आंकड़ा लगभग 24 गुना ज्यादा है, फ्रांस में साढ़े 9, स्पेन में 10, ब्रिटेन में 7, कनाडा में 5.4, रशिया में 2.2 और अमेरिका में हत्या के मुकाबले 2.2 गुना ज्यादा लोग आत्महत्या से मर जाते हैं.

ये वो सारे देश हैं, जिन्हें अमीर देशों की सूची में गिना जाता है और जहां का समाज बाकी देशों की तुलना में ज्यादा खुशहाल माना जाता है. लेकिन ये आंकड़े बताते हैं कि ये देश आर्थिक रूप से तो स्वस्थ हैं लेकिन यहां के लोगों का मन बहुत बीमार है.

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न्यूक्लियर फैमिली है बड़ी वजह

दुनियाभर में बढ़ती आत्महत्याओं का एक बड़ा कारण है Nuclear Family का Concept. जिसमें बहुत से लोग अकेले ही रहने पसंद करते हैं. इनकी जिंदगी में Positive विचारों की कमी होती है और ऐसे लोग आसानी से मानसिक रोगों का शिकार बन जाते हैं. उदाहरण के लिए, जापान का विकसित समाज Mental Disorders को बीमारी नहीं मानता है और ऐसे रोगों से पीड़ित हर तीन में से एक व्यक्ति कभी डॉक्टर की सलाह नहीं लेते. यही वजह है कि वहां के समाज में हताशा, निराशा और अकेलापन इतना ज्यादा बढ़ गया है कि लोग जीवन का आनंद लेने की बजाय मौत को गले लगा रहे हैं.

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उतारनी होगी मन की थकान

भारत में भी लोग डिप्रेशन और Mental Disorders को बीमारी नहीं मानते. लोगों को लगता है कि उनका शरीर काम करते-करते थक गया है, इसलिए अगर उन्हें कुछ समय की छुट्टी मिल गई तो वो ठीक हो जाएंगे. जबकि ऐसा नहीं होता. असल में हम जिसे शरीर की थकावट समझ रहे होते हैं, वो हमारे मन की थकावट होती है. और मन का इलाज हम कराते ही नहीं हैं.

पहली बार कब हुई थी आत्महत्या

दुनिया में पहली आत्महत्या कब हुई थी, इसका तो कोई सबूत किसी के पास नहीं है. लेकिन जर्मनी के बर्लिन म्यूजियम में दुनिया का पहला Suicide Note मौजूद है. जो 3900 वर्ष पहले Egypt के एक व्यक्ति ने लिखा था. इस Suicide Note का शीर्षक है, ‘जीवन से थक चुके एक व्यक्ति का आत्मा से संघर्ष’ और आज भी दुनियाभर में जितनी आत्महत्याएं होती हैं, उसका मूल सार यही होता है. इसे आप भारत के कुछ आंकड़ों से समझ सकते हैं.

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दिहाड़ी मजदूर कर रहे सबसे ज्यादा आत्महत्या

भारत में सबसे ज्यादा 24.6 प्रतिशत लोग जो आत्महत्या करते हैं, वो पेशे से दिहाड़ी मजदूर होते हैं. इसके बाद आत्महत्या करने वालों में 14.6 प्रतिशत House Wife यानी गृहिणी होती हैं. हमारे देश में गृहिणियों की मुश्किलों को काफी कम समझा जाता है और उनके हिस्से का इतवार कभी नहीं आता. वो अक्सर अपने जीवन से इतना थक जाती हैं कि उनके लिए अपनी जान देना ही सबसे आसान होता है. एक समाज के तौर पर हम उनकी पीड़ा को समझ ही नहीं पाते.

आज भी दुनिया की पहली प्राथमिकता अपराध को रोकना है. इसके लिए हर देश में पुलिस काम करती है. लेकिन हमें लगता है कि आज पूरी दुनिया को एक ऐसी वैक्सीन का इंतजार है, जो आत्महत्या को रोक सके.

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