चंडीगढ़, 13 नवंबर:
राज्य की कोविड स्थिति में सुधार का हवाला देते हुए पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने उप राष्ट्रपति एम. वैंकेया नायडू, जो पंजाब यूनिवर्सिटी के कुलपति भी हैं, को पत्र लिख कर यूनिवर्सिटी सिनेट की मतदान जल्द करवाने की माँग की, क्योंकि मतदान में अनुचित देरी से संस्था के वोटरों में रोष पैदा हो रहा है।
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कुलपति को लिखे अर्ध सरकारी पत्र में मुख्यमंत्री ने उनको पंजाब यूनिवर्सिटी प्रशासन और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ के प्रशासन को यूनिवर्सिटी सिनेट की मतदान समय पर और सही ढंग से करवाने सम्बन्धी सुझाव देने की अपील की।मुख्यमंत्री ने कहा कि यूनिवर्सिटी सिनेट, जिसकी मौजूदा समय सीमा 31 अक्तूबर को ख़त्म हो गई है, की मतदान करवाने में नाकाम रहना न सिफऱ् गलत है, बल्कि कानून और नियमों के विरुद्ध है। उन्होंने कहा ‘‘अध्यापकों, पेशेवर, तकनीकी मैंबर, यूनिवर्सिटी के ग्रैजुएट और सिनेट मतदान के लिए अलग-अलग हलकों के नुमायंदों में भारी रोष पाया गया है।’’ इसके अलावा पंजाब राज्य विधान सभा के विधायक और पद के नाते मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री और राज्य के डीपीआई (कॉलेज) भी हैं, जो पंजाब सरकार की नुमायंदगी करते हैं। उन्होंने आगे कहा कि यह महसूस किया गया है कि यह मतदान बिना किसी देरी से करवानी चाहीए हैं।
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इस बात का हवाला देते हुए कि यूनिवर्सिटी प्रशासन और भारत सरकार द्वारा महसूस किया जा रहा है कि कोविड-19 महामारी के कारण मतदान कराने के लिए स्थिति उचित नहीं है, मुख्यमंत्री ने कहा कि स्थिति में सुधार हो गया है और देश भर में संसद, विधान सभाओं और अन्य शहरी और ग्रामीण स्थानीय इकाईयों की मतदान करवाई गई हैं। उन्होंने आगे कहा, ‘‘यह ठीक है कि महामारी को रोकने के लिए पिछले कुछ महीनों में जारी किए गए प्रोटोकालों की पालना को यकीनी बनाने की ज़रूरत है और इनकी पालना न करने सम्बन्धी यूनिवर्सिटी प्रशासन और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ या राज्य सरकार के पास कोई कारण नहीं होना चाहिए।’’
मुख्यमंत्री ने बताया कि जब से यूनिवर्सिटी की स्थापना की गई है, तब से हर चार साल बाद इसकी सिनेट का गठन किया जाता है, जिसमें लोकतंत्रीय प्रक्रिया के द्वारा मैंबर चुने जाते हैं। उन्होंने आगे कहा कि यह हैरानी की बात है कि सिनेट की मतदान नहीं करवाई गई, हालाँकि पिछले छह दशकों से यह नियमित तौर पर सम्बन्धित साल के अगस्त-सितम्बर के महीनों में करवाई जाती रही हैं। ऐसी स्थिति में जब सिनेट का गठन नहीं होता, यूनिवर्सिटी के सिंडिकेट का गठन भी नहीं किया जाएगा, क्योंकि इसका कार्यकाल 31 दिसंबर, 2020 को ख़त्म हो रहा है।
हर चौथे साल मतदान करवाने सम्बन्धी यूनिवर्सिटी के नियमों का जि़क्र करते हुए कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कहा कि इन मतदान को बिना किसी देरी के तुरंत करवा दिया जाना चाहिए। बेशक, यूनिवर्सिटी के प्रशासन के लिए कुछ सुधारों की ज़रूरत हो सकती है, परन्तु अगर ज़रूरत हो तो पंजाब यूनिवर्सिटी एक्ट की मौजूदा व्यवस्थाएं और इसके नियमों को ध्यान में रखते हुए यूनिवर्सिटी के चुने गए सिनेट और सिंडिकेट के गठन समेत सभी भागीदारों की सक्रिय भागीदारी के साथ ऐसा किया जा सकता है। हालाँकि, इन सुधारों का स्वागत किया जाएगा, परन्तु यूनिवर्सिटी को चलाने वाले कानूनों या नियमों में संशोधन करने का कोई कारण नहीं है।
जि़क्रयोग्य है कि पंजाब यूनिवर्सिटी का गठन पंजाब यूनिवर्सिटी एक्ट, 1947 (1947 का एक्ट) अधीन किया गया था। 1947 में देश की बाँट के बाद लाहौर में स्थित मुख्य यूनिवर्सिटी के हुए नुकसान की पूर्ति के लिए यह यूनिवर्सिटी पंजाब में स्थापित की गई थी। 1966 में पंजाब की बाँट के बाद पंजाब पुनर्गठन एक्ट, 1966 ने अपनी स्थिति बनाए रखी, जिसका अर्थ यह हुआ कि यूनिवर्सिटी इसी तरह काम करती रही है और इसके अधिकार क्षेत्र वाले इलाके जो मौजूदा पंजाब में शामिल हैं, ज्यों के त्यों जारी हैं।
-Nav Gill