– वंदना
भगवान श्री कृष्ण को शिक्षा देने वाले गुरुओं में से एक नाम महर्षि सांदीपनि जी का भी है जिनका आश्रम उज्जैन में है और जो करीब 5000 सालों से भी अधिक पुराना है। इस आश्रम में गुरु सांदीपनि की मूर्ति के सामने उनकी चरण पादुकाओं के भी दर्शन होते हैं। इसी आश्रम में श्री कृष्ण, सुदामा और बलराम ने शिक्षा प्राप्त की थी। जब श्री कृष्ण ने अपने मामा कंस का वध किया था तब वे सिर्फ 11 साल के थे और बाद में अवंतिका जो कि महाकालेश्वर की नगरी है वहां आए थे। जहां वे 64 दिनों तक रहे थे और इन 64 दिनों में उन्होंने 64 विद्याओं और 16 कलाओं का ज्ञान प्राप्त किया था।
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हाथ में है सलेट और कलम
महर्षि सांदीपनि आश्रम में सभी जगह कृष्ण की मूर्ति व चित्रों में हाथ में बांसुरी की जगह सलेट व कलम दिखाई देती है। श्री कृष्ण की अधिकतम प्रतिमाएं बैठी हुई है, जिनमें वे इस आश्रम में विद्या ग्रहण करते हुए दिखाई दे रहे हैं साथ ही श्री कृष्ण की सभी प्रतिमाएं बाल रूप की है जिन्हें देखकर लगता है कि वे यहां विद्या और कलाएं सीखने आए थे।
हरी से हर के मिलन का स्थल
कहा जाता है कि जब भगवान हरि यानी श्री कृष्ण यहां विद्या अध्ययन करने आए थे तब भगवान हर यानी भोलेनाथ उनके बाल रूप व क्रीडाओं के दर्शन करने यहां आए। तभी से इन दुर्लभ पलों को हरिहर का मिलन कहा गया ।
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खड़े नंदी की है प्रतिमा
इसी आश्रम में भगवान शिव का एक मंदिर भी बना हुआ है जिसे पिंडेश्वर महादेव मंदिर कहते हैं । सांदीपनि आश्रम में भगवान शिव के वाहन नंदी जी की खड़े अवस्था में प्रतिमा है । कहा जाता है कि जब भगवान शिव, भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं के दर्शन करने यहां आए थे तब गुरु और गोविंद के सम्मान में नंदी जी खड़े हो गए थे। इसी वजह से यहां खड़े नंदी जी की प्रतिमा के दर्शन होते हैं।
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तपोबल द्वारा प्रकट किया शिवलिंग
महर्षि सांदीपनि ने अपने तपोबल से बेल पत्र के माध्यम से एक शिवलिंग प्रकट किया था जो यहां सर्वेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। साथ ही गोमती कुंड भी है इस कुंड के पास सर्वेश्वर महादेव की प्रतिमा भी स्थापित है। कहा जाता है कि जिन बच्चों का मन पढ़ाई में कम लगता है उन्हें यहां पाती लिख कर दी जाती है जिससे उनका मन पढ़ाई में लगे और जब वे बड़े होकर इंटरव्यू देने जाते हैं तो उन्हें वही पाती अपने साथ रखनी होती है। दंत कथाओं के अनुसार पाती अपने पास रखने से इंटरव्यू में सफलता अवश्य मिलती है।
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अंकपात नामकरण
भगवान श्री कृष्ण सांदीपनि आश्रम में शिक्षा ग्रहण करते हुए सलेट पर जब कोई अंक लिखते तो उसे मिटाने के लिए सलेट यानी कि पाती को पास के गोमती कुंड में धोते थे। अंकों को मिटाने यानी की सलेट को धोने से अंको का पतन होता था तो इसी कारण आश्रम के सामने वाले मार्ग का नाम अंक पात रखा गया जो आज भी इसी नाम से जाना जाता है।
कैसे पहुंचा जाए
मध्य प्रदेश के उज्जैन तक देश के किसी भी कोने से रेल बस या हवाई जहाज से आसानी से पहुंचा जा सकता है सड़क मार्ग से कार टैक्सी आदि से भी पहुंचा जा सकता है। उज्जैन के इसी पौराणिक महत्व के कारण इसे हेरिटेज में भी शामिल कर लिया गया है।
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