संसद में सच का सामना करने से भागी मोदी सरकार- भगवंत मान 

कहा, कानून वापस लिए जाने के समय संसद में होनी चाहिए थी सकारात्मक बहस 

जीत का सेहरा किसानों और मजदूरों के सिर, सियासी लोग इस दौड़ में न पड़ें- मान 

चंडीगढ़:संसद के दोनों सदनों में कृषि संबंधी तीनों विवादित कानून वापिस लिए जाने के बाद संसद के बाहर मीडिया के सामने प्रतिक्रिया देते हुए आम आदमी पार्टी (आप) पंजाब के प्रदेशाध्यक्ष एवं सांसद भगवंत मान ने कहा कि तानाशाही तरीके से कृषि संबंधी तीनों कृषि कानून थोपने के संबंध में मोदी सरकार ने कानून वापस (रीपील) लेने के समय कोई चर्चा नहीं करवाई, क्योंकि केंद्र सरकार संसद में सामना करने की हिम्मत नहीं रखती।

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मान ने कहा कि कृषि कानून वापिस लेने के समय संसद के दोनों सदनों में शांतिपूर्वक बहस-विचार होने जरूरी थे लेकिन सरकार एक ओर धक्काशाही कर कृषि कानून थोपे जाने की गलती मान रही है, लेकिन सदन में इस गलती और इसके विपरीत नतीजों के संबंध में विरोधी दल के सवालों के जवाब देने से भाग रही है। भगवंत मान ने कहा कि इन सवालों के जवाब सदन में दिए जाने बनते थे कि संघर्ष के दौरान शहीद हुए 700 से अधिक किसान-मजदूरों के जानी नुकसान के लिए कौन जिम्मेदार है? सभी फसलों की एमएसपी पर खरीद के लिए बिल कब लाया जाएगा?

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लखीमपुरी खीरी घटना के जिम्मेदार केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा को बर्खास्त क्यों नहीं किया गया? अन्नदाता के खिलाफ उल-जलूल बोलने वाले भाजपा नेता माफी कब मांगेंगे? इस दौरान हुए वित्तीय नुकसान का हिसाब कौन देगा? लेकिन सदन में भाजपा इन सवालों का जवाब देने से भाग गई, हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने सदन के बाहर भरोसा दिया कि सरकार चर्चा के लिए तैयार है। भगवंत मान ने कहा कि तीनों काले कृषि कानून रद्द होना केवल ओर केवल किसानों व मजदूरों की जीत है। धरती के बेटे-बेटियों ने मोदी सरकार के अहंकार, अत्याचार और गर्म-सर्द मौसम की मार सहकर भी अपना संघर्ष जारी रखा।

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किसी भी सियासी पार्टी या व्यक्ति विशेष को काले कानून रद्द कराए जाने का सेहरा अपने सिर बांधने की दौड़ में नहीं पडऩा चाहिए। अंत में जीत का परचम लहराया। पार्टी या कोई व्यक्ति काले कानून रद्द कराने का दावेदार नहीं। केवल तीन काले कानून वापिस लेने से काम नहीं चलेगा, केंद्र सरकार सभी फसलों पर एमएसपी की कानूनी गारंटी और खरीद सुनिश्चत करे। संघर्ष के दौरान शहीद हुए 700-750 किसानों के जानी नुकसान के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सार्वजनिक माफी मांगे और पीडि़त परिवारों को उचित मुआवजा दिया जाए। आवश्यक है कि लखीमपुर खीरी घटना के लिए जिम्मेदार केंद्रीय गृह राज्य मंत्री को मंत्रिमंडल से बाहर किया जाए।

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भगवंत मान ने कहा, ‘‘उत्तर प्रदेश के रूद्रपुर, उधमपुर आदि जंगलों को कृषि योज्य बनाने के समय शेरों से लडऩे वाले समुदाय के साथ केंद्र सरकार को लडऩा नहीं चाहिए था। नतीजा सभी के सामने है। आखिरकार किसानों की जीत हुई है।’’ मान ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को संसद में किसानों से माफी मांगनी चाहिए, क्योंकि केंद्र सरकार द्वारा तीनों काले कृषि कानून जबरदस्ती लागू किए गए थे, पंजाब समेत देश के किसानों के संघर्ष के कारण यह काले कानून मोदी सरकार को वापिस लेने पड़ रहे हैं।

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उन्होंने कहा कि संघर्ष के दौरान शहीद कुए 700-750 किसानों के लिए केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री का अहंकार जिम्मेदार है। इसलिए पीडि़त परिवारों और घायल किसानों से प्रधानमंत्री को माफी मांगनी चाहिए। साथ ही किसानों की मांग के अनुसार किसानी संघर्ष के यादगार स्मारक के लिए जगह और फंड भी केंद्र सरकार दे। भगवंत मान ने कहा कि देश के विभिन्न प्रदेशों में संघर्षशील किसानों-मजदूरों के खिलाफ केस दर्ज किए गए हैं। इसलिए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार सभी प्रदेशों को किसानों के खिलाफ दर्ज केस रद्द करने के आदेश जारी करे।

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एमएसपी पर सभी फसलों की खरीद की कानूनी गारंटी की वकालत करते हुए भगवंत मान ने कहा ‘‘देश में किसानों द्वारा पैदा की जाने वाली सभी फसलों की खरीद के लिए सरकार द्वारा कम से कम समर्थन मुल्य (एमएसपी) निश्चित होना चाहिए। पूरे देश के अन्नदाता को बचाए रखने के लिए निर्धारित मुल्य पर ही फसलों की खरीद सुनिश्चित होनी चाहिए। इस समूची प्रक्रिया को कानूनी गारंटी के दायरे में लाया जाना अत्यावश्यक है। एमएसपी की प्रक्रिया में करीब ३6-३7 लाख करोड़ का बजट आएगा और केंद्र सरकार एमएसपी की प्रक्रिया को आसानी के साथ जारी रख सकती है।’’

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भगवंत मान ने कहा कि बिना शक नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार काले कृषि कानून लाने के लिए जिम्मेदार है लेकिन इसके लिए अकाली दल बादल और कांग्रेस भी बराबर के दोषी हैं। जब 5 जून 2020 को मोदी सरकार ने काले कानून ऑर्डिनेंस के जरिए लागू किए थे तो अकाली दल द्वारा हरसिमरत कौर बादल केंद्रीय मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री थी और बतौर मंत्री हरसिमरत बादल ने बिलों पर हस्ताक्षर भी किए। इतना ही नहीं, अगले कई महीने हरसिमरत कौर बादल, सुखबीर सिंह बादल और प्रकाश सिंह बादल काले कृषि कानूनों के फायदे गिनाते रहे।

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लेकिन जब तेज विरोध के कारण इनके खिलाफ गांवों-शहरों में ‘एंट्री बैन’’ के बोर्ड लगने शुरू हो गए तो दबाव में आकर हरसिमरत कौर बादल को मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा और लोक दिखावे के लिए अकाली दल बादल ने भाजपा से राजनीतिक गठबंधन तोड़ लिया। असल में अंदर खाते ये हमजोली ही हैं। सत्ताधारी पंजाब कांग्रेस की आलोचना करते हुए मान ने कहा कि तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल कृषि बिलों के संबंध में उच्च स्तरीय कमेटी की मीटिंगों में जाते रहे। लेकिन उन्होंने पंजाब के किसानों का विरोध कमेटी में दर्ज नहीं कराया और न ही पंजाब के किसानों को काले कृषि कानूनों के बुरे प्रभावों के संबंध में जानकारी दी।

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इसलिए कांग्रेस और कैप्टन अमरिंदर सिंह किसानों के साथ धोखा करते रहे, क्योंकि ये मोदी के साथ मिले हुए हैं, यह भेद आज जगजाहिर हो चुका है। मान के अनुसार सियासी दलों में आम आदमी पार्टी ही पहले दिन से काले कृषि कानूनों का विरोध करती रही है और किसानी संघर्ष के दौरान किसानों द्वारा दिए दिशा-निर्देशों की पालना करती रही है। मान ने कहा, ‘‘पंजाब की कांग्रेस सरकार के पास खेतीबाड़ी के विकास के लिए कोई भी नीति नहीं है, लेकिन आम आदमी पार्टी की सरकार बनने पर खेतीबाड़ी की तरक्की के लिए नीति बनाई जाएगी, सहकारी सोसाइटियों को जीवंत बनाया जाएगा, किसानों को गेहूं-धान के चक्कर से निकालने के लिए अन्य फसलों का उचित मुल्य दिया जाएगा और पंजाब की तरक्की के लिए विशेष रोड मैप लागू किया जाएगा।’’

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