सुहागिनों के करवा चौथ के चार दिनों बाद महिलाओं की ओर से अपनी संतान की मंगल कामना के लिए रखे जाने वाले चक्री व्रत की भारतीय संस्कृति में बेहद मान्यता है। भारतीय संस्कृति में परिवार की सुख शांति के लिए रखे जाने वाले व्रतों का सदियों से प्रचलन रहा है। खास कर महिलाओं का परिवार के प्रति समर्पण खास माना गया है। चक्री का व्रत भी इन व्रतों में से एक है। यह व्रत बुधवार 31 अक्टूबर को मनाया जाएगा।
करवा चौथ के चार दिनों के बाद और दीपावली पूजा से आठ दिन पहले संतान की मंगल कामना के लिए माताओं की ओर से रखे जाने वाले चक्री के व्रत को भारत के अलग-अलग राज्यों में विभिन्न नामों से पुकारा जाता है। पंजाब में इसे चक्री के नाम से पहचाना जाता है। जबकि अन्य देश के अन्य राज्यों में इस व्रत को अहोई माता, अहोई अष्टमी की पूजा कर मानया जाता है। यह पावन व्रत भी करवा चौथ के व्रत समान ही कठोर व्रत के रुप में माना जाता है। इस व्रत में महिलाएं ब्रह्म महूर्त में भी उठ कर अपने बच्चों लड़का हो या फिर लड़की दोनों की मंगल कामना के लिए अन्न ग्रहण कर शुरु करती है। करवा चौथ के समान ही सरगी को निकाला जाता है। सारा दिन ही बिना कोई अन्न और जल ग्रहण कर चक्री के व्रत को पूरा किए जाने की परंपरा है। करवा चौथ में सुहागिनें चंद्रमा का पूजन कर अन्न ग्रहण करती हैं, लेकिन चक्री के व्रत में महिलाएं देर शाम को तारा देख कर ही अन्न व जल का सेवन करती हैं। करवा चौथ के समान ही दोपहर बाद को कथा सुनने की पंरपरा रही है। गौर हो पुरातन में समय इस व्रत को केवल लड़कों की मंगल कामना के लिए रखे जाने की परंपरा रही थी। परंतु आज लड़के व लड़कियों में किसी भी तरह का कोई भी भेदभाव न होने के कारण संतान की मंगलकामना के लिए इस व्रत को ऱखा जा रहा है।