-श्री हनुमान चालिसा का क्या है भावार्थ
भारतीय संस्कृति में आरती, चालिसा के माध्यम से सभी देवी-देवताओं की स्तुति करने की सदियों से एक परंपरा प्रचलित है। आईए, आज आपको श्री हनुमान जी की स्तुति में पढ़े जाने वाले हनुमान चालिसा के भावार्थ से अवगत करवाते हैं। भगवान शिव के 11वें रुद्रावतार माने जाने वाले हनुमान जी को कलयुग में सिद्ध कहा जाता है। भगवान श्री राम के परम भक्त और माता जानकी के प्रिय श्री हनुमान जी को अमरत्व मिला हुआ है। त्रेतायुग के अंतिम चरण में माता अंजनि के गर्भ से जन्मे पवन देव के पुत्र श्री हनुमान को बजरंग बली, मारुति नंदन, अंजनि सुत, पवनपुत्र, संकटमोचन, केसरी नंदन, महावीर, कपीश, शंकर सुवन के नाम से भी पूजा जाता है।
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हनुमान चालिसा
श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।
अर्थ-गुरु महाराज के चरण, कमलों की धूलि से अपने मन रुपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूं। जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों फल देने वाला है।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु क्लेश विकार।
अर्थ-हे पवन कुमार, मैं आपका सुमिरन करता हूं। आप तो जानते ही हैं, कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है। मुझे शारीरिक बल, सदबुद्धि व ज्ञान दीजिए। और मेरे दुःखों व दोषों का नाश कर दीजिए।
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जय हनुमान ज्ञान गुण सागर, जय कपीस तिहूं लोक उजागर॥
अर्थ-श्री हनुमान जी, आपकी सदा जय हो। आपका ज्ञान और गुण अथाह है। हे कपीश्वर, आपकी जय हो। तीनों लोकों स्वर्ग, भूलोक और पाताल लोक में आपकी कीर्ति है।
राम दूत अतुलित बलधामा, अंजनी पुत्र पवन सुत नामा॥
अर्थ-हे पवनसुत अंजनी नंदन, आपके समान दूसरा कोई भी बलवान नहीं है।
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महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी॥
अर्थ-हे महावीर बजरंग बली, आप विशेष पराक्रम वाले है। आप खराब बुद्धि को दूर करते हैं। और अच्छी बुद्धि वालो के साथी, सहायक हैं।
कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुंडल कुंचित केसा॥
अर्थ- आप सुनहले रंग, सुंदर वस्त्रों, कानों में कुंडल और घुंघराले बालों से सुशोभित हैं।
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हाथ ब्रज और ध्वजा विराजे, कांधे मूंज जनेऊ साजै॥
अर्थ- आपके हाथ मे बज्र और ध्वजा है। जबकि कंधे पर मूंज के जनेऊ सुशोभित है।
शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जग वंदन॥
अर्थ- हे शंकर के अवतार, हे केसरी नंदन! आपके पराक्रम और महान यश की संसार भर में वंदना होती है।
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विद्यावान गुणी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर॥
अर्थ-आप प्रकांड विद्या निधान है। गुणवान और अत्यंत कार्य कुशल होकर श्री राम काज करने के लिए आतुर रहते हैं।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया॥
अर्थ- आप श्री राम चरित सुनने में आनंद रस लेते हैं। श्री राम, सीता और लखन आपके हृदय में बसते हैं।
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सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा, विकट रुप धरि लंक जरावा॥
अर्थ- आपने अपना बहुत छोटा रुप धारण करके सीता जी को दिखलाया और भयंकर रूप करके, लंका को जला दिया।
भीम रुप धरि असुर संहारे, रामचंद्र के काज संवारे॥
अर्थ- आपने अपना विकराल रुप धारण करके, राक्षसों को सर्वनाश किया। और श्री राम चंद्र जी के उदेश्यों को सफल किया।
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लाय सजीवन लखन जियाये, श्री रघुवीर हरषि उर लाये॥
अर्थ- आपने संजीवनी बूटी को लाकर मूर्छित हुए लक्ष्मण जी को जिंदा किया। इससे श्री रघुवीर ने प्रसन्न हो आपको हृदय से लगा लिया।
रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरत सम भाई॥
अर्थ- श्री रामचंद्र जी ने आपकी प्रशंसा करते कहा कि तुम तो मेरे भरत समान प्यारे भाई हो।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं, अस कहि श्री पति कंठ लगावैं॥
अर्थ- श्री राम ने आपको यह कहते हुए अपने हृदय से लगा लिया। और कहा कि तुम्हारा यश हजार मुख से भी सराहनीय है।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद,सारद सहित अहीसा॥
अर्थ-श्री सनक, श्री सनातन, श्री सनंदन, श्री सनत्कुमार, आदि मुनि ब्रह्मा, आदि देवता नारद जी, सरस्वती जी, शेषनाग जी सब आपका गुणगान करते हैं।
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जम कुबेर दिगपाल जहां ते, कबि कोबिद कहि सके कहां ते॥
अर्थ- यमराज, कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि विद्वान, पंडित या कोई भी आपके यश का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते हैं।
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा, राम मिलाय राजपद दीन्हा॥
अर्थ- आपने सुग्रीव जी को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया। जिसके कारण वे राजा बने।
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तुम्हरो मंत्र विभीषण माना, लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥
अर्थ- आपके उपदेश का विभिषण जी ने भी पालन किया। जिससे वे लंका के राजा बने। इसको सब संसार जानता है।
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
अर्थ- जो सूर्य दो हजार योजन दूरी पर है। उस पर पहुंचने के लिए हजार युग लगे। सूर्य को आपने एक मीठा फल समझ कर निगल लिया।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि, जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥
अर्थ- आपने श्री रामचंद्र जी की अंगूठी को मुंह में रखकर समुद्र को लांघ लिया। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है।
दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
अर्थ- संसार मे जितने भी कठिन से कठिन काम हैं। वो आपकी कृपा से सहज ही पूर्ण हो जाते हैं।
राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
अर्थ- श्री रामचंद्र जी के द्वार के आप रखवाले हैं। जिसमें आपकी आज्ञा बिना किसी को प्रवेश नहीं कर सकता है। यानिकि आपकी प्रसन्नता के बिना राम कृपा दुर्लभ है।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू को डरना॥
अर्थ- जो भी आपकी शरण मे आते है। उन सभी को आंनद प्राप्त होता है। और जब आप रक्षक है, तो फिर किसी से भी डर नहीं रहता है।
आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हांक ते कांपै॥
अर्थ- आपके सिवाय आपके वेग को कोई अन्य नहीं रोक सकता है। आपकी गर्जना से तीनों लोक कांप जाते हैं।
भूत पिशाच निकट नहिं आवै, महावीर जब नाम सुनावै॥
अर्थ- जिस स्थान पर महावीर हनुमान जी का नाम सुनाया जाता है। वहां पर भूत, पिशाच पास भी नहीं फटक सकते हैं।
नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
अर्थ- वीर हनुमान जी, आपका निरंतर जप करने से सब रोग समाप्त हो जाते हैं। और सब पीड़ाएं खत्म हो जाती हैं।
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संकट ते हनुमान छुड़ावै, मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥
अर्थ- हे हनुमान जी, आपका विचार करने में, कर्म करने में और बोलने में, जिनका ध्यान आपमें रहता है। उनको आप सब संकटो से मुक्त करवा देते हैं।
सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा॥
अर्थ- तपस्वी राजा श्री रामचंद्र जी ही सबसे श्रेष्ठ है। उनके सब कार्यो को आपने सहज में कर दिया।
और मनोरथ जो कोइ लावै, सोई अमित जीवन फल पावै॥
अर्थ- जिस पर भी आपकी कृपा हो। वह कोई भी अभिलाषा करे। तो उसे ऐसा फल मिलता है. जिसकी जीवन मे कोई सीमा नहीं होती है।
चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा॥
अर्थ- चारो युगों सतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग में आपका यश फैला हुआ है। समूचे जगत में आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है।
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साधु संत के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे॥
अर्थ- हे श्री राम जी के दुलारे, आप सज्जनों की रक्षा करते हैं और दुष्टों का नाश करते हैं।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस बर दीन जानकी माता॥
अर्थ- आपको माता जानकी जी से ऐसा वरदान मिला हुआ है। जिससे आप किसी को भी सभी आठों सिद्धियां और नौ निधियां प्रदान कर सकते हैं।
राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा॥
अर्थ- आप निरंतर श्री रघुनाथ जी की शरण में रहते हैं। इस कारण आपके पास बुढ़ापा और असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम की औषधि है।
तुम्हरे भजन राम को पावै, जन्म जन्म के दुख बिसरावै॥
अर्थ- आपका भजन करने से श्री राम जी को पाया जा सकता है। और जन्म जन्मांतर के दुःख दूर होते हैं।
अंत काल रघुबर पुर जाई, जहां जन्म हरि भक्त कहाई॥
अर्थ- अंत समय श्री रघुनाथ जी के धाम को जाते है। और यदि फिर भी जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे। और श्री राम भक्त कहलाएंगे।
और देवता चित न धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई॥
अर्थ- हे हनुमान जी, आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते हैं। फिर अन्य किसी देवता की आवश्यकता ही नहीं रहती है।
संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
अर्थ- हे वीर हनुमान जी, जो आपका सुमिरन करता रहता है। उसके सब संकट कट जाते हैं। सब पीड़ाएं समाप्त हो जाती हैं।
जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करहु गुरु देव की नाई॥
अर्थ- हे स्वामी हनुमान जी, आपकी जय हो, जय हो, जय हो। आप मुझ पर कृपालु श्री गुरु के समान कृपा दृष्टि बनाएं रखें।
जो सत बार पाठ कर कोई, छुटहि बंदि महा सुख होई॥
अर्थ- जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा। वह सब बंधनों से छूट जाता है। और उसे परमानंद मिलता है।
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जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
अर्थ-भगवान शंकर जी ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया है। इसलिए वह साक्षी हैं कि जो भी इसे सच्चे मन से पढ़ेगा। उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।
तुलसीदास सदा हरि चेरा, कीजै नाथ हृदय मंह डेरा॥
अर्थ- हे नाथ हनुमान जी, तुलसीदास सदा ही श्री राम के दास हैं। इसलिए आप उसके हृदय में निवास कीजिए।
श्लोक
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥
अर्थ- हे संकट मोचन पवन कुमार। आप आनंद मंगल के स्वरुप हैं। हे देवराज, आप श्री राम जी, माता सीता जी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय में निवास करें।
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संकलन-प्रदीप शाही