मोदी लोकसभा चुनावों में स्टार कंपेनर तो रहेंगे पर प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे!

लोक सभा चुनाव-2019 पार्ट-1 कितना चलेगा मोदी मैजिक!

ब्यूरो रिपोर्ट, डी 5 चैनल हिंदी
2019 अप्रैल अथवा मई में होने वाले लोकसभा चुनावों में निर्विवाद रूप से एक बार फिर नरेंद्र मोदी स्टार कंपेनर बनने जा रहे हैं या यों कहिए अगले दो तीन महीनों में यदि ’कुछ बड़ा’ नहीं घटता है तो लोक सभा के चुनाव नरेंद्र मादी के इर्द गिर्द ठीक उसी तरह घूमेंगे जैसे उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की ओर से 2013 में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित होने के बाद कांग्रेस, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन, यूपीए और यहां तक की पूरे चुनावों को घुमाया था, हां फर्क सिर्फ इतना होगा कि हर हर मोदी घर घर मोदी का नारा लगाने के लिए थोड़ी मैनेजमेंट स्किल की जरूरत ज्यादा रहने वाली है।
जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं राष्ट्रिय लोकतांत्रिक गठबंधन, एनडीए और यूपीए के बीच का फासला कम होता जा रहा है, हालांकि इसके लिए तीसरा मोर्चे का साथ एनडीए को मिलना अनिवार्य रूप से जरूरी होगा। ऐसे में नरेंद्र मोदी का सितारा आसमान में तो तय है पर प्रधानमंत्री के रूप में एक बार फिर चमकना तय नहीं दिख रहा! उहापोह की स्थिति में अथवा कोर एनडीए को स्पष्ट बहुमत ना मिलने की स्थिति में सर्वसम्मति लायक उम्मीदवार की तलाश राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने शुरू कर दी है।
एनडीए सरकार में लोकप्रिय मंत्री रहे भाजपा के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी को इसी लिए पहले आगे कर दिया गया है, जिससे नमो नमो राग गाने वाले सारे भक्त गडकरी को जी भर कर गाली दे लें और फिर इनकी भड़ास निकालने और किंतु परंतु साफ हो जाने के बाद गृह मंत्री राजनाथ सिंह के नाम पर सहमति बनाने का प्लान-बी तैयार किया गया है। राजनाथ के पक्ष में सारी बातें जाती हैं उत्तर प्रदेश की कमान संभालने के अलावा दो बार केंद्र में मंत्री होने के अलावा विवादों से दूर रहना और हिंदू क्षत्रिय नेता के रूप में भारत के बड़े व प्रभावशाली वर्ग का मूक समर्थन उन्हें स्वतः प्राप्त हो जाता है।
हालांकि यह सब कुछ लोकसभा चुनाव परिणाम पूरी तरह पक्ष में न आने की स्थिति में किया जाएगा। जिसके आसार बन भी रहे हैं। 2013 में मोदी के नाम मात्र की घोषणा होने के साथ ही शेयर बाजार ने जिस तरह की दौड़ लगाई थी वो पिछले दो सालों से तेज चाल तो क्या धीमीगति के समाचार बनती जा रही है। पांच राज्यों में विधान सभा चुनावों तक बाजार 220-224 की उम्मीद लगा रहा था जो बजट के बाद कुछ बढ़ी जरूर है, लेकिन यह 250 के पार अभी भी जा नहीं पाई है।
वहीं नितिन गडकरी की ओर से एक के बाद एक, काम न करने और लारे लगाने वाले नेताओं को जनता की और से सबक सिखाने और तो और जूते मारने के बयान भी यूँ ही नहीं आये हैं। जिसे गंभीरता से समझे जाने की जरूरत है, हालांकि बाद में राजनीतिक कुशलता वाले खंडन भी छपे हैं । और गडकरी की और से एक टीवी इंटरव्यू में यह भी कहा गया कि वे जहां हैं वहां बहुत खुश हैं। यह सभी कुछ जय हिंद से पहले ’जय महाराष्ट्र’ की भावना के बिना संभव नहीं है।
इसी क्रम में महाराष्ट्र में ही संघ के हेडक्वार्टर नागपुर में हुई नियुक्तियां इस बार भी ठीक वैसे ही हुईं हैं जैसे 2013 में लाल कृष्ण आडवाणी की मर्जी के विपरीत हुई थी, स्पष्ट संकेत है कि संघ में इस बार मोदी की चली नहीं और एकछत्र राज में कमी जरूर आई है।
यद्यपि शिव सेना के साथ महाराष्ट्र में बड़ा भाई बन कर हुआ समझौता और तमिलनाडु में आल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनैत्र करघम एआईडीएमके के साथ संभावित समझौते ने मोदी व अमित शाह की जोड़ी को राहत तो दी पर दिल्ली अभी दूर है। 2014 लोक सभा चुनावों की तरह तामिलनाडू में न तो जय ललिता का जमाना है और न ही पूरे भारत पर छा जाने वाला मोदी मैजिक ही शिखर पर है। यह भी गलत नहीं होगा कि कमजोर पड़ गई एआईडीएमके को भाजपा की जरूरत ज्यादा है और एनडीए को एआईडीएमके को कम। याद रहे कि पिछले चुनाव में तामिलनाडू की 39 में 37 एआईडीएमके ने जीती और एक भाजपा ने व एक एनडीए की ही अन्य सहयोगी ने, हालांकि वे सत्ता का सुख नहीं भोग पाए।
दिलचस्प है कि भाजपा का ’साधारण जनमानस’ जिसके लिए राम मंदिर बना नहीं उस पर आतंकवादियों ने पुलवामा में सर्जिकल स्ट्राइक कर डाली है। ऐसे में 56 इंच के सीने वाली छवि बचाना अब मुश्किल होता जा रहा है।
पाकिस्तान के खिलाफ कूटनीति से आगे बढ़कर कुछ किया तो पुलवामा हमले को भी मोदी प्रायोजित बताने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जाएगी जैसे सर्जिकल स्ट्राईक पर प्रश्न चिह्न लगाए गए थे। मोदी को बचाने में ममता बैनर्जी का बंगाल कोई चिट फंड लाए या फिर बहन जी ही कोई माया दिखाएं तभी बात बन सकती है। हालांकि यूपी के लड़के वाले स्लोगन में अब भाई-बहन का प्यार बीच में आ गया है, यह मोदी के लिए कुछ उम्मीद जरूर बढ़ा रहा है।

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