धर्मेन्द्र संधू
आज की भौतिकतावादी सोच केवल सुख सुविधाओं से जुड़ी चीजों की खोज को ही विकास मानती है। इंसान ज्यादा से ज्यादा आराम को ही अपने जीने का आधार बनाता जा रहा है। इस सोच के साथ ही समाज में नकारात्मक विचार धारा भी बढ़ती जा रही है। जहां संघर्ष का रास्ता दिखाई दे, वहीं इंसान वक्त और हालातों को कोसता दिखाई देता है। इसी दौरान अक्सर लोग उन भारतीय परंपराओं और मान्यताओं को नकारते हुए भी देखे जा सकते हैं जो असल में समाज के विकास को लेकर वैदिक ऋषियों द्वारा निर्धारित की गई थी।
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आज सारा विश्व कोरोना वायरस से त्रस्त है। हर जगह दहशत का माहौल है। चीन के वुहान से शुरू हुआ कोरोना वायरस विश्व के बहुत सारे देशों में अपनी जड़ें फैला रहा है। इस महामारी से बचने के लिए इलाज ढूंढे जा रहे हैं और डॉक्टरों द्वारा लोगों को कुछ निर्देश भी जारी किए जा रहे हैं। खासकर एक दूसरे के संपर्क में आने से या एक दूसरे को स्पर्श करने से यह वायरस तेजी से फैलता है। डॉक्टरों का मानना है कोरोना से बचने के लिए किसी से भी हाथ मिलाने से परहेज करें और हाथ जोड़कर नमस्कार करने में ही भलाई है। हाथ जोड़कर नमस्कार करना भारतीय संस्कृति की प्राचीन मान्यताओं में से एक है। भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान बहुत से लोगों ने अंग्रेजों के जीवन यापन के तरीकों को अपना लिया था किंतु आज कोरोना वायरस की महामारी ने यह सिद्ध कर दिया है कि भारतीय संस्कृति का आधार वैज्ञानिक है। ऋषि-मुनियों ने भी इसी तरह के विषाणु से बचाव के लिए कि ऐसे विषाणु का एक-दूसरे तक स्थानांतरण ना हो, इसीलिए हाथ जोड़कर नमस्कार करने की परंपरा को संस्कृति का अभिन्न अंग बनाया था।
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वहीं दूसरी तरफ इस महामारी की चपेट में बुरी तरह से आ चुके चीन और इटली में मरने वालों की संख्या इतनी ज्यादा हो चुकी है कि उनको दफनाना सरकार के लिए चुनौती बन चुका है। साथ ही यह डर भी है कि अगर इन शवों को दफनाया गया तो इस रोग के अधिक फैलने का खतरा हो सकता है। इसी के चलते विदेश में कोरोना से मरने वाले लोगों को जलाने के लिए बिजली से चलने वाली मशीन का इस्तेमाल करने के आदेश दिए गए हैं ताकि यह वायरस उन शवों के साथ ही समाप्त हो जाए और आगे न फैल सके। अंतिम संस्कार करना यानी शव को जलाना भारतीय परंपरा है। भारतीय संस्कृति में लकड़ी व हवन सामग्री द्वारा शव दहन की यह परंपरा इसी कारण थी कि व्यक्ति के सभी विषाणु उसी के साथ समाप्त हो जाएं। इसीलिए आज भी किसी व्यक्ति के अंतिम संस्कार के बाद घर लौटने वालों के लिए स्नान कर कपड़े बदलकर घर परिवार में बैठने का विधान है, जो कई प्रकार की बीमारियों से बचाव करता है।
इसी प्रकार हाल ही में लोगों को अपने घरों की छतों पर और खिड़कियों में खड़े होकर थाली, शंख और तालियां बजाते हुए देखा गया है। कुछ लोग इस बात का मजाक बना रहे हैं लेकिन सच है कि इस प्रकार की ध्वनियों से वातावरण शुद्ध होता है। नहीं यकीन आता तो विज्ञान के ध्वनि की गति के सिद्धांत को पढ़िए तथा समझिए, जिससे आपको समझ आएगा की ध्वनि से ही परमाणु गति पाता है तथा ध्वनि की दिशा की ओर जाता है, जिससे ध्वनि वाला स्थान शुद्ध हो जाता है। भारतीय सनातन संस्कृति में पूजा पद्धति में घंटी व शंखनाद इसी को दर्शाते हैं। आज विश्व भी मान रहा है कि हाथ जोड़कर अभिवादन करने में ही भलाई है। यही हमारी भारतीय परंपराएं हैं जिन्हें अपनाते हुए कोरोना के कहर से बचा जा सकता है।
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