-विश्व का एकमात्र मंदिर जहां सिद्धिविनायक श्री गणेश परिवार सहित विराजमान
भारत में कई मंदिर एेसे हैं, जहां पर प्राण प्रतिष्ठित प्रतिमाएं इस धरती से स्वयं ही प्रकट हुई। या कुछ एेसी प्रतिमाएं भी हैं, जिनको मंदिर में स्थापित करने के लिए देवी देवताओं ने स्वयं ही स्वप्न में आकर जानकारी प्रदान की। एेसा ही सिद्धिविनायक भगवान श्री गणेश जी एक मंदिर राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में है। जो विश्व का एकमात्र मंदिर है, जिसमें श्री गणेश अपने परिवार सहित विराजमान है। इतना ही नहीं सदियों पहले स्थापित किए गए इस मंदिर में भगवान श्री राम ने लंका कूच करने से पहले भगवान श्री गणेश जी का पूजन कर विजय का आशीर्वाद हासिल किया था। आईए आपको इस पावन व प्राचीन मंदिर के बारे जानकारी प्रदान करें।
कहां स्थित है त्रिनेत्र गणेश मंदिर
मंदिर में स्वयंभू प्रकट होने वाली भगवान श्री गणेश जी की प्रतिमाओं वाले मंदिर में राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में विश्व धरोहर के तौर चयनित अरावली व विंध्याचल पहाड़ियों के मध्य स्थित रणथंभोर दुर्ग में विश्व का इकलौता त्रिनेत्र गणेश मंदिर है। भारत में चार स्वयंभू श्री गणेश मंदिर माने जाते है। रणथंभौर के अलावा गुजरात में सिद्धपुर गणेश मंदिर, उज्जैन में अवंतिका गणेश मंदिर, मध्य प्रदेश में सिद्धपुर सिहोर मंदिर प्रमुख है। रणथंभौर का यह मंदिर प्रकृति व आस्था का अनूठा संगम है। मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित भगवान गणेश की प्रतिमा स्वयंभू है। इस मंदिर में भगवान श्री गणेश जी त्रिनेत्र रुप में विराजमान है। भगवान श्री गणेश की इस प्रतिमा को जिसमें तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक माना जाता है।रणथंभौर के मंदिर में भगवान श्री गणेश जी के दर्शन के लिए लगभग 1579 फीट उंचाई तक जाना पड़ता है।
भगवान श्री गणेश अपने परिवार सहित हैं विराजमान
रणथंभौर स्थित इस त्रिनेत्र मंदिर में भगवान श्री गणेश अपने परिवार सहित विराजमान है। यह मंदिर का विश्व का इकलौता मंदिर है। जहां पर सिद्धिविनायक भगवान श्री गणेश जी अपने दोनों पत्नी रिद्धि और सिद्धि व अपने दोनों पुत्रों शुभ और लाभ के साथ विराजमान है। किदवंती है कि महाराजा विक्रमादित्य प्रत्येक बुधवार उज्जैन से चलकर रणथंभौर स्थित त्रिनेत्र गणेश जी के दर्शन हेतु जाते थे। उन्होंने ही सिद्धपुर सीहोर में भगवान श्री गणेश जी की प्रतिमा को स्वप्न में मिली जानकारी के बाद स्थापित करवाया था।
भगवान श्री राम ने भी की थी इस प्रतिमा की पूजा
1299-1301 ईस्वी में महाराजा हमीरदेव चौहान व दिल्ली शासक अलाउदीन खिलजी के मध्य भयंकर युद्ध हुआ। खिलजी ने रणथंभौर के दुर्ग को चारों तरफ से घेर लिया। नौ माह से अधिक समय तक दुर्ग के चारों तरफ खिलजी की सेना डटी रही। दुर्ग के घिरे होने के कारण किले में खाद्य सामग्री की कमी आ गई। तब राजा चौहान को स्वप्न में श्री गणेश जी ने दर्शन देकर कहा कि मेरी पूजा करो। तुम्हें मैं चिंतामुक्त कर दूंगा। राजा श्री गणेश द्वारा बताए स्थान पर मूर्ति की पूजा की। तब से यह मंदिर किले में स्थापित है। मंदिर में जो प्रतिमा स्थापित है, उस भगवान श्री प्रतिमा की पूजा भगवान श्री राम ने लंका कूच करने से पहले की थी। त्रेतायुग में भगवान श्री गणेश जी की यह प्रतिमा रणथंभौर में स्वयंभू रूप में स्थापित हुई और फिर लुप्त हो गई थी। एक अन्य मान्यता अनुसार जब द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण का विवाह रूक्मणि से हुआ था। तब भगवान कृष्ण गलती से भगवान गणेश जी को बुलाना भूल गए। जिससे भगवान श्री गणेश नाराज हो गए। उन्होंने अपने वाहन मूषक को आदेश दिया कि वह विशाल चूहों की सेना के साथ जाकर श्री कृष्ण के रथ के आगे संपूर्ण धरती में बिल खोद दे। इस प्रकार भगवान कृष्ण का रथ धरती में ही धंस गया। मूषकों के बताने पर भगवान श्रीकृष्ण को अपनी गलती का अहसास हुआ। वह खुद रणथंभौर स्थित भगवान गणेश को लेने गए। तब जाकर श्री कृष्ण का विवाह संपन्न हुआ। तब से भगवान गणेश को विवाह व मांगलिक कार्यों में प्रथम आमंत्रित किया जाता है। रणथंभौर गणेश को भारत का प्रथम गणेश भी कहा जाता है।
भगवान शिव के अलावा भगवान गणेश के पास भी त्रिनेत्र
रणथंभौर स्थित त्रिनेत्र गणेश जी दुनिया के एक मात्र गणेश है जो तीसरा नेत्र धारण किया हुआ है। देवी देवताओं में देवों के देव महादेव भगवान शिव ही के पास त्रिनेत्र है। लोक मान्यता अनुसार भगवान शिव ने अपने तीसरा नेत्र का उत्तराधिकारी अपने सुपुत्र गणेश को बनाया था। इसी कारण महादेव की सारी शक्तियां गजानन में समाहित हैं। रणथंभौर में स्थित भगवान त्रिनेत्र गणेश का श्रृंगार भी खास तरह से किया जाता है। आम दिनों में श्रृंगार चांदी के वरक से किया जाता है। जबकि गणेश चतुर्थी पर भगवान का श्रृंगार स्वर्ण के वरक से होता है। यह वरक मुंबई से खात तौर से मंगवाया जाता है। भगवान त्रिनेत्र गणेश जी की पोशाक जयपुर में तैयार करवायी जाती है। भगवान त्रिनेत्र गणेश की प्रतिदिन पांच आरतियां की जाती है। पहली आरती सुबह साढे सात बजे, दूसरी आरती नौ बजे की जाती है। इस आरती को भगवान गणपति की श्रृंगार आरती कहते है। तीसरी आरती दोपहर 12 बजे की जाती है। यह आरती भगवान की भोग आरती कहलाती है। चौथी आरती संध्या समय की प्रार्थना के बाद होती है। पांचवीं आरती रात्रि आठ बजे होती है। जिसे भगवान गणपति की शयन आरती कहा जाता है। गणेश चतुर्थी को त्रिनेत्र गणेश जी की आरती व अभिषेक का विशेष महत्त्व माना जाता है। इस दिन सुबह चार बजे मंगला आरती व अभिषेक किया जाता है।
प्रदीप शाही