प्रेम का प्रतीक यह बावड़ी, नहीं है ताजमहल से कम

धर्मेन्द्र संधू

भारत में कुछ ऐसे प्राचीन स्थान व इमारतें मौजूद हैं जो आज भी इतिहास की कहानियां सुनाते दिखाई देते हैं। एक ऐसी जगह गुजरात में स्थित है जिसे ‘रानी की वाव’ अर्थात् ‘रानी की बावड़ी’ कहा जाता है।

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रानी की वाव

रानी की वाव गुजरात के पाटन नामक गांव में स्थित है जो भारतीय वास्तुकला का बेमिसाल नमूना है। विश्व धरोहरों की सूची में शामिल यह बावड़ी सरस्वती नदी के तट पर मौजूद है, जो मारू-गुर्जर स्थापत्य शैली में बनी एक सात मंज़िला इमारत है। यह बावड़ी इस लिए भी अन्य बावड़ियों से अलग है क्योंकि इसमें केवल पानी ही इकट्ठा नहीं किया जाता था बल्कि इसमें चारों ओर कलाकृतियां व मूर्तियां बनी हुई हैं। इस बावड़ी के निर्माण के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण 11वीं शताब्दी में सोलंकी वंश की रानी उदयमती द्वारा राजा भीमदेव की याद में करवाया गया था। इसका निर्माण 1022 ई. से 1063 ई. के दौरान हुआ माना जाता है।

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बावड़ी की अनूठी संरचना और इतिहास

अहमदाबाद से लगभग 140 किलोमीटर की दूरी पर स्थित प्रेम का प्रतीक मानी जाती इस बावड़ी के अंदर 1500 के करीब बड़ी व छोटी मूर्तियां बनी हुई हैं। सीढ़ियों वाली इस भव्य बावड़ी की लंबाई 64 मीटर, चैड़ाई 20 मीटर है और गहराई 27 मीटर के करीब है। इस बावड़ी का निर्माण इस इलाके में पानी की कमी के चलते करवाया गया था क्योंकि इस इलाके में बारिश कम होती थी। यह भी कहा जाता है कि रानी उदयमती ने अपने स्वर्गवासी पति भीमदेव सोलंकी की याद में जरूरतमंद लोगों को पानी मुहैया करवाने की दृष्टि से यह विशाल बावड़ी बनवाई थी। सरस्वती नदी में आने वाली बाढ़ के कारण यह विशाल सीढ़ीनुमा बावड़ी कई सालों तक मिट्टी और कीचड़ के मलबे में दबी रही। 80 के दशक में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इस इलाके में खुदाई की। इसके बाद यह अदभुत व ऐतिहासिक बावड़ी एक बार फिर से ज्यों की त्यों लोगों के सामने आई।

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दीवारों व सीढ़ियों पर बनी हैं भव्य मूर्तियां

इस बावड़ी की दीवारों व सीढ़ियों पर मूर्तियों बनाई गई हैं। इन मूर्तियों की संख्या 1500 के करीब है। इस अदभुत् बावड़ी में भगवान विष्णु के दशावतारों की मूर्तियों के साथ ही भगवान गणेश, कुबेर, माता पार्वती, मां लक्ष्मी के अलावा अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां विशेष दर्शनीय हैं। साथ ही नाग कन्याओं की मूर्तियों के दर्शन भी होते हैं और भारतीय महिलाओं के 16 श्रृंगार की बेहतरीन प्रस्तुति सबका मन मोह लेती है। इस बावड़ी से दो मूर्तियां चोरी गई थी। चोरी हुई मूर्तियों में भगवान गणेश व ब्रह्मा-ब्रह्माणि की मूर्तियां शामिल थीं।

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बावड़ी के नीचे है रहस्यमयी सुरंग व कुंआ

इस बावड़ी के नीचे एक गहरा कुआं है, जो ऊपर से भी दिखाई देता है। सीढ़ियों से उतरते हुए कुएं के नीचे तक जाया जा सकता है। इस कुएं के नीचे जाकर भगवान विष्णु के दर्शन होते हैं। इस कुएं के अलावा नीचे एक छोटा गेट भी मौजूद है। इस गेट के अंदर 30 किलोमीटर के करीब लंबी एक सुरंग है। कहा जाता है कि इस सुरंग के अंदर से ही राजा व उसका परिवार मुश्किल समय में सुरक्षित स्थान तक पहुंचता थे। लोगों का मानना है कि यह सुरंग पाटन के सिद्धपुर तक जाती थी। आजकल इस सुरंग को बंद कर दिया गया है।

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यूनेस्को की ऐतिहासिक धरोहरों की सूची में है शामिल

‘रानी की वाव’ के नाम से विख्यात यह सात मंज़िला इस ऐतिहासिक और विशाल बावड़ी को साल 2014 में वर्ल्ड हेरिटेज साइट यूनेस्को द्वारा ऐतिहासिक धरोहरों की सूची में शामिल किया गया था। इसके अलावा इस बावड़ी के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए भारत में 2018 में जारी किए गए 100 रुपए के नोट पर भी इसकी तस्वीर को अंकित किया गया था। यह बावड़ी कला का बेजोड़ नमूना होने के साथ ही इस बात को भी पुष्ट करती है कि प्राचीन भारत में वॉटर मैनेजमेंट सिस्टम कितना बढ़िया व बेहतरीन था।

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रानी की वाव को मिल चुके हैं पुरस्कार

इस अदभुत् बावड़ी को दिल्ली में 2016 में करवाई गई इंडियन सेनीटेशन कॉन्फ्रेंस में ”क्लीनेस्ट आइकोनिक प्लेस” घोषित किया जा चुका है। इसके अलावा 2016 में भारतीय स्वच्छता सम्मेलन में इस बावड़ी को देश के सबसे स्वच्छ एवं प्रतिष्ठित स्थान का दर्जा भी प्राप्त हो चुका है।

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