धर्मेन्द्र संधू
अपने प्रकाश से धरती को प्रकाशित करने वाले सूर्य को देवता मानते हुए पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। भारत के राज्य उड़ीसा में स्थित सूर्य देव को समर्पित विश्व प्रसिद्ध कोणार्क मंदिर के बारे में तो सभी जानते हैं। लेकिन गुजरात में भी एक प्राचीन सूर्य मंदिर है जो देश के साथ ही विदेश के श्रद्धालुओं व पर्यटकों को भी अपनी ओर आकर्षित करता है।
मोढेरा सूर्य मंदिर
गुजरात के पाटन से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मोढेरा गांव में है प्रसिद्ध मोढेरा सूर्य मंदिर। इस मंदिर का निर्माण 1026 ई. में सोलंकी वंश के शासक भीमदेव प्रथम ने करवाया था। दो हिस्सों में बने इस मंदिर का एक हिस्सा गर्भगृह व दूसरा हिस्सा सभामंडप के नाम से जाना जाता है। सोलंकी शासक सूर्यवंशी थे, इसीलिए वह सूर्य देव को अपना कुल देवता मानते थे। इसी कारण उन्होंने अपने आराधय देव को समर्पित इस विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था।
इसे भी देखें…ये है भारत का सबसे शक्तिशाली किला, जिसके हैं सातवें दरवाजे पर लगी है सबसे दमदार…
पुराणों में मिलता है इस स्थान का वर्णन
जिस स्थान पर यह मंदिर स्थित है उस स्थान का यानि मोढेरा का वर्णन स्कंद पुराण और ब्रह्म पुराण में किया गया है। पुराणों के अनुसार प्राचीन समय में वर्तमान स्थान के आसपास के इलाके को ‘धर्मरन्य’ कहा जाता था। पुराणों में यह भी वर्णित है कि भगवान श्री राम ने रावण के वध के बाद गुरु वशिष्ट को एक ऐसे स्थान के बारे में पूछा था, जहां पहुंचकर वह आत्मशुद्धि कर ब्राह्मण हत्या के पाप से मुक्त हो सकें। इस पर गुरु वशिष्ट ने भगवान श्री राम को इस स्थान पर आने के लिए कहा था।
इसे भी देखें…देश के सबसे पहले स्वतंत्रता संग्राम का साक्षी है यह प्राचीन मंदिर
मंदिर का वास्तु शिल्प
मोढेरा सूर्य मंदिर वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। इस मंदिर का निर्माण ईरानी शैली में किया गया है। इस मंदिर से जुड़ी खास बात यह है कि इस मंदिर के निर्माण के दौरान एक पत्थर को दूसरे से जोड़ने के लिए चूने का इस्तेमाल नहीं किया गया। मंदिर के विशाल सभा मंडप में 52 स्तंभ देखने को मिलते हैं। इन स्तंभों से जुडा एक तथ्य यह है कि जब इन स्तंभों को नीचे की ओर देखा जाता है तो यह अष्टाकोणाकार दिखाई देते हैं और जब ऊपर की ओर देखा जाए तो यह स्तंभ गोलाकार नज़र आते हैं। इन स्तंभों पर विभिन्न देवी-देवताओं के दर्शन होते हैं। साथ ही इन स्तंभों पर महाभारत और रामायण के प्रसंगों को प्रभावशाली ढंग से जीवंत किया गया है। मंदिर का निर्माण कुशल कारीगरों द्वारा किया गया है। मंदिर का निर्माण योजनाबद्ध तरीके से इस प्रकार किया गया है कि सूर्य की पहली किरण गर्भगृह को रोशन कर सके। सभा मंडप के सामने एक विशाल कुंड निर्मित है जिसे सूर्य कुंड या राम कुंड कहा जाता है। इस कुंड की सीढ़ियों पर छोटे मंदिरों की स्थापना की गई है। इन्में से कुछ मंदिर भगवान गणेश व भगवान शिव को समर्पित किए गए हैं। कहा जाता है कि इन मंदिरों की संख्या 108 थी।
इसे भी देखें…ऐसा गणेश मंदिर जिसके आसपास के क्षेत्र में नहीं टिकती कोई ‘बुरी शक्ति’
अलाउद्दीन खिलजी ने किया था हमला
खिलजी वंश के शासक अलाउद्दीन खिलजी ने मोढेरा सूर्य मंदिर पर हमला किया था। जिसके कारण मंदिर को काफी नुकसान पहुंचा था। इस दौरान मंदिर में कई मूर्तियों को भी तोड़ा गया था। इस कारण आज इस मंदिर में पूजा करने का विधान नहीं है। मौजूदा समय में इस मंदिर का संरक्षण पुरातत्व विभाग के अधीन है।
मोढेरा नृत्य उत्सव
गुजरात के पर्यटन विभाग द्वारा हर साल जनवरी के तीसरे सप्ताह में उत्तरार्ध महोत्सव का आयोजन किया जाता है। इस तीन दिवसीय नृत्य उत्सव में शास्त्रीय नृत्य की प्रस्तुतियां होती हैं। यह उत्सव उत्तरायण त्योहार के बाद मनाया जाता है।
इसे भी देखें…अदभुत् और अविश्वसनीय…. इस ‘दुर्गा मंदिर’ में नहीं होती मां दुर्गा की पूजा
मंदिर तक कैसे पहुंचें
मोढेरा सूर्य मंदिर तक हवाई जहाज़, बस या टैक्सी के द्वारा पहुंचा जा सकता है। इस मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन व एयर पोर्ट अहमदाबाद है।