-भगवान शिव, भगवान विष्णु, महर्षि नारद, लंकापति रावण, कार्तिकेय को मिला था श्राप
प्रदीप शाही
इतिहास गवाह है कि जब भी किसी से छल किया गया। उसका परिणाम हमेशा बुरा ही हुआ है। महाभारत में कौरवों व पांडवों के मध्य खेला गया द्युत घातक परिणाम लेकर आया। वहीं माता पार्वती को भी एक द्युत क्रीड़ा में छल का सामना करना पड़ा। छल होने से आहत हुई माता पार्वती ने अपने स्वामी भगवान शिव, अपने पुत्र कार्तिकेय सहित भगवान श्री विष्णु हरि, लंकापति रावण, महर्षि नारद को श्राप दे डाला। आखिर क्या था वह कारण। किस छल की वजह से माता पार्वती ने श्राप दिया। आईए, इस प्रसंग बारे आपको विस्तार से बताते हैं।
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माता पार्वती ने की भगवान शिव की इच्छा पूरी
कहते हैं कि एक बार भगवान शिव ने माता पार्वती से उनके साथ द्य़ुत खेलने को कहा। माता पार्वती ने अपने स्वामी भगवान शिव की इस इच्छा को पूरी करने के लिए द्युत खेलना स्वीकार कर लिया। परंतु द्युत क्रीड़ा में भगवान शिव अपना सब कुछ हार गए। माता पार्वती से पराजित होने के बाद भगवान शिव ने अपनी लीला रची। और पत्तों के वस्त्र धारण कर गंगा तट पर वास करने चले गए। जब कार्तिकेय को उक्त सारी घटना की जानकारी मिली तो वह माता पार्वती से अपने पिता भगवान शिव का सामान लेने पहुंच गए। माता पार्वती ने कार्तिकेय को भगवान शिव का सामान वापिस लेने के बदले द्युत खेलने को कहा। परंतु इस बार कार्तिकेय ने अपनी माता पार्वती को द्युत क्रीड़ा में पराजित कर दिया। और माता पार्वती से भगवान शिव का सारा सामान ले कर गंगा तट चले गए। कार्तिकेय के सामान ले जाने के बाद माता पार्वती को चिंता सताने लगी कि स्वामी सहित सारा सामान भी चला गया। अब वह क्या करे। तब माता पार्वती ने अपने पुत्र गणेश को सारी घटना की जानकारी दी। पुत्र गणेश, माता पार्वती से सारी बात सुनकर भगवान शिव के पास जुआ खेलने पहुंच गए। गणेश ने अपने पिता भगवान शिव को द्युत क्रीड़ा में हरा दिया। और माता के पास वापिस पहुंच गए। तब माता पार्वती ने कहा कि हे पुत्र, तुम्हें अपने पिता को साथ लाना चाहिए था। एक बार फिर पुत्र गणेश भगवान शिव से मिलने हरिद्वार पहुंच गए। जहां पर पिता भगवान शिव, भगवान श्री विष्णु हरि व कार्तिकेय के साथ भ्रमण कर रहे थे। पुत्र गणेश ने भगवान शिव को वापिस कैलाश पर्वत चलने की प्रार्थना की, लेकिन माता पार्वती से रुष्ट भगवान शिव ने साथ चलने से इंकार कर दिया।
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भगवान शिव ने किया, मिलीभगत से छल
गंगा तट पर भगवान शिव के परमभक्त रावण ने बिल्ली का रुप धारण कर भगवान श्री गणेश के वाहन मूषक को डरा कर वहां से भगा दिया। वहीं भगवान शिव के कहने पर भगवान श्री विष्णु हरि ने पासा का रुप धारण कर लिया। तब भगवान शिव ने पुत्र गणेश से कहा कि मैंने एक नया पासा बनवाया है। यदि तुम्हारी माता फिर से मेरे साथ जुआ खेलने का वादा करे। तो वह वापिस चलेंगे। गणेश जी अपनी माता की तरफ से भगवान शिव को दोबारा द्युत खेलने का आश्वासन दे दिया। कैलाश पर्वत पर दोबारा द्युत खेलने पहुंचे भगवान शिव से माता पार्वती ने कहा कि अब आप दांव पर क्या लगाएंगे। तो समीप खड़े महर्षि नारद ने अपनी वीणा भगवान शिव को सौंप दी। इस बार भगवान शिव जीतने लगे। पिता को जीतता देखकर भगवान श्री गणेश जी सारी स्थिति को समझ गए। उन्होंने माता को भगवान श्री विष्णु के पासा का रुप धरने की जानकारी प्रदान कर दी। इस पर माता पार्वती गुस्से में आ गई। उन्हें अपने साथ छल करने पर बेहद गुस्सा आया। जब उन्होंने अपने स्वामी भगवान शिव को श्राप दिया कि उन्हें सदा गंगा की धारा का बोझ सहन करना पड़ेगा। वहीं महर्षि नारद को हमेशा भ्रमण करते रहने का श्राप दिया। जबकि भगवान श्री विष्णु को कहा कि रावण तुम्हारा शत्रु बनेगा। जबकि रावण को कहा कि भगवान विष्णु के हाथों ही तुम्हारी मौत होगी। साथ ही अपने पुत्र कार्तिकेय को हमेशा बाल रुप में रहने का श्राप दिया।
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