धर्मेन्द संधू
भारत में देवी देवताओं को समर्पित मंदिरों के अलावा कूछ ऐसे प्राचीन मंदिर भी मौजूद हैं, जिनमें पूजा-अर्चना नहीं होती। लेकिन फिर भी बड़ी संख्या में लोग इन मंदिरों को देखने के लिए पहुंचते हैं। एक ऐसा ही प्राचीन मंदिर छत्तीसगढ़ में स्थित है जिसे ‘देवरानी-जेठानी मंदिर’ के नाम से जाना जाता है।
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देवरानी-जेठानी मंदिर
देवरानी-जेठानी मंदिर छत्तीसगढ़ के ताला नामक स्थान पर स्थित है। इसे तालागांव भी कहा जाता है। मनियारी नदी के तट पर स्थित यह मंदिर बिलासपुर से लगभग 30 किलोमीटर दूर है। देवरानी-जेठानी मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। देवरानी मंदिर के पीछे से मनियारी नदी बहती है। मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व दिशा की तरफ है। वहीं जेठानी मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण दिशा की तरफ है। शरभपुरीय शासकों के शासन काल में दो रानियों ने पांचवीं-छठी शताब्दी में इस मंदिर को निर्माण करवाया था।
मंदिर से जुड़ी कथा
कहते हैं कि प्राचीन समय में सरोसा और भरोसा नामक दो भाई थे। दोनों भाईयों को सिद्धियां हासिल थी। इन सिद्धियों के साथ ही दोनों भाई लोगों के कष्ट व दुख दूर करते थे। दोनों भाईयों के बाद भी उनकी पत्नियों ने उसी प्रकार लोगों का भला किया, जैसे सरोसा और भरोसा किया करते थे। देवरानी-जेठानी की मौत के बाद लोगों ने उनकी पूजा शुरू कर दी।
रुद्र शिव की अदभुत् मूर्ति
1987-88 में देवरानी मंदिर में की गई खुदाई के दौरान भगवान शिव की अदभुत् व दुर्लभ मूर्ति मिली थी। इस मूर्ति के अंग पशुओें व जानवरों के रूप में बनाए गए हैं। इस मूर्ति के बारे में यह जानकारी नहीं मिलती है कि यह मूर्ति कब की और किस की है। लेकिन फिर भी इसे भगवान शिव का रुद्र रूप माना जाता है। इस प्राचीन मूर्ति की ऊंचाई 9 फुट के करीब और चैड़ाई 4 फुट है और वजन तकरीबन 5 टन है। मुख्य रूप से मूर्ति के सिर के ऊपर सांपों को इस प्रकार लपेटा गया है कि मानो पगड़ी हो। इसके कान मोर के आकार वाले व पैर हाथी की तरह हैं। भौहें व नाक छिपकली के आकार का, मूछें मछली के जैसी, ठुड्डी केकड़े के जैसी है। इसके अलावा बाहें हाथी की सूंड, व उंगलियां सांपों के मुंह जैसी बनी हुई हैं। पेट की जगह पर किसी व्यक्ति का मुख बना है। बाजुओं व घुटनों पर भी चेहरे बने हुए हैं। यह मूर्ति भगवान शिव की अन्य मूर्तियों से अलग है। इस अदभुत् मूर्ति पर बनी आकृतियों को अगर ज्योतिषीय दृष्टि से देखा जाए तो यह प्रतीक रूप में 12 राशियों को दर्शाती हैं। इस मूर्ति को भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा एक ऐसे स्थान पर रखा गया है जहां पर हर समय ताला लगा रहता है। इसके बाहर से ही श्रद्धालु मूर्ति के दर्शन करते हैं।
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फरवरी में होता है बड़े मेले का आयोजन
हर साल फरवरी महीने में ताला में एक बड़ा मेला लगता है। जिसे माघी मेला कहा जाता है। इस दौरान दूर-दूर से लोग इस मेले में शिरकत करते हैं। इसके अलावा भी हर महीने पांच हज़ार के करीब पर्यटक ‘देवरानी-जेठानी मंदिर’ को देखने के लिए आते हैं। खासकर नवंबर से लेकर फरवरी तक पर्यटकों की संख्या काफी बढ़ जाती है।
देवरानी-जेठानी मंदिर तक कैसे पहुंचें
देवरानी-जेठानी मंदिर बिलासपुर-रायपुर राजमार्ग पर स्थित है। देश के किसी भी हिस्से से देवरानी-जेठानी मंदिर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। मंदिर के नज़दीक बिलासपुर रेलवे स्टेशन है। इसकेे अलावा अगर आप हवाई मार्ग से यात्रा करना चाहते हैं तो इस मंदिर का निकटतम एयर पोर्ट रायपुर है। साथ ही बस या टैक्सी के द्वारा भी मंदिर तक पहुंच सकते हैं। जेठानी मंदिर की हालत अब काफी खराब हो चुकी है जबकि देवरानी मंदिर की हालत थोड़ी ठीक है।
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