कैसे सुदामा ने श्री कृष्ण को दरिद्रता के श्राप से बचाया

-सुदामा थे जन्मजात ब्रह्मज्ञानी

प्रदीप शाही

भगवान श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता में असीम प्यार, अनूठे त्याग की भावनाएं समाहित हैं। सुदामा का निर्धन होना केवल सांसारिक नजरिया है। जबकि सुदामा का व्यक्तित्व आध्यामित्क दृष्टिकोण से बेहद अमीर है। सुदामा के बारे कहा जाता है कि वह जन्मजात ब्रह्मज्ञानी थे। ब्रह्मज्ञानी होने के कारण ही एक गरीब ब्राह्मण महिला की ओर से दिए गए निर्धन होने के श्राप से अपने परममित्र श्री कृष्ण को बचाने के लिए स्वयं निर्धन बनना स्वीकार कर लिया था। आखिर क्या था वह श्राप। जो सुदामा ने खुशी-खुशी स्वीकार किया। इस प्रसंग की बेहद रोचक कथा है।

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क्यों और किसे दिया ब्राह्मण महिला ने श्राप?

एक गरीब महिला ब्राह्मण प्रतिदिन भिक्षा मांग कर अपनी जीवन यापन करती थी। एक दिन भिक्षा हासिल करने के लिए महला दर-दर भटकती रही। यह सिलसिला निरंतर पांच दिनों तक जारी रहा। महिला रोजाना ही रात को जल पीकर सो जाती। छठे दिन महिला को किसी घर से दो मुट्ठी चने भिक्षा में मिले। चने मिलने पर महिला कुटिया की तरफ रवाना हो गई। कुटिया पहुचते-पहुंचते महिला को रात बीत गई। महिला ने सोचा अब तो रात हो गई है। इन चनों को मैं कल ठाकुर जी को भोग लगा कर ही ग्रहण करुंगी। यह सोच कर उसने चनों को कपड़े में बांध कर रख दिया। और एक बार फिर जल पीकर ठाकुर जी का नाम जपते-जपते सो गई।

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कुछ समय पश्चात महिला की कुटिया में चोर घुस आए। चोरों ने सारी कुटिया में धन ढूंडने की कोशिश की। परंतु उन्हें निराशा ही हाथ लगी। तभी एक चोर की नजर पोटली पर पड़ी। उन्होंने सोचा इस में ही धन होगा। तभी महिला की आंख खुल गई। महिला शोर मचाने लगी। चोर वहां से भागने में सफल हो गए। शोर मचाने पर गांव वाले एकत्रित हो कर चोरों को पकड़ने दौड़े। चोरों ने अपनी जान बचाने के लिए संदीपन मुनि के आश्रम में शरण ले ली। संदीपन मुनि के आश्रम में ही भगवान श्री कृष्ण व सुदामा शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। जब गुरुमाता को लोगों की आवाज सुनाई दी। तो वह आश्रम के भीतर चोरों को ढूंडने चली गई। चोर गुरुमाता को भीतर आता देख कर डर गए। और डर के मारे भागने लगी। इसी दौरान उनकी चुराई पोटली वहीं जमीन पर गिर गई। वहीं दूसरी तरफ महिला को जब अपनी चनों की पोटली चोरी होने की जानकारी मिली। तो उसने आहत मन से श्राप दिया कि मेरे चनों का जो भी सेवन करेगा। वह निर्धन हो जाएगा।

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कैसे सुदामा ने श्री कृष्ण को श्राप से बचाया

सुबह को जब गुरुमाता आश्रम की सफाई कर रही थी। तो उन्हें चनों की पोटली मिली। गुरुमाता ने चनों की पोटली को सुदामा को देते कहा कि तुम और कृष्ण जंगल में लकड़ी लेने जाओगे। तो यह पोटली पास में रख लो। इसमें रखे चनों का सेवन कर लेना। सुदामा ब्रह्मज्ञानी थे। चनों की पोटली पकड़ते ही उन्हें सारी घटना का ज्ञान हो गया। सुदामा ने सोचा यदि यह चने सृष्टि के पालनकर्ता श्री कृष्ण खा लेंगे। तो सारी दुनिया के सामने मुश्किल खड़ी हो जाएगी। इसलिए उन्होंने सारे चने खुद ही खा लिए। इस तरह सारी दुनिया को बचाने के लिए श्राप से ग्रसित चने खुद खा कर निर्धन होने का रास्ता चुन लिया। साथ ही भगवान श्री कृष्ण को गरीब महिला ब्राह्मण के श्राप से बचा लिया।

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