मंत्रीमंडल द्वारा जेलों में सुरक्षा मज़बूत करने और जुर्म पर काबू पाने के लिए प्रिज़न एक्ट में संशोधन करने का फैसला

चंडीगढ़, 24 फरवरी:
पंजाब सरकार द्वारा प्रिज़न एक्ट 1894 में संशोधन करने का फ़ैसला किया गया है जिससे राज्य की जेलों में कैदियों द्वारा अंजाम दिए जाते दंगा-फ़साद, जेल से भागना और जेल अनुशासन और नियमों का उल्लंघन जैसे अपराधों के लिए सख़्त सज़ाएं देकर काबू किया जा सके और राज्य की जेलों की सुरक्षा मज़बूत की जा सके।
ज़रूरी बदलाव लाने के लिए एक बिल 1 मार्च को शुरू होने वाले विधानसभा के बजट सैशन में लाया जायेगा।
यह फ़ैसला बुधवार को राज्य के मंत्रीमंडल की मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह के नेतृत्व वाली एक मीटिंग में लिया गया। मंत्रीमंडल द्वारा उपरोक्त एक्ट में नये दंडात्मक प्रावधानों को जोडऩे के लिए जेल विभाग द्वारा पेश किया गया एक प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी गई जिससे जेलों की सुरक्षा मज़बूत की जा सके और कैदियों द्वारा मोबाइल फोनों का प्रयोग, जेलों में दंगा-फ़साद, जेल अमले की मारपीट, जेल को नुक्सान पहुंचाना और जेालों से भागने के अलावा नशीले पदार्थ रखने जैसे जुर्मों पर काबू पाया जा सके।
सैक्शन 52-ए (1) में संशोधन करके जेल अनुशासन का उल्लंघन जैसे जुर्म के लिए कम-से-कम तीन साल की कैद और अधिक से अधिक 7 साल या जुर्माने जोकि 50 हज़ार रुपए से अधिक न हो या दोनों के प्रावधानों को मंज़ूरी दी गई है। जुर्माना अदा न किये जाने की सूरत में कैद की मियाद बढ़ाकर एक वर्ष और दूसरी या इससे ज़्यादा बार दोषी पाए जाने पर दोनों में से किसी भी एक मियाद के लिए सज़ा दी जायेगी जोकि पाँच वर्ष से कम नहीं होगी और जिसको बढ़ाकर 10 वर्ष किया जा सकता है। इसके साथ ही 5 लाख रुपए तक बढ़ाया जा सकने वाला जुर्माना भी लगाया जायेगा। मौजूदा प्रस्ताव में अधिक से अधिक एक वर्ष की सजा और 25 हज़ार रुपए के जुर्माने या दोनों का उपबंध है।
सैक्शन 52-ए के सब-सैक्शन (3) को रद्द कर दिया गया है क्योंकि पहले यह निर्धारित किया गया था कि कैदी को उसके द्वारा भुगती जा रही मौजूदा सजा पूरी होने के बाद सब-सैक्शन (1) और सब सैक्शन (2) के अंतर्गत सुनाई गई सजा भुगतेगा।
एक नया सैक्शन 52-बी भी जोड़ा गया है जोकि दंगे-फसाद के लिए सजा से सम्बन्धित है जबकि सैक्शन 52-सी का सम्बन्ध जेल अधिकारी को अपना फर्ज पूरा करने से रोकने के लिए झगड़ा या जोर-जबरदस्ती के इस्तेमाल और झगड़ा या जोर -जबरदस्ती से है।
सैक्शन 52-डी का सम्बन्ध जेल से भागने से है जबकि सैक्शन 52-ई जेल की जायदाद को नुकसान पहुँचाने के लिए की गई कार्यवाही और सैक्शन 52-एफ का सम्बन्ध जेल की जायदाद को नुकसान पहुँचाने के लिए की कार्यवाही की सजा से है।

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सैक्शन 52-जी का सम्बन्ध जेल के अंदर जेल अधिकारी को डराने -धमकाने की सजा से है जबकि सैक्शन 52-एच को संशोधित एक्ट में शराब, तम्बाकू आदि लाने और अदला-बदली करने के लिए सजा से सम्बन्धित है।
इसके इलावा सैक्शन 52-आई को संशोधित में गैर-जमानती जुर्मों के लिए जोड़ा गया है जिसके अंतर्गत सैक्शन 52-ए, सैक्शन 52-बी, सैक्शन 52-सी, सैक्शन 52-डी, सैक्शन 52-एफ और सैक्शन 52-जी गैर-जमानती और प्रथम दर्जा मैजिस्ट्रेट के द्वारा मुकदमा चलाए जाने योग्य हैं।
संशोधित एक्ट में सैक्शन 45 के क्लॉज (2) और (16) हटा दिए गए हैं।
यह ध्यान देने योग्य है कि राज्य की जेलों में सुरक्षा प्रबंधों के बावजूद हाल ही के समय दौरान कैदियों की तरफ से मोबाइल फोन इस्तेमाल किये जाने, जेलों के अंदर दंगें -फसाद करने, जेल कर्मचारियों की पिटायी, जेल की जायदाद को नुकसान पहुँचाने और जेल में से भागने की घटनाएँ सामने आईं हैं। समय-समय पर नशों की तस्करी के मामले भी सामने आए हैं जिससे जेल प्रशासन के लिए मुश्किलें पैदा होने के इलावा राज्य में अमन-कानून की स्थिति पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
द प्रीजनज (पंजाब संशोधन) एक्ट, 2013 में प्रीजनज एक्ट, 1894 सम्बन्धित कुछ संशोधन किये गये हैं जिससे जेलों में वायरलैस संचार उपकरणों पर रोक लगाई जा सके जिसके लिए एक साल की जमानत योग्य सजा 25000 रुपए के जुर्माने या इससे बगैर की सजा का उपबंध है। परन्तु यह महसूस किया गया कि सजा की तजवीज़ ऐसे हादसों को नकेल डालने में नाकाम रही है और इसीलिए एक्ट के मौजूदा उपबंध में संशोधन करके इनको और सख्त बनाया जा रहा है जिससे कैदी आगे से ऐसे जुर्म न करें।
-NAV GILL

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