जानिए प्राचीन ‘सर्प मंदिर’ के बारे में….मन्नत मांगने पर होती है संतान की प्राप्ति

भारत में विभिन्न देवी-देवताओं से संबंधित मंदिर मौजूद हैं। यह मंदिर भारतीय जनमानस की आस्था का प्रतीक हैं। इन मंदिरों में देश ही नहीं बल्कि विदेश से भी श्रद्धालु आते हैं। देवी-देवताओं की पूजा के अलावा भारत में जीव-जंतुओं की पूजा भी की जाती है। भारत के कोने-कोने में विभिन्न जीव-जंतुओं से संबंधित मंदिर स्थापित हैं। खासकर इन जीवों में नाग देवता की पूजा की जाती है। नाग देवता को भगवान शिव के गले का आभूषण माना जाता है। आज हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो सर्प मंदिर या स्नेक टेंपल के नाम से प्रसिद्ध है।

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मन्नारशाला का स्नेक टेम्पल

यह सर्प मंदिर केरल के मन्नारशाला में स्थित है। मन्नारशाला में नागराज और नागयक्षी को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर मौजूद है। इस मंदिर से जुड़ी खास बात यह है कि 16 एकड़ में फैले इस मंदिर में हर जगह पर सर्पों यानि सांपों की मूर्तियां ही दिखाई देती हैं। इनकी संख्या 30000 से अधिक मानी जाती हैं।

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नम्बूदिरी घराने की बहू करती है मंदिर में पूजा का कार्य

कहा जाता है कि महाभारत काल में यह स्थान एक वन प्रदेश था जिसे खंडावा के नाम से जाना जाता था। इस स्थान को जला दिया गया तो इस स्थान पर केवल एक भाग ही बचा। इस बचे हुए स्थान पर सांपों और अन्य कई जीव जंतुओं ने शरण ली थी। कहा जाता है कि मन्नारशाला वही स्थान है। मंदिर परिसर के पास ही एक नम्बूदिरी का साधारण सा खानदानी घर मौजूद है। मंदिर में पूजा अर्चना आदि सभी कार्य इसी घराने यानि नम्बूदिरी घराने की बहू द्वारा ही किया जाता है। इस प्राचीन घराने की बहू को अम्मा कह कर बुलाया जाता है। अम्मा शादी शुदा होने पर भी पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य धर्म को निभाती है और इस दौरान दूसरे पुजारी परिवार के साथ अलग कमरे में रहती है।

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मंदिर से जुड़ी कथा

मान्यता है कि नम्बूदिरी घराने की एक स्त्री के घर संतान नहीं थी। उसने वासुकी से प्रार्थना की और उस औरत के  अधेड़ होने के बावजूद वासुकी ने उसकी प्रार्थना सुनी और प्रसन्न होकर वरदान दिया। इसके बाद उस औरत की कोख से पांच सिर वाले एक नागराज और एक अन्य बालक का जन्म हुआ। कहते हैं कि उस नागराज की प्रतिमा आज भी इस मंदिर में मौजूद है।

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माथा टेकने से होती है संतान की प्राप्ति

मान्यता है कि जिन लोगों के घर संतान नहीं होती इस मंदिर में मन्नत मांगने से उनको संतान प्राप्त होती है। संतान प्राप्ति के लिए पति-पत्नी को मंदिर के पास वाले तालाब में नहाना पड़ता है और गीले कपड़ों में ही दर्शन करने पड़ते हैं। मन्नत मांगने के समय साथ में खुले मुंह वाला कांसे का बर्तन ले जाना पड़ता है।  स्थानीय भाषा में इस बर्तन को उरुली कहा जाता है। इस पात्र को उल्टा कर के रख दिया जाता है। मन्नत पूरी होने पर और संतान प्राप्ति के बाद लोग दोबारा इस मंदिर में माथा टेकने आते हैं। इस दौरान वह रखे हुए बर्तन को सीधा कर देते हैं। इस बर्तन को सीधा करने के बाद भक्त उस में अपनी श्रद्धा के अनुसार चढ़ावा इत्यादि डाल देते हैं।

धर्मेन्द्र संधू

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