-यहां के लोग मानते है खुद को मानते हैं सिकंदर के सैनिकों का वंशज
क्या आप जानते हैं कि भारत में एक एेसा कस्बा भी है, जहां पर भारतीय कानून नहीं चलता है। इतना ही नहीं इस कस्बे के लोग अपने आप को सिकंदर के सैनिकों का वंशज मानते हैं। आईए आज आप को इस कस्बे के बारे विस्तार से जानकारी प्रदान करते हैं। आखिर यह कस्बा भारत के किस राज्य में स्थापित है।
कहां पर स्थित है यह कस्बा
भारत के हिमाचल प्रदेश में कस्बा मलाणा हैं, जहां पर रहने वाले अपने आप को सिकंदर के सैनिकों का वंशज मानते हैं। इनके पास इस बात का प्रमाण भी मौजूद है। कस्बे के जाने-माने लोग मलाणा के जमलू देवता के मंदिर के बाहर लकड़ी की दीवारों पर की गई नक्काशी दिखाते हैं। इस नक्काशी में युद्ध करते सैनिकों को एक विशेष तरह की वेश-भूषा के साथ हथियारों के साथ दिखाया दिखाया गया है। चारों ओर से मनमोहक पहाड़ियों से घिरा, मलाणा नदी के तट पर बसा मलाणा कस्बा हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में स्थित है।
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कस्बे में नहीं चलता है भारतीय कानून
इस कस्बे की खास बात तो यह है कि भारत का हिस्सा होने के बावजूद यहां पर भारतीय कानून नहीं चलता है। यहां पर फैसले लेने और उसका पालन कराने की परंपरा भी बिल्कुल अलग है। कस्बे में बनी संसद अगर फैसला नहीं ले पाती है, तो फैसला यहां के जमलू देवता करते हैं। कस्बे में विश्व की सबसे पुरानी लोकतांत्रिक व्यवस्था अभी भी कायम है। इस गांव की अपनी अलग संसद है, जिसके दो सदन उपरी सदन व निचला सदन होते हैं। उपरी सदन में कुल 11 सदस्य होते हैं। जिनमें तीन सदस्य कारदार, गुर व पुजारी स्थायी सदस्य रहते हैं। शेष आठ सदस्यों को गांववासी मतदान द्वारा चुनते हैं। जबकि निचले सदन में गांव के प्रत्येक घर से एक बुजुर्ग सदस्य को प्रतिनिधित्व दिया जाता है। अगर निचले सदन के किसी सदस्य की मृत्यु हो जाती है, तो समूचे सदन का चयन दोबारा किया जाता है।
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ग्रीक भाषा से मिलती है यहां की आम बोली
सिकंदर के सैनिकों का वंशज होने का दावा करने वाले कस्बे के लोगों की भाषा भी हिमाचल प्रदेश में बोली जाने वाली भाषा से बहुत अलग है। जो उनको राज्य से अलग करते हैं। मलाणा के लोग जो भाषा बोलते हैं, वह ग्रीक में बोली जाने वाली भाषा से काफी हद मिलती जुलती है। इतना ही नहीं यहां के लोगों की शक्ल भी ग्रीक देश के लोगों से काफी हद तक मिलती है।
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जमलू देवता के मंदिर में होता है अंतिम फैसला
इस संसद में घरेलु झगडे, जमीन-जायदाद के विवाद, हत्या, चोरी और बलात्कार जैसे मामलों पर सुनवाई होती है। दोषी को सजा सुनाई जाती है। संसद भवन के रूप में यहां एक ऐतिहासिक चौपाल है जिसके ऊपर ज्येष्ठांग सदन के 11 सदस्य और नीचे कनिष्ठांग सदन के सदस्य बैठते हैं। अगर संसद किसी विवाद का निपटारा करने में विफल रहती है तो मामला स्थानीय देवता जमलू के सुपुर्द कर दिया जाता है और इस मामले में देवता का निर्णय माना जाता है। कस्बे की संसद में घरेलु झगडे, जमीन, जायदाद विवाद, हत्या, चोरी और दुष्कर्म जैसे सभी मामलों पर सुनवाई कर दोषी को सजा सुनाई जाती है। संसद यहां पर चौपाल में लगती है। जहां पर उपरी व निचली सदन के सभी सदस्य बैठते हैं। अगर संसद किसी विवाद का निपटारा नहीं होता है। तो इस मामले की सुनवाई देवता जमलू के सुपुर्द कर दिया जाता है। अंत में संबंधित मामले में देवता का निर्णय सर्वोपरि होता है।
बकरों को चीरकर भरा जाता है जहर
जमलू देवता का फैसला अनूठा होता है। देवता के सामने दोनों पक्षों से एक, एक बकरा मंगवाया जाता है। दोनों बकरों की टांगों को चीरकर उसमें निर्धारित मात्रा में जहर भरा जाता है। जिस पक्ष का बकरा पहले मर जाता है। उसे दोषी मान लिया जाता है। इसके बाद दूसरी पक्ष को सजा भुगतनी पड़ती है। देवता के इस फैसले को कोई चुनौती नहीं दे सकता है। यदि कोई देवता के फैसले को चुनौती देने की कोशिश करता है, तो उसे समाज से बाहर कर दिया जाता है। देवता के फैसले के समय बकरों को चीरने और जहर भरने का काम यहां पर चार लोग करते हैं। इन्हे कठियाला कहा जाता है।
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मुगल शहंशाह भी नहीं कर पाया था गांव को फतेह
कस्बा मलाणा के लोग अपने देवता जमलू के सिवाए किसी भी भगवान की पूजा नहीं करते हैं। मुगल सम्राट अकबर भी इस गांव को अपने अधीन नहीं कर पाया था। कहते हैं कि इस गांव को अपने अधीन करने के लिए शहंशाह अकबर ने यहां के देवता जमलू की परीक्षा लेनी चाही थी। अकबर बादशाह को सबक सिखाने के लिए जमलू देवता ने दिल्ली में बर्फ गिरवा दी थी। इसके बाद अकबर ने जमलू देवता से माफी मांगी थी। इस गांव के रीति रिवाज हिंदुओं की तरह हैं । साल में एक बार यहां के मंदिर में अकबर की पूजा की जाती है। इस पूजा को बाहरी लोग नहीं देख सकते हैं। मंदिर में शहनशाह अकबर की प्रतिमा स्थापित है।
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फागली उत्सव पर होती है विशेष पूजा
फागली उत्सव में अठारह करडू अपने मंदिर से बाहर निकलते हैं। अकबर की सोने की मूर्ति और चांदी के हिरण को भी बाहर निकाल कर इनकी पूजा की जाती है। कारदारों का कहना है कि अकबर के लिए समर्पित सिर्फ दो पर्व होते हैं। यहां पर मान्यता है कि जम्दग्नि ऋषि की और अकबर के कथन अनुसार सभी को यहां की परंपरा निभानी पड़ती है। महिलाएं तीन दिन तक शाम के समय जम्दगिभन ऋषि की धर्म पत्नी रेणुका के दरबार में नृत्य करती हैं। उत्सव में जम्दग्नि ऋषि के बारह गांवों के लोग देवता की चाकरी के लिए पांच दिनों तक यहां पर मौजूद रहते हैं।
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विश्व की सर्वश्रेष्ठ चरस का यहां होता है उत्पादन
इस बात को कम ही लोग जानते हैं कि विश्व में सबसे अच्छा चरस हिमाचल की मलाणा की पर्वत घाटी में ही तैयार होता है। यहां चरस को काला सोना कहा जाता है। इस इलाके की खास बात यह है कि चरस के अलावा दूसरी फसल नहीं होती।यहां पर बाहर से आने वाले लोगों को कैंप में ही रहना पड़ता है। बाहर के लोग यहां के निवासियों के घरों को भी नहीं छू सकते हैं।
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प्रदीप शाही