त्रिदेवों में कौन है सर्वश्रेष्ठ, मह्रर्षि भृगु ने कैसे ली परीक्षा

-भगवान विष्णु क्यों नहीं हुए क्रोधित

देवी देवता अपने भक्तों की तपस्या अनुसार ही उनकी परीक्षा लेने हेतू उन्हें वरदान प्रदान करते हैं। वहीं ऋषि महात्मा भी देवी देवताओं की परीक्षा लेने में भी संकोच नहीं करते थे। एक बार त्रिदेवों भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु व भगवान महेशा में कौन सा देवता सर्वश्रेष्ठ है। इस पर गहन चर्चा की गई। परंतु कोई भी निष्कर्ष नहीं निकला। इसका आकलन करने की जिम्ममेवारी भगवान ब्रह्माजी के मानस पुत्र महर्षि भृगु को सौंपी गई। क्या आप भी यह जानना चाहते हैं कि त्रिदेवों में से किस देव को सर्वश्रेष्ठ माना गया। आईए आपको बताएं कि महर्षि भृगु ने आखिर कैसे त्रिदेवों की परीक्षा ली।

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कौन थे महर्षि भृगु ?

महर्षि भृगु भगवान ब्रह्माजी के मानस पुत्र थे। इनकी पत्नी का नाम ख्याति था, जो की प्रजापति दक्ष की पुत्री थी। महर्षि भृगु सप्तर्षिमंडल में से  एक ऋषि हैं। सावन और भाद्रपद में वह भगवान सूर्य के रथ पर सवार रहते हैं।

 

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महर्षि भृगु ने कैसे ली त्रिदेवों की परीक्षा

महर्षि भृगु ने परीक्षा की शुरुआत सर्वप्रथम अपने पिता ब्रह्मा जी से ही की। पिता के पास पहुंचने पर न तो प्रणाम किया और न ही उनकी स्तुति की। यह देख भगवान ब्रह्माजी क्रोधित हो गए। क्रोध के कारण भगवान ब्रह्मा जी का मुख अंगारे समान लाल हो गया।  कुछ कहने से पहले उनके मन में ख्याल आया, भृगु मेरी ही संतान है। इसलिए अपने क्रोध को दबा लिया। भगवान ब्रह्मा जी से मिलने के बाद वहाँ से महर्षि भृगु कैलाश पर भगवान शिव के पास पहुंच गए।

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देवाधिदेव भगवान महादेव ने देखा कि महर्षि भृगु आ रहे हैं तो वे प्रसन्न होकर अपने आसन से उठ उनका आलिंगन करने के लिए आगे बढ़े। किंतु महर्षि भृगु तो उनकी परीक्षा लेने के उद्देश्य से उनके आलिंगन अस्वीकार करते हुए बोले “भगवान ! आप सदा वेदों और धर्म की मर्यादा का उल्लंघन करते हैं। दुष्टों और पापियों को आप जो वरदान देते है। इस कारम सृष्टि पर भयंकर संकट आ जाता है। इसलिए मैं आपका आलिंगन कदापि नहीं कर सकता। उनकी बात सुनकर भगवान शिव क्रोध से तिलमिला उठे। उन्होंने जैसे ही त्रिशूल उठा कर उन्हें मारना चाहा, तो भगवती सती ने उन्हें रोक कर उनका क्रोध शांत किया।

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इसके बाद भृगु मुनि वैकुण्ठ लोक चले गए। वहां पर भगवान श्री  हरि विष्णु देवी लक्ष्मी की गोद में सिर रख कर लेटे हुए थे।महर्षि भृगु ने जाते ही उनके वक्ष पर एक तेज लात मारी। भगवान विष्णु शीघ्र ही अपने आसन से खड़े हो कर प्रणाम कर उनके चरण सहलाते हुए बोले भगवन! आपके पैर पर चोट तो नहीं लगी। आईए आप इस इस आसन पर विश्राम करें। मुझे आपके शुभ आगमन का ज्ञान न था। इसलिए मैं आपका स्वागत नहीं कर सका। आपके चरणों का स्पर्श तीर्थों को पवित्र करने वाला है। आपके चरणों के स्पर्श से आज मैं धन्य हो गया।

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भगवान विष्णु के इस प्रेम-व्यवहार को देखकर महर्षि भृगु की आंखों से आंसू बहने लगे। उसके बाद वह वापिस ऋषि-मुनियों के पास लौट आए। और उन्हें समूचे घटना क्रम व अनुभव से अवगत करवाया।  सभी ऋषि-मुनियों के सभी संदेह दूर हो गए। सभी भगवान विष्णु को सर्वश्रेष्ठ मानकर उनकी पूजा-अर्चना करने लगे। यह समूचा घटनाक्रम ऋषि-मुनियों ने अपने लिए नहीं, बल्कि मनुष्यों के संदेहों को मिटाने के लिए किया था।

प्रदीप शाही

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