भारत के कोने-कोने में ऐसे प्राचीन मंदिर स्थित हैं जो देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्ध हैं। इन मंदिरों में आम तौर पर दूर -दूर से लोग दर्शनों के लिए आते हैं। लेकिन क्या आप सोच सकते हैं कि कोई ऐसा मंदिर भी हो सकता है जिसमें डकैत भी आकर पूजा-अर्चना करते हैं। लेकिन यह सच है आज हम आपको जिस मंदिर के बारे में जानकारी देने जो रहे हैं उस मंदिर में आम भक्तों के साथ-साथ डकैत भी माता ही पूजा करते हैं। यह प्राचीन मंदिर राजस्थान के करौली में स्थित है।
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मंदिर का इतिहास
कैला देवी माता मंदिर राजस्थान के करौली जिला मुख्यालय से दक्षिण दिशा में 24 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर त्रिकूट की पहाड़ियों पर स्थित एक प्राचीन मंदिर है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण राजा भोमपाल ने 1600 ई. में करवाया था। कैला देवी मंदिर में माता की दो मूर्तियां स्थापित हैं। बाईं तरफ वाली मूर्ति जिसका मुंह टेढ़ा है वह कैला देवी है और दाहिनी ओर वाली मूर्ति चामुण्डा देवी की है। उत्तरी-पूर्वी राजस्थान के चम्बल नदी के बीहड़ों के पास स्थित कैला गांव में स्थित माता कैला देवी के दरबार में सारा साल माता के भक्तो का तांता लगा रहता है।
मंदिर से जुड़ी कथाएं
माना जाता है कि भगवान कृष्ण के माता-पिता वासुदेव व देवकी को जब कंस ने जेल में डाला था तो उस समय कंस ने जिस कन्या का वध करना चाहा था वह कन्या कैला देवी के रूप में इस मंदिर में बिराजमान है। दूसरी कथा के अनुसार प्राचीन समय में घने जंगलों से घिरे त्रिकूट पर्वत के इलाके में नरकासुर नामक एक राक्षस रहता था। उस राक्षस के अत्याचारों से लोग दुखी थे। तब लोगों ने मां दुर्गा की पूजा की और मां दुर्गा ने मां कैला देवी के रूप में अवतरित होकर उस राक्षस का वध किया। तब से लोगों ने मां कैला की पूजा शुरू कर दी जो आज भी जारी है।
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माता का चेहरा तिरछा होने का कारण
कहा जाता है कि कैला माता की मूर्ति पहले नगरकोट में स्थापित थी । शासकों द्वारा मूर्ति को तोड़े जाने के डर से मंदिर के पुजारी योगिराज इस मूर्ति को किसी और स्थान पर ले गए। केदार गिरि बाबा की गुफा के पास पहुंचकर पुजारी ने मूर्ति को बैल गाड़ी से उतारकर नीचे रख दिया और खुद केदार गिरि बाबा को मिलने चले गए। लेकिन दूसरे दिन वापिस आकर वह मूर्ति को उसके स्थान से हिला नहीं पाए। इसे माता की इच्छा समझकर पुजारी ने मूर्ति को उसी स्थान पर स्थापित कर दिया। और माता की सेवा की जिम्मेदारी बाबा केदार गिरि को सौंप दी। कहा जाता है कि एक भक्त माता के दर्शनों के बाद यह कह कर मंदिर के बाहर गया कि मैं जल्दी ही वापिस आऊंगा लेकिन वापिस नहीं आया । मान्यता है कि माता कैला देवी आज भी उसी ओर देख रही हैं जिस तरफ वह भक्त गया था।
डकैत करते हैं पूजा
इस मंदिर में डकैत वेश बदलकर पूजा करने आते हैं और मन्नतें मांगते हैं। मन्नतें पूरी होने पर दोबारा आकर माथा टेकते हैं।
पुलिस भी नहीं रोक पाती इन डकैतों को
कैला देवी मंदिर में पुलिस तैनात होती है लेकिन फिर भी यह डकैत निडर होकर माता की पूजा करने आते हैं । और उसी तरह ही बिना पुलिस के हाथ आए वापिस लौट जाते हैं। कहते हैं कि इनके आने के बारे में पुलिस को पता भी लग जाता है लेकिन फिर भी पुलिस इन डकैतों को पकड़ नहीं पाती।
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कुख्यात डकैत कर चुके हैं इस मंदिर में पूजा
स्थानीय लोगों का कहना है कि कैला देवी माता मंदिर में कई कुख्यात व ईनामी डकैत भी पूजा अर्चना करने आते थे लेकिन कभी पुलिस के हाथ नहीं लगे। इन डकैतों में जगन गुर्जर व कैरोली का डकैत राम सिंह, सूरज माली व धौलपुर के बीहड़ों का कुख्यात डकैत औतारी लगातार माता के दर्शनों के लिए आते रहे हैं।
चैत्र मास में लगता है मेला
कैला देवी माता के मंदिर में चैत्र मास में एक बड़ा मेला लगता है जिसमें राजस्थान, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा ,मध्य प्रदेश व गुजरात के अलावा देश व विदेश से लाखों की तादाद में श्रद्धालु माता के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं। इस मेले को लक्खी मेला कहा जाता है। खास बात यह है कि यह मेला सत्रह दिन तक चलता है। मेले के दौरान महिला श्रद्धालु सुहाग का प्रतीक हरे रंग की चूड़ियां व सिंदूर जरूर खरीदती हैं। साथ ही नव विवाहित जोड़े एक साथ माता के दर्शन करते हैं और बच्चों के मुंडन संस्कार भी संपन्न किए जाते हैं।
मंदिर तक कैसे पहुंचें
जयपुर से कैलादेवी मंदिर 195 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जयपुर-आगरा राष्ट्रीय मार्ग पर स्थित महुवा से कैलादेवी कस्बा की दूरी 95 किलोमीटर है। हिण्डौन सिटी रेलवे स्टेशन से कैलादेवी मंदिर की दूरी 55 किलोमीटर है। नज़दीकी एयर पोर्ट जयपुर एयरपोर्ट है। मंदिर तक पहुंचने के लिए राज्य परिवहन की बस या टैक्सी की सहूलत उपलब्ध है।
धर्मेन्द्र संधू