-यूपी प्लस राजस्थान से बड़ा है यूक्रेन…इतना भी आसान नहीं है
-अमेरिका की भारत को धमकी, रूस से ना खरीदे तेल
भारत की अमेरिका को दो टूक, जितना तेल हम एक महीने में खरीदते हैं, उतना तो यूरोप आधे दिन में खरीद लेता है
यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे युद्ध में भारत के लिए एक अच्छी खबर यह आई है कि रूस से भारत को होने वाले कच्चे तेल पर बंपर छूट दी गई है अब भारत के लिए रूस ने कच्चा तेल 35 प्रतिशत तक सस्ता कर दिया है और यह मई महीने के पहले सप्ताह से मिलने भी लगेगा, हालांकि अमेरिका की धमकी के बाद से इंडियन आयल कारपोरेशन ने अपने टेंडर में रूस को जगह नहीं दी है।
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याद रहे कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ में रूस यूक्रेन मामले पर तटस्थ रहते हुए 10 बार मतदान में भाग नहीं लिया है। ऐसे में एक प्रकार से भारत ने रूस की मदद ही की है। इसी तरह रूस की ओर से 35 डालर प्रति बेरल या लगभग इतने ही प्रतिशत सस्ता तेल दिए जाने को लेकर भारत काफी आश्वस्त है। भारत को लगता है कि इससे महंगाई नहीं काबू में रहेगी और मई के आरंभ में यह ऑयल आना शुरू हो जाएगा। जिससे शतक मार चुका पेट्रोल और डीजल धीरे-धीरे नीचे आने शुरू हो जाएंगे।
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याद रहे कि भारत में तेल के दाम 15 दिन पहले लिए गए 21 दिनों की औसत पर निर्भर करते हैं, चूंकि फरवरी में शुरू हुई जंग के बाद अब मार्च गुजर चुका है, और अब इंटरनेशनल मार्केट में ऑयल के दाम 100 डालर प्रति बैरल से नीचे आ चुके हैं, ऐसे में मई के पहले सप्ताह में ही भारत पेट्रोल और डीजल के दामों में गिरावट शुरू हो जाएगी।
दिलचस्प है कि रूस के तेल क्षेत्र में भारत का बहुत बड़ा निवेश है। यह 14 बिलियन डालर तक पहुंच चुका है। याद रहे कि एक अरब डालर का मतलब भारतीय रुपए में 75 हजार करोड़ रूपये से अधिक है, जो कि एक बहुत बड़ी कीमत है। रूस के तेल खनन क्षेत्र में भारतीय कंपनियां लगी हुई हैं, लेकिन ये तेल भारत तक नहीं आता, अलबत्ता इंटरनैशनल मार्केट में उंचे दामों पर बिक जाता है। हालांकि लॉजिस्टिक के खर्चे हैं वह भी काफी बड़े होते हैं भारत में अब तक सिर्फ दो प्रतिशत तेल ही आ रहा है, इन दिनों में यह भारत के लिए सोने की खान से कम नहीं है। पाठकों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि रूस में भारत के अपने तेल कुएं भी हैं। जहां से निकाले गए तेल को भी इंटरनेशनल मार्केट में मौके की सरकारों ने बेच कर खूब पैसा बटोरा है। क्योंकि काला सागर क्षेत्र से भारत में तेल लाया जाता है वहां भी हालात ठीक नहीं है। तेल की ढ़ोह ढुहाई करने वाली ज्यादातर कंपनियां भी यूरोप की हैं। इतना ही नहीं इन मालवाहक जहाजों की बीमा कंपनियां भी यूरोप की हैं। ऐसे में तेल लाना भी आसान नहीं। संभव है कि मारियापोल क्षेत्र में एकाधिकार होने पर यह सब आसान हो जाए।
दूसरी ओर सउदी अरब की या यांे कहें कि दुनिया की तेल क्षेत्र की सबसे बड़ी कंपनी अरामको ने अपनी धोंस जमाते हुए एशियाई देशों के लिए आयल 7 से 8 डालर प्रति बैरल महंगा कर दिया है, यह एशियाई सरचार्ज है। क्योंकि ये देश, अमेरिका या रूस से सीधे तेल लाने में असमर्थ है और इन्हें यह तेल महंगा भी पड़ता है। ऐसे में सऊदी अरब की तानाशाही भारत सहित कई देशों को झेलनी पड़ रही है, पर भारत के लिए राहत की खबर मई महीने में आना तय है।
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आसान नहीं है यूक्रेन पर कब्जा करना
अभी तक बहुत बड़े-बड़े रक्षा विशेषज्ञ यह कहते आए हैं कि मसला दो-चार दिन का है, दो-चार दिन, एक-दो सप्ताह की लड़ाई में बदल गए और अब पूरा डेढ़ महीना गुजर चुका है। रूस, यूक्रेन पर किसी तरह की बड़ी बढ़त नहीं बना पाया है। राजधानी कीव सहित कई बड़े शहर रूस के कब्जे से बाहर है। दिलचस्प है कि यूक्रेन भी कोई छोटा मोटा देश नहीं है। आम भारतीय रूस को बहुत विशाल और भौगोलिक दृष्टि से बहुत बड़ा मुल्क कहते हैं। उन्हें लगता है रूस बहुत फैला हुआ है और इसके पास बड़े जंगल, पहाड़ बहुत अधिक मिनरल्स है, लेकिन यूक्रेन को अगर देखा जाए तो यह भारत के दो राज्य, उत्तर प्रदेश और राजस्थान को मिलाकर देखें तो लगभग उतना ही क्षेत्रफल यूक्रेन का बनता है। जो किसी की दृष्टि से कम नहीं है अमेरिका और यूरोप का मीडिया इसे चाहे जैसे खबर चलता रहे कि यूक्रेन में 39 किलोमीटर लंबा रूस का काफिला आ रहा है। आजकल 13 किलोमीटर लंबे रूसी काफिले के सैटेलाईट इमेज जारी किए जा रहे हैं लेकिन हमें यह देखना भी जरूरी होगा रूस की सेना का मात्र 15 फीसदी हिस्सा ही युद्ध में लगा है।
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मिसाईल हमले होते हैं, लड़ाकू विमानों की सोरटीज होती है या फिर राकेट हमले होते हैं, इससे ज्यादा कुछ नहीं। ऐसे में लड़ाई लंबी चलने वाली है। ऐसा भी नहीं है कि तकनीकी रूप से रूस अक्षम है। आजकल छोटे-मोटे अपराधी को पकड़ने भी उसके मोबाइल और उसकी आवाज को टरैप कर हमला किया जाता है, पकड़ा भी जाता है, जबकि यूक्रेन के प्रेजिडेंट जेलेंसिकी का जब मन करता है वो अपने ऑफिस में युवाओं को संबोधित करते हैं, जब मन करता है मीडिया से बात करते हैं और अपनी भड़ास निकालते हैं। यूएन असेंबली और यूरोपियन यूनियन को संबोधित करते हैं। फिर भी रूस कुछ नहीं कर पा रहा है और ना ही उन्हें सत्ता से हटा पा रहा है जबकि रूस ने यूक्रेन के अधिकतर मिसाइल डिफेंस सिस्टम तबाह कर दए हैं। रूसी सैनिक भी किसी चर्च व एतिहासिक महत्तव की बिल्डिंग पर कोई हमला नहीं करना चाहते। बड़ी इमारतों पर हमले किए जा रहे हैं जहां अमेरिका या नाटो देशों से आए हथियार छिपाए गए हैं। या फिर जिन बड़ी बिल्डिंग से हमले किए जाते हैं जहां से ये लोग रूसी बख्तरबंद वाहनों को निशाना बना रहे हैं।
पश्चिमी मीडिया ने चलाया अपना एजंेडा
बात अगर मीडिया की हो तो दोनों ही पक्ष अपनी अपनी तरफ से अपना एजेंडा चला रहे हैं क्योंकि भारत में रशिया टूडे और स्पूतनीक जैसे चैनल की समाचार सेवाएं सीधे नहीं आती ऐसे में भारतीय या हम लोग सिर्फ पश्चिमी मीडिया पर निर्भर है। वह अपनी तरह से एजेंडा सेट करते हैं और इसे लगातार लागू भी कर रहे हैं इससे पुतिन को पूरी तरह से बर्बर और युद्ध अपराधी घोषित किए जाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही। दिलचस्प है कि नाटो के उकसावे में जेलेंसिकी आया, पर ना तो उसका कुछ बिगड़ा और ना ही नाटो का कोई नुकसान हुआ अलबत्ता हथियार ही बेचे। जबकि यूक्रेन व रूस के लोग इस लपेटे में आ गए। रूस मंहागाई की मार तले आ गया, यूक्रेन के बसे बसाए घर बार उजड़ गए।
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यूक्रेन का नाम ही छोटा रूस है
ऐसे में इसे निपटाना भी आसान नहीं है, दोनों ही देशों के लोग लगभग एक जैसे चाल चलन व रहने वाला है, जैसे भारत में पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा, पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में कोई ज्यादा बड़ा फर्क नजर नहीं आता। राजस्थान और मध्य प्रदेश भी एक जैसे ही लगते हैं। यूक्रेन का नाम रूसी भाषा में छोटा रूस है जबकि बैला रूस को सफेद रूस कहा जाता है ऐसे में दोनों मुल्कों के बीच सांस्कृतिक, भाषाई नजदीकियां इतनी ज्यादा है कि इन लोगों को अलग कर पाना बहुत मुश्किल है। दोनों ही देश एक ही आर्थोडेक्स चर्च के अनुसार चलते हैं। यह चर्च ऑफ इंग्लैंड, रोमन कैथोलिक से बिल्कुल अलग है। यह क्षेत्र यूरोप से बिल्कुल अलग है। भाषाओं में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है, विरासत भी एक जैसी, भूगोल के मामले में इन तीनों देशों में कड़ाके की ठंड पड़ती है और खनिज पदार्थों के मामले में बहुत अधिक संपन्न है। रूस और यूक्रेन दोनों में गेहूं की खेती काफी बड़ी मात्रा में होती है। पाम आयल, सूरजमुखी भी इसका सीधा असर भारत पर भी पड़ने लगा है।
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भारत अनाज के मामले में आत्मनिर्भर, कोई फर्क नहीं पड़ेगा
दुनिया में खाद्य पदार्थों की मंहगाई अब चाहे जितनी बढ़े, उससे भारत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। भारत में फ्री राशन योजना चल रही है और वह सिर्फ इसी दम पर है कि भारत के पास चार करोड़ टन अनाज गोदामों में भरा पड़ा है। जब तक इसकी खपत होगी तब तक आठ फसलें और आ चुकी होंगी, जबकि दुनिया खाद्य पदार्थों की महंगाई से जूझ रही है। भारत, ऑस्ट्रेलिया जापान सहित कई देशों को अनाज निर्यात कर रहा है। पाकिस्तान, श्री लंका, अरब, अफ्रीका के कई मुल्क भारत के चावल पर निर्भर हैं।
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अमेरिका की भारत को धमकी, रूस से ना खरीदे तेल
हाल ही में जो बाइडेन और नरेंद्र मोदी के बीच हुई बातचीत में अमेरिका की आर से भारत को धमकी भे लहजे में कहा गया कि रूस से भारत तेल ना खरीदे। इस पर भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर की ओर से अमेरिका को दो टूक शब्दों में कहा गया कि जितना तेल हम रूस से एक महीने में खरीदते हैं, उतना तो यूरोप आधे दिन में खरीद लेता है।
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