भगवान राम, माता सीता जी ने भी भोगा था श्राप का संताप

-भगवान राम को देवर्षि नारद, माता सीता को एक पक्षी ने दिया था श्राप
-भगवान हो या इंसान सब भोगते हैं गलती की सजा
-श्राप कभी भी नहीं है होता बेअसर
भगवान हो या इंसान उन्हें उनकी गलती सजा जरूर भोगनी पड़ती है। यह भी सच है देवता हो या इंसान या फिर जानवर। इनके द्वारा दिया श्राप हर हाल में भोगना ही पड़ता है। या यूं कहें कि श्राप कभी भी बेअसर नहीं होता है। आईए आज आप को बताएं कि भगवान श्री विष्णू हरि के अवतार भगवान श्री राम और माता लक्ष्मी की अवतार माता सीता को भी श्राप मिला था। भगवान श्री राम ने देवर्षि नारद और माता सीता को एक पक्षी ने श्राप दिया था।

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भगवान राम को देवर्षि नारद ने दिया था श्राप
कहा जाता है कि देवर्षि नारद को घमंड था कि उनसे बड़ा तपस्वी कोई नही है। उनके इस अहंकार को तोड़ने के लिए प्रभु श्री विष्णु ने माया रची। देवर्षि नारद एक बार विश्व मोहिनी से मिलते हैं। देवर्षि नारद मोहिनी से मिलते ही उन्हें पसंद करने लग जाते हैं। तभी देवर्षि नारद को पता लगचा है कि विश्व मोहिनी का स्वयंवर आयोजित हो रहा है। तब नारद प्रभु विष्णू जी के पास पहुंच कर उनसे हरि जैसा रूप मांगते है। प्रभु विष्णु उन्हें हरि (बंदर) का रूप प्रदान कर देते हैं। जी हरि का रुप धारण कर स्वयंवर में पहुंचते हैं। स्वंयबर में सभी राजा उन्हें देखकर हंसने लगते हैं। नारद उनकी हंसी को समझ नहीं पाते। आखिर देवर्षि नारद दर्पण में अपना बंदर का रूप देखकर क्रोधित हो जाते हैं। तब वह प्रभु विष्णू को श्राप देते हैं कि आपको धरती पर जन्म लेना होगा। आप अपनी पत्नी को पाने के लिए वन-वन घूमेंगे। देवर्षि नारद के श्राप के चलते श्री विष्णू जी को इस धरती पर श्री राम के रुप में अवतार लेना पड़ा। माता सीता के हरण के बाद उनको पाने के लिए वन-वन भी घूमना पड़ा।

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माता सीता को नर तोते ने दिया था श्राप
एक कथा अनुसार एक बार माता सीता जी अपने बगीचे के अंदर भ्रमण कर रही थी। भ्रमण के दौरान उन्हें एक पेड पर बैठे नर तोते व मादा तोते की बातें सुनी। वह तोते का जोड़ा माता सीता जी के भविष्य के बारे में बातें कर रहे था। माता सीता को उनकी बातें सुन कर बहुत आश्चर्य हुआ। माता के मन में अपने भविष्य के बारे में अधिक बातें जानने की उत्सुक्ता पैदा हो गई। माता सीता के आदेश पर तोते के जोड़े को बंदी बना लिया गया। माता सीता ने जोड़े से पूछा कि वह उनके पति व उनके बारे बताएं। तब तोते की जोड़ी ने बताया कि वह भगवान श्री वाल्मीकि आश्रम के एक पेड़ पर रहते थे। वह हर समय भगवान राम और सीता माता की ही बातें करते थे। भविष्य में भगवान श्री राम आपके स्वयंवर में भगवान शिव जी का धनुष तोड़कर आपसे स्वयंवर रचाएंगे। माता सीता इन बातों को सुन कर तोते की जोड़ी को अपने महल में रखने की जिद करने लगी, लेकिन नर तोते ने कहा कि वह बंदी बनकर नहीं रह सकता। क्योंकि पक्षियों का घर तो खुला आसमान होता है। तब सीता माता ने नर तोते को छोड़ दिया और मादा तोते को बंदी बना लिया। तब नर तोते ने कहा कि उसकी पत्नी इस समय गर्भवती है। उसे इस वक्त सबसे ज्यादा मेरी जरूरत है। आपसे से निवेदन है कि हम दोनों की ही यहां से जाने दें। परंतु माता नहीं मानी। इस पर नर तोते ने क्रोधित कर माता सीता को श्राप दिया कि जिस तरह आपने हम दोनों को अलग किया।। उसी तरह आप भी अपने गर्भावस्था के दौरान अपने पति से दूर रहेगी। इसके बाद नर तोता कुछ समय बाद ही अपने प्राण त्याग देता है। वही नर तोता उस धोबी के रूप में जन्म लेकर माता सीता के चरित्र पर सवाल उठाता है। जिस कारण माता सीता को भगवान श्री राम त्याग देते हैं। माता सीता को भी उस श्राप के कारम गर्भावस्था के समय अपने पति भगवान श्री राम से दूर रहना पड़ता है।

कुमार प्रदीप

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