-छह हजार साल प्राचीन है काल भैरव मंदिर
भारत में प्राचीन रहस्यमयी व चमत्कारी मंदिरों की फेरहिस्त बेहद लंबी है। भारत में वृंदावन का निधि वन मंदिर, कर्णी माता मंदिर, ममलेश्वर मंदिर, भूतेश्वर नाथ शिवलिंग, ज्वालमुखी मंदिर चमत्कारी मंदिरों में प्रमुख है। आईए आज आपको बताते हैं कि महाकाल की नगरी उज्जैन स्थित काल भैरव का एक एेसा मंदिर भी है। जहां पर भगवान काल भैरव साक्षात रुप से विराजमान है। प्रसाद के रुप में चढ़ाई जाने वाली शराब को भगवान काल भैरव मंदिरा पान कर लेते हैं।
काल भैरव के मुंह से लगते ही शराब के प्याले हो जाते हैं खाली
उज्जैन स्थित भगवान काल भैरव मंदिर में सदियों से शराब चढाए जाने की परंपरा है। इस मंदिर में काल भैरव की प्रतिमा के मुख से प्रसाद के रुप में चढ़ाए जाने वाले शराब के प्याले देखते ही देखते खाली हो जाते हैं।
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छह हजार साल पुराना है मंदिर
मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर से करीब आठ किलोमीटर की दूरी पर प्रवाहित होने वाली क्षिप्रा नदी के तट पर भगवान काल भैरव का प्राचीन मंदिर स्थित है। काल भैरव के इस मंदिर को छह हजार साल पुराना माना गया है। प्राचीन काल में यह तांत्रिक मंदिर के रुप में विख्यात था। वाम मार्ग के मंदिर में मांस, मदिरा चढ़ाने के अलावा बलि देने की परंपरा भी रही। पुराने समय में यहं पर केवल तांत्रिको को ही आने की आज्ञा थी। वह यहां पर अरनी तांत्रिक क्रियाएं करते रहते थे। मौजूदा समय में इस मंदिर में आम लोग भी काल भैरव के दर्शन करने आते हैं। कुछ साल पहले तक इस मंदिर में जानवरों की बलि चढ़ाई जाती थी, परंतु सरकार ने इस प्रथा पर रोक लगा दी। अब केवल मंदिर में भगवान भैरव को केवल शराब का भोग लगाया जाता है। शराब पिलाने की परंपरा कब शुरु हुई, इस बारे कोई भी स्पष्ट तथ्य नहीं है। मंदिर में काल भैरव की प्रतिमा के समक्ष एक झूले में बटुक भैरव की मूर्ति भी प्राण प्रतिष्ठित है। मंदिर की बाहरी दीवरों पर देवी देवताओं की विभिन्न आकारों वाली मनमोहक मूर्तियां भी स्थापित है। मंदिर की उत्तर दिशा में पाताल भैरवी नाम की एक छोटी सी गुफा भी है।
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स्कंद पुराण में दर्ज है मंदिर की कहानी
स्कंद पुराण में मंदिर वाले इस स्थान के धार्मिक महत्व का जिक्र माना गया है। मंदिर में शराब चढ़ाने की पंरपरा भी बेहद खास है। मंदिर पुजारियों का कहना है कि वेदों के रचियता भगवान ब्रह्मा ने जब पांचवें वेद की रचना का फैसला किया। तो देवताओं ने ब्रह्मा जी को काम से रोकने के लिए भगवान शिव जी से गुहार लगाई। बावजूद इसके ब्रह्मा जी ने किसी की बात नहीं मानी। एेसे में भगवान शिव क्रोधित हो गए। भघवान शिव के तीसरे नेत्र से बालक बटुक भैरव प्रकट हुए।
उग्र स्वभाव वाले इस बालक ने गुस्से में आकर ब्रह्मा जी के पांचवें मस्तक को काट दिया। इस कारण बटुक भैरव को ब्रह्म हत्या का पाप लगा। इस पाप समाप्त करने के लिए बटुक भैरव अनेक स्थानों पर गए, लेकिन उन्हें मुक्ति नहीं मिली। तब तीसरे चक्षू से उत्पन्न हुए भैरव ने भगवान शिव की आराधना की। तब भगवान शिव ने भैरव को उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर ओखर श्मशान के पास तपस्या करने के लिए कहा। तभी से यहां पर काल भैरव की पूजा हो रही है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार परमार वंश के राजाओं ने करवाया था।
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किदवंती
अंग्रेजों के शासन काल में एक अंग्रेज अधिकारी ने इस बात का पता लगाने की कोशिश की कि आखिर प्रतिमा के मुख से लगने के बाद शराब जाती कहां है। इसके लिए उसने प्रतिमा के आसपास काफी गहराई तक खुदाई भी करवाई थी, परंतु कोई भी परिणाम सामने ने आने पर वह अंग्रेज भी भगकाल भैरव का भक्त बन गया।